शिव के अघोरी के लिए प्रसिद्ध है ये मन्दिर

अघोरी साधकों, साधुओं और भक्‍तों का ऐसा ही एक मंदिर उत्‍तर प्रदेश के वाराणसी में शिवाला मोहल्‍ले में है।

शिव के अघोरी के लिए प्रसिद्ध है ये मन्दिर
Aghori

केटी न्यूज़/वाराणसी

भारत धर्म, आध्‍यात्‍म और चमत्‍कारों को मानने वाला देश है। कुछ चमत्‍कारों को विज्ञान की कसौटियों पर भी परखा गया तो कुछ को अनुभवों के आधार पर सभी ने मान लिया।शिव के कट्टर अनुयायी कहे जाने वाले नागा साधु-साध्वियों को पूजने वाले लोग हैं तो अघोरियों और तांत्रिकों के अनुयायियों की तादाद भी कम नहीं है।अघोरियों की क्रियाएं, साधना के तरीके और उनके मंदिरों को लेकर कई बातें आज भी रहस्‍य ही बनी हुई हैं। अघोरी साधकों, साधुओं और भक्‍तों का ऐसा ही एक मंदिर उत्‍तर प्रदेश के वाराणसी में शिवाला मोहल्‍ले में है।इस मंदिर परिसर में मौजूद क्रीं कुंड को लेकर कई मान्‍याताएं प्रचलित हैं।बताया जाता है कि यहां मौजूद अग्‍नेय रुद्र की अखंड धूनी 400 साल से लगातार प्रज्‍ज्‍वलित है।

बनारस के शिवाला मोहल्‍ले में स्थित क्रीं कुंड का मुख्‍य द्वार रविंद्रपुरी कॉलोनी रोड की तरफ है।ये अघोर पीठ बाबा कीनाराम स्‍थल के नाम से प्रसिद्ध है।विद्वानों के मुताबिक, कुछ ग्रंथों में भी इसकी खासियतों के बारे में जिक्र किया गया है।इसे धार्मिक नजरिये से बहुत ही पवित्र क्षेत्र माना जाता है।स्‍थल के दक्षिणी भाग में पहले एक बड़ा बेल का पेड़ भी था। इसलिए इसे बेलवरिया के नाम से भी पहचाना जाता है। यहां मां हिंगलाज के नाम पर ‘हिंग्बा ताल’ था। इसी ताल के बीच में मां हिंगलाज के बीज मंत्र पर आधारित क्रीं कुड है।इसी कुंड के बीच में अघोर पीठ बाबा कीनाराम स्‍थल है। ये सभी नाम पुराने समय के भू-अभिलेखों में भी दर्ज हैं।

बाबा कीनाराम को भगवान शिव का अवतार माना जाता है।  बच्‍चे की लंबी आयु के लिए उनके परिवार ने उन्‍हें किसी दूसरे परिवार को देकर फिर खरीदा था।इसलिए उनका कीना यानी खरीदा हुआ रखा गया।कहते हैं जब कीनाराम स्‍नान के लिए घाट पर जाते तो गंगाजी उनके पैर छूने के लिए आगे बढ़ जाती थीं।बाबा कीनाराम के चमत्‍कारों को लेकर बनारस और आसपास के इलाकों में कई कहानियां प्रचलित हैं।उनकी गिरनार में अघोर मत के प्रवर्तक भगवान दत्‍तात्रेय से मुलाकात हुई।भगवान दत्‍तात्रेय से दीक्षा लेने के बाद वह गुरु की आज्ञा से काशी में बाबा कालूराम के पास पहुंचे। यहां उन्‍होंने बाबा कालूराम को ऐसा चमत्‍कार दिखाया कि वह बाबा कीनाराम के चरणों में गिर पड़े।इसके बाद उन्‍होंने अपने गुरु दत्‍तात्रेय का दिया हुआ सोटा बाबा कीनाराम को सौंप दिया।

मुख्य द्वार के दोनों स्‍तंभों पर तीन मुंड बने हुए हैं। विद्वानों के मुताबिक, इनका मतलब है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई अंतर नहीं है।वहीं, मुख्‍य द्वार के ऊपर दो कपाल मुंड हैं।इसे मोक्ष द्वार भी कहा जाता है। विद्वानों का मत है कि मुख्‍य द्वार क्रियाकर्म नहीं, बल्कि प्राण वायु के स्‍तंभन का प्रतीक है। दरअसल, कपाल क्रिया के बाद ही प्राण वायु को मुक्ति मिलती है। मुख्‍य द्वार इसी का प्रतीक है। चार सदी से प्रज्‍ज्‍वलित अखंड धूनि परिसर के पश्चिमी भाग में है। ये धूनि श्‍मशान की लकड़ियों से प्रज्‍ज्‍वलित होने के कारण अग्‍नेय रुद्र का स्‍वरूप बताई जाती है। मंदिर परिसर में बाबा कीनाराम की प्रतिमा और तख्‍त के अलावा भगवान शिव का मंदिर भी है।इसके साथ ही माता काली की प्रतिमा भी यहां है।

अब वहां ज्‍यादा तांत्रिक साधनाएं करने नहीं आते हैं,लेकिन कुछ समय पहले वहां देश के दूरदराज इलाकों से भी लोग अघोरी और तांत्रिक साधनाएं करने में अघोर पीठ बाबा कीनाराम स्‍थल पहुंचते थे।तांत्रिक यहां शव साधाना भी करते थे। इसके अलावा साधक भगवान शिव, मां काली और माता छिन्नमस्तिका की साधना करने भी यहां पहुंचते थे। उन्‍होंने बताया कि अघोरी साधक भगवान शिव के स्‍वरूप भगवान दत्‍तात्रेय के उपासक होते हैं।कहा जाता है कि बाबा कीनाराम ने स्‍वयं भगवान दत्‍तात्रेय से ही दीक्षा ली थी