कालाजार उन्मूलन को लेकर शुरू हुआ जिले के तीन गांवों में दवाओं का छिड़काव
कालाजार उन्मूलन को लेकर जिले में सिथेटिक पाराथाइराइड (एसपी) का छिड़काव शुरू किया जा चुका है। चालू वर्ष के प्रथम चरण के तहत जिले के सदर प्रखंड के आक्रांत गांव (यथा छोटका नुआंव, पड़री और साहोपाड़ा) में छिड़काव किया जा रहा है।

- सदर प्रखंड के छोटका नुआंव, पड़री और साहोपाड़ा गांव में चलाया जा रहा है अभियान
- पिछले तीन सालों में मिले मरीजों के आधार पर कराया गया था सर्वे
केटी न्यूज/बक्सर
कालाजार उन्मूलन को लेकर जिले में सिथेटिक पाराथाइराइड (एसपी) का छिड़काव शुरू किया जा चुका है। चालू वर्ष के प्रथम चरण के तहत जिले के सदर प्रखंड के आक्रांत गांव (यथा छोटका नुआंव, पड़री और साहोपाड़ा) में छिड़काव किया जा रहा है।
जिसमें तीनों गांवों को मिलाकर कुल 1703 के 5653 कमरों में छिड़काव किया जाना है। 18 फरवरी से शुरू हुआ यह अभियान 25 फरवरी तक चलाया जाएगा। ताकि, प्रभावित गांवों के लगभग 10460 लोगों को कालाजार के प्रभाव से बचाया जा सके।
इस संबंध में जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया कि छिड़काव का यह अभियान केवल उन्हीं गांवों में चलाया जा रहा है, जिन गांवों में कालाजार के मरीजों की पुष्टि हुई हो। ताकि, भविष्य में इन गांवों के लोगों को कालाजार के प्रभाव से बचाया जा सके। उन्होंने बताया कि इन गांवों में तीन सालों में मिले कालाजार के मिले मरीजों के आधार पर प्रभावित गांवों में सर्वे कराया गया था।
ताकि, कालाजार या पीकेडीएल के मरीजों की पुष्टि हो सके। वहीं, 2021 से 2023 तक ही कालाजार के मरीज मिले हैं। जिनमें 2021 में छोटका नुआंव में एक, 2022 में पड़री में एक और 2023 में पड़री में एक और साहोपाड़ा में एक मरीज मिले थे।
ठीक हो चुके मरीज दोबारा इसकी चपेट में आ सकते हैं :
डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया कि कालाजार को जड़ से मिटाने के लिए लोगों की सहभागिता अति आवश्यक है। लोगों को इस बीमारी के लक्षणों की पहचान से लेकर इलाज की जानकारी होनी चाहिए। इस बीमारी की खास बात है कि इससे पूरी तरह से ठीक हो चुके मरीज दोबारा से इसकी चपेट में आ सकते हैं।ऐसे में मरीज के शरीर पर त्वचा संबंधी लीश्मेनियेसिस रोग होने की संभावना रहती है। इसे त्वचा का कालाजार (पीकेडीएल) भी कहा जाता है।
पीकेडीएल का इलाज पूर्ण रूप से किया जा सकता है। इसके लिए लगातार 12 सप्ताह तक दवा का सेवन करना पड़ता है। साथ ही, इलाज के बाद मरीज को 4000 रुपये का आर्थिक अनुदान भी सरकार द्वारा दिया जाता है। इसलिए पीकेडीएल से बचने के लिए मरीजों को कालाजार के इलाज के दौरान दवाओं का कोर्स पूरा करने की सलाह दी जाती है।
एनटीडी रोग में कालाजार भी एक प्रमुख रोग :
वीडीसीओ पंकज कुमार ने बताया कि उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग में कालाजार भी एक प्रमुख रोग है। जिसके कारण पूरे राज्य में हर साल इस बीमारी से ग्रसित मरीज पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि पीकेडीएल यानी त्वचा का कालाजार एक ऐसी स्थिति है, जब एलडी बॉडी नामक परजीवी त्वचा कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें संक्रमित कर देता और वहीं
रहते हुए विकसित होकर त्वचा पर घाव के रूप में उभरने लगता है। उन्हें बार-बार बुखार आने लगता है। साथ ही, भूख में कमी, वजन का घटना, थकान महसूस होना, पेट का बढ़ जाना आदि इसके लक्षण के रूप में दिखाई देने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति को तुरंत नजदीक के अस्पताल में जाकर अपनी जांच करानी चाहिए।