पुस्तकों की कमी और प्रकाशकीय विविधता से जूझ रहे छात्र, पढ़ाई में बाधा

सिपाह इब्राहिमाबाद (मऊ)। कहते हैं, "सुआ न सुतारी फिर काहे का व्यापारी"। यह कहावत उन छात्रों पर एकदम सही बैठती है, जिन्हें इस शैक्षिक सत्र का आधा समय बीत जाने के बाद भी किताबें नहीं मिली हैं।

पुस्तकों की कमी और प्रकाशकीय विविधता से जूझ रहे छात्र, पढ़ाई में बाधा

केटी न्यूज़/ मऊ 

सिपाह इब्राहिमाबाद (मऊ)। कहते हैं, "सुआ न सुतारी फिर काहे का व्यापारी"। यह कहावत उन छात्रों पर एकदम सही बैठती है, जिन्हें इस शैक्षिक सत्र का आधा समय बीत जाने के बाद भी किताबें नहीं मिली हैं। जानकारी के अनुसार, माध्यमिक शिक्षा परिषद के कक्षा 6, 7 और 8 में एक जैसी किताबें होती हैं। पर कक्षा 9 से 12 तक की किताबों में अलग-अलग प्रकाशनों के कारण छात्रों, शिक्षकों और किताब बेचने वालों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

अलग-अलग स्कूलों में एक ही कक्षा में भी अलग-अलग प्रकाशकों की किताबें पढ़ाई जाती हैं। जैसे एक स्कूल में कक्षा 9 में हिंदी (राजीव प्रकाशन), गणित (काका प्रकाशन), सामाजिक विज्ञान (अवतार प्र.), विज्ञान (विद्या प्र.) और अंग्रेजी (नवीन प्र.) की किताबें चलती हैं, तो दूसरे स्कूल में दूसरे प्रकाशनों की। यही नहीं, एक ही कक्षा के अलग-अलग सेक्शन में भी विषयों की किताबों में भिन्नता देखी जा रही है। 

प्रकाशकीय विविधता के कारण छात्रों का नुकसान हो रहा है और दुकानदार भी परेशान हैं। शासन द्वारा हर साल किताबों में बदलाव के कारण दुकानदार सतर्क रहते हैं और किताबों का भंडारण सोच-समझकर करते हैं। इस वजह से कई छात्रों को सभी किताबें समय पर नहीं मिल पातीं। किताबों की कमी के चलते, छात्र गाइड का सहारा लेकर परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन पाठ्यक्रम समान होने के बावजूद कई छात्र इस प्रकाशकीय विविधता की उलझन में फंसकर अपना नुकसान कर बैठते हैं।