केटी न्यूज़, रोहतास:
वन क्षेत्र में निवास करने वाले आदिवासी समुदाय के अधिकारों को मान्यता प्रदान करने के लिए वनाधिकार अधिनियम 2006 बनाया गया। पर इसका लाभ कैमूर पहाड़ी पर बसे वनवासियों को अबतक नहीं मिल पाया है। इसके तहत आदिवासी समुदाय आजीविका, निवास व विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति वन क्षेत्र के उपज से पूरा कर सकते हैं। इसके माध्यम से वनोत्पाद पर भी वनवासियों को अधिकार दिया गया है। यह अधिकार कैमूर पहाड़ी के 105 गांवों व टोलों में बसे 30 हजार से अधिक वनवासियों को मिल पाता तो उन्हें रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता।
वनवासी बताते हैं कि उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत आंवला, हर्रे, बहेरा के साथ साथ महुआ भी है। जिस पर वन विभाग द्वारा उठाव, बिक्री आदि पर वर्षों से प्रतिबंध लगा दिया गया है। उनकी निजी जमीन पर लगे इन वृक्षों के फल, फूल आदि के अधिकार से भी वंचित किया गया है। जिससे उनके समक्ष बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। उनका कहना है कि वे सदियों से कैमूर पहाड़ी पर बसे गांवों और जंगलों में रहते हैं।
उनका गांव से लेकर जमीन तक वन क्षेत्र में है, ऐसे में वनाधिकार अधिनियम के तहत उनकी सुरक्षा, अधिकार और रोजगार मिलना चाहिए। सात वर्ष अप्रैल 2018 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कैमूर पहाड़ी पर स्थित रेहल गांव में आयोजित कार्यक्रम में ज्ञापन भी सौंपा गया था। तब मुख्यमंत्री ने वहां उपस्थित वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव को इसके लिए निर्देशित भी किया था, लेकिन उसपर अमल अबतक नहीं हो पाया।
व्यापारी औने-पौने दाम पर कर रहे खरीद :
वन उत्पाद की खरीद बिक्री पर प्रतिबंध होने के कारण उत्तर प्रदेश के व्यापारी कम दामों में कैमूर पहाड़ी के गांवों से चोरी छिपे वनोत्पाद खरीद कर ले जाते हैं। इससे सरकारी राजस्व में घाटा तो होता ही है, साथ ही वनवासियों को भी इसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। जिसे लेकर वनवासी कई बार अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं।
वनवासी कहते हैं कि जीविका का मुख्य स्रोत वनोत्पाद आंवला, हर्रे, बहेरा महुआ ही है। जिसका वृक्ष हमारे निजी खेत में ही लगे हैं। किंतु उसका फल, फूल बेचने पर वन विभाग प्रतिबंधित किए हुए है। इसके लिए डीएम से सीएम तक गुहार लगाई गई,किंतु स्थिति यथावत है।
इस बारे में रोहतास वन क्षेत्र के रेंजर हेमचंद्र मिश्र कहते हैं कि वनोत्पादों को मालवाहक वाहनों पर पहाड़ी गांवों से लाना प्रतिबंधित है। इसके उत्पादन और खरीद बिक्री के लिए वन विकास समिति का गठन किया गया है। जिसे कार्यरूप दिया जा रहा है। जल्द ही वनवासियों को इसका लाभ मिलेगा। वनोत्पाद निजी उपयोग के लिए प्रतिबंधित नहीं है।