जाने 'ब्लैक राइस'क्यों है 500 रुपए किलो
काले चावल ने अपने उच्च पोषण मूल्य और स्वास्थ्य लाभों के कारण लोकप्रियता हासिल की है।
केटी न्यूज़/चंदौली
वर्ष 1997 में बाबा विश्वनाथ की काशी नगरी से अलग होकर धान का कटोरा कहे जाने वाला क्षेत्र चंदौली के नए नाम से पहचाने जाने लगा। तत्कालीन मायावती सरकार ने जब इस क्षेत्र को जिला बनाने का निर्णय लिया था तो ऐसा लगा था कि वाराणसी के पूर्वी क्षेत्र स्थित यह क्षेत्र कृषि विकास के नए प्रतिमान स्थापित करेगा, लेकिन प्रशासनिक जिजीविषा की कमी ने काले धान के किसानों का भविष्य भी स्याह बना दिया है।
योगी सरकार ने एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चंदौली को काले धान का हब बनाने का प्रयास किया, लेकिन अफसरों के अदूरदर्शी निर्णयों ने धान की नई प्रजाति की खेती करने वाले किसानों की उम्मीदों को तार तार कर दिया। स्थिति यह रही कि जिन किसानों ने काले धान की खेती तमाम संसाधन लगा कर किया था उनको ना तो बाजार मिला और ना ही खरीदार। शासन की ओर से कहा गया था कि काले धान की विदेशों में बड़ी मांग है। जिला प्रशासन द्वारा कई तरह की कृषि प्रदर्शनियों में इसकी मांग को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया था। इससे उत्साहित होकर काफी संख्या में किसानों ने काले धान का बीजारोपण किया था, लेकिन जब फसल तैयार हुई तो इसके खरीदार नदारत मिले। अब काले धान की खेती करने वाले किसान अपने निर्णय पर पछताने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
नई प्रजाति के धान को रोपने के लिए किसानों ने काफी धन भी लगाया था जिसकी भरपाई करना भी मुश्किल हो रहा है। चकिया के प्रगतिशील किसान राम अवध सिंह बताते हैं कि जिस जोर-शोर से काले धान के व्यवसाय को प्रचारित प्रसारित किया गया था दरअसल वह कहीं था ही नहीं। कहा गया था कि मधुमेह के रोग में यह धान हितकारी होगा, लेकिन अब तक औषधि गुण से भरपूर कहे जाने वाला धान अपने लिए बाजार नहीं ढूंढ सका।काले चावल की खेती करने वाले कांता जलालपुर गाँव के धनंजय मौर्य ने अब इसे उगाना बंद कर दिया है। "काले चावल की मिलिंग एक समस्या है। अधिकारियों को मध्यम और छोटे किसानों को उचित मिलिंग और प्रसंस्करण सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करने की जरूरत है।
काले चावल का इतिहास
काले चावल का अपना एक इतिहास है और माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी। कार्नी और वॉटकिंस के अनुसार, अफ्रीकी दासों ने अमेरिका में चावल की खेती शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन्होंने नई दुनिया में मुख्य भोजन के रूप में चावल की खेती करने के लिए अफ्रीकी चावल की किस्मों के बारे में अपने ज्ञान का उपयोग किया । चीन और भारत जैसे एशियाई देशों में, काले चावल का एक अनोखा इतिहास है और पारंपरिक रूप से केवल चीनी सम्राटों द्वारा इसका स्वास्थ्य लाभों के लिए इसका सेवन किया जाता था । समय के साथ, काले चावल ने अपने उच्च पोषण मूल्य और स्वास्थ्य लाभों के कारण लोकप्रियता हासिल की है। अब इसकी खेती भारत सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में की जाती है।
कहा कहा होती है खेती
काले चावल की खेती सबसे अधिक असम, सिक्किम और मणिपुर में होती है। लेकिन अब मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी किसानों ने काले चावल की खेती शुरू कर दी है।काले चावल को अंग्रेजी में ब्लैक राइस कहा जाता है।पकाने के बाद काले चावल का रंग बदल जाता है, फिर यह बैंगनी कलर का दिखने लगता है।ब्लैक राइस को पकाने के बाद इसका रंग बदल जाता है, इसलिए इसे नीला भात भी कहा जाता है।ऐसे काले चावल की खेती भी सामान्य चावल की तरह ही की जाती है।
कैसे होती है खेती
ब्लैक राइस की रोपाई करने के बाद इसकी फसल 100 से 110 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।इसके पौधों की लंबाई आम धान के पौधों से ज्यादा होती है। जहां सामान्य चावल मार्केट में 50 से 60 रुपये किले बिकता है, वहीं एक किलो काले चावल का रेट 200 से 250 रुपये होता है।काले धान की कीमत 250 रुपए से लेकर 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक है। हमारे देश से कुछ देशों जैसे-कतर, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, संयुक्त् अरब अमीरात में इसका निर्यात भी किया जाता रहा है।
क्यों बढ़ी ब्लैक राइस की मांग
इन दिनों भारत में काले चावल की मांग बढ़ गई है।डॉक्टरों की सलाह पर पैसे वाले लोग मोटी रकम खर्च कर काले चावल का सेवन कर रहे हैं। कहा जाता है कि काला चावल खाने से शुगर की बीमारी कंट्रोल में रहती है।काला चावल ब्लड प्रेशसर जैसी बीमारी के लिए भी रामबाण है। हमेशा काला चावल खाने से शरीर स्वस्थ रहता है और बॉडी में रोग से लड़ने की क्षमता भी बढ़ जाती है।काले धान में एंटी-कैंसर एजेंट पाए जाती हैं। इसमें आयरन, फाइबर और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा रहता है। ऐसे में बॉडी को फीट और स्वस्थ रखने के लिए काले चावल का सेवन काफी लाभकारी बताया जाता है।