त्रेतायुग में लंकापति रावण के भाई विभीषण ने यहां की थी तपस्या

मुरैना जिला मुख्यालय से लगभग 70 किमी दूर स्थित पुरातन काल का 'ईश्वरा महादेव मंदिर' स्थित है। इस बियाबान जंगल में स्थित महादेव का स्वयंभू शिवलिंग है।

त्रेतायुग में लंकापति रावण के भाई विभीषण ने यहां की थी तपस्या
Temple

केटी न्यूज़/दिल्ली

मुरैना जिला मुख्यालय से लगभग 70 किमी दूर स्थित पुरातन काल का 'ईश्वरा महादेव मंदिर' स्थित है। इस बियाबान जंगल में स्थित महादेव का स्वयंभू शिवलिंग है।यह महादेव का एक ऐसा मंदिर है।जहां शाम के बाद कोई पूजा नहीं करता।इसके बावजूद हर सुबह शिवलिंग पर ताजा पुष्प और बेलपत्र चढ़े मिल जाते हैं।मानों किसी ने आधी रात को यहां आकर भोलेनाथ का अभिषेक किया हो। 

 

मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में लंकापति रावण के भाई विभीषण ने यहां तपस्या की थी।ऐसा माना जाता है कि आज भी श्रावण मास के दौरान वह हर रोज सुबह चार बजे मंदिर में पूजा करने आते हैं।इस मंदिर में रात को कौन आता है और पूजा कर जाता है, यह रहस्य आज तक बरकरार है।जब सुबह पूजा हो जाती है, तब यहां बेलपत्र और चावल चढ़े हुए मिलते हैं। यह पूजा रात के 2 से 4 के बीच अपने आप हो जाती है। कई बार रात को रुक कर लोगों ने पहरेदारी भी की, लेकिन कोई कुछ आज तक नहीं जान पाया।

यहां पर पांडव भी अपने अज्ञातवास के दौरान रहे थे।वहीं, ग्रामीणों ने बताया कि यहां कई डकैत आते थे और घंटा चढ़ाकर जाते थे।इनमें डकैत माधो सिंह, मोहर सिंह, तहसीलदार, लोकमान्य आदि शामिल हैं।मंदिर में नीचे उतरते ही पहाड़ में बनी गुफा में ही शिवलिंग स्थापित है। यहां पर जल की अविरल धारा प्रवाहित होती है। यहीं पर साधु-संत भी रहते हैं, परंतु रात को यहां पर रुकना मना है।ऐसे में वे भी ऊपर पहाड़ी पर बने हनुमान मंदिर में रुकते हैं।

ईश्वरा शिवलिंग पर 12 महीने जलधारा से अभिषेक होता है, जबकि आसपास पानी के किसी भी तरह का स्त्रोत नहीं है। यहां तक कि इस इलाके में पानी की विकराल समस्या है पर मंदिर में शिवलिंग पर निरंतर जलधारा बहती है। ऐसे ही कई और चमत्कारों से भरा ईश्वरा महादेव मंदिर लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि के दिन  जंगल में मेले जैसा माहौल हो जाता है।