रघुनाथपुर महाकालेश्वर मंदिर में शुभ हल्दी के उत्सव पर महिलाओं के मंगल गीत से गूंजा परिसर

ब्रह्मपुर प्रखंड अंतर्गत रघुनाथपुर तुलसी स्थान पर नवनिर्मित महाकालेश्वर मंदिर में आज महाकाल भगवान का अनाधिवास, फलाधिवास पुष्पाधिवास के पश्चात महिलाओं ने मंगल गीत गए और पुरुषों ने महाकाल को हल्दी लगाया तत्पश्चात बाबा बरमेश्वर नाथ मंदिर के शिवसरोवर से लिए गए जलभरी के पवित्र जल से महाकाल को स्नान कराया गया।

रघुनाथपुर महाकालेश्वर मंदिर में शुभ हल्दी के उत्सव पर महिलाओं के मंगल गीत से गूंजा परिसर

- गाजे बाजे के साथ धूमधाम से निकली महाकाल की बारात

शिवलिंग ब्रह्मांड का स्वरूप है, शिव को जान लेने से ब्रह्मांड को जाना है सकता है - स्वामी सिद्धार्थ परमहंस

केटी न्यूज/ब्रह्मपुर

ब्रह्मपुर प्रखंड अंतर्गत रघुनाथपुर तुलसी स्थान पर नवनिर्मित महाकालेश्वर मंदिर में आज महाकाल भगवान का अनाधिवास, फलाधिवास पुष्पाधिवास के पश्चात महिलाओं ने मंगल गीत गए और पुरुषों ने महाकाल को हल्दी लगाया तत्पश्चात बाबा बरमेश्वर नाथ मंदिर के शिवसरोवर से लिए गए जलभरी के पवित्र जल से महाकाल को स्नान कराया गया।

महिलाओं के मंगल चरण से पूरा मंदिर गुंजन मन हो गया चारों तरफ भक्ति में माहौल बन गया। मंगल गीत और हल्दी के पश्चात महाकाल की बारात तुलसी आश्रम से बाजार महावीर मंदिर, दुर्गा मंदिर होते हुए वापस तुलसी आश्रम पहुंचा। बारात में भस्म और गुलाल की बारिश हो रही थी। पूरा माहौल शिवमय हो गया था। कल महाकाल मंदिर में विग्रह की प्राणप्रतिष्ठा की जाएगी।

दूसरी तरह राष्ट्रीय संत स्वामी सिद्धार्थ परमहंस ने कथा कहने के क्रम कहा कि शिवलिंग ब्रह्मांड का स्वरूप है, शिव को जान लेने से ब्रह्मांड को जाना है सकता है। तन, मन ओर आत्मा की शुद्धि के लिए शिवलिंग का पूजन एक मार्ग है। तन मन ओर आत्मा का स्वस्थ होना जरूरी है।

आत्मा इस शरीर का निवासी है। 31 मिल वर्ष तक विचरण करती है। 84 लाख योनी के बाद मनुष्य। कोई जरूरी नहीं एक ही मार्ग सबके लिए सुलभ हो। मनीषियों के सुगम रस्ते से ीउ जीवन को धन्य बना सकते है। शिवलिंग का पूजन एक मार्ग है। शिवलिंग ब्रह्मांड का स्वरूप है शिव को जान लेने से ब्रह्मांड को जाना जा सकता है।शिव जल के प्रतीक है

और जल मन का ओर प्राण का प्रतीक है। शिव ब्रह्मांड अग्नि और चेतना के प्रतीक है।शिव मुक्ति के सूक्ति है। तन की शुद्ध के बहुत उपाय है। कोई जप से तप से जाप से कोशिश करता है। भीतर को देखकर हम बाहर का संतुलन स्थापित कर सकते है

इसलिए भीतर झांके। मन ही हमे संसार की ओर ले जाता है। एक इंद्रिय मुखी ओर एक आत्मा मुखी होता हैं। मंदिर इसलिए बनाया जाता है जैसे मंदिर के अंदर विग्रह की स्थापना होती है वैसे ही हम अपने शरीर के अंदर मन रूपी विग्रह को स्थापित करे।