रामलीला की दुनिया में अमिट छाप छोड़ेगी डॉ. सुभाष कृष्ण लिखित तीन घंटे की “संक्षिप्त रामलीला” नाट्य पुस्तक

वर्तमान में रेडियो सिटी के कार्यक्रम निदेशक डॉ. सुभाष कृष्ण ने एक नाट्य पुस्तक की रचना की है जिसका नाम है "संक्षिप्त रामलीला"। यह और यह नाटक पुस्तक अमेज़न पर उपलब्ध हैं और सोशल मीडिया पर धूम मचा रही है । कई नाटक प्रेमियों का कहना है कि वह इस बार दशहरे में रामलीला मंचन इसी पुस्तक से करेंगे क्योंकि इसकी भाषा काफी सरल है और महज तीन घंटे में संक्षिप्त तौर पर रामायण का मंचन भी पूरा हो जाएगा।

रामलीला की दुनिया में अमिट छाप छोड़ेगी डॉ. सुभाष कृष्ण लिखित तीन घंटे की “संक्षिप्त रामलीला” नाट्य पुस्तक
केटी न्यूज, पटना। वर्तमान में रेडियो सिटी के कार्यक्रम निदेशक डॉ. सुभाष कृष्ण ने एक नाट्य पुस्तक की रचना की है जिसका नाम है "संक्षिप्त रामलीला"। यह और यह नाटक पुस्तक अमेज़न पर उपलब्ध हैं और सोशल मीडिया पर धूम मचा रही है । कई नाटक प्रेमियों का कहना है कि वह इस बार दशहरे में रामलीला मंचन इसी पुस्तक से करेंगे क्योंकि इसकी भाषा काफी सरल है और महज तीन घंटे में संक्षिप्त तौर पर रामायण का मंचन भी पूरा हो जाएगा। रामलीला पुस्तक का लिंक…
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डॉक्टर सुभाष कृष्ण के बारे में हम बता दें कि उन्होंने पत्रकारिता एवं जनसंचार में पीएचडी किया है। ऐसे तो वह पेशे से सम्मानित मीडिया हाउस में सम्मानित पद पर हैं , पर नाट्य कला में भी वह बहुत ही सधे हुए कलाकार हैं। उन्होंने एक से बढ़कर एक कई नाटकों में रंगमंच पर अपनी कला के प्रदर्शन से अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने बिहार नाट्य कला प्रशिक्षणालय कालीदास रंगालय से नाट्यकला में द्वर्षीय डिप्लोमा भी किया है। इसके साथ ही बिहार आर्ट थियेटर कालीदास रंगालय के आजीवन सदस्य भी हैं। वह विगत 23 वर्षों से रंगकर्म कर रहे हैं। 2005 में ही संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय छात्रवृति प्राप्त कर ख्याति प्राप्त रंग निर्देशक स्व अजित गांगुली जी से नाट्य की शिक्षा प्राप्त की। अभी तक 30 से 35 नाटकों व 70 से 80 नाट्य प्रदर्शनों में अभिनय और निर्देशन कर चुके हैं। बिहार के अलावा कटक, कोलकाता आदि जगहों पर भी नाटक के साथ 50 से अधिक रेडियो नाटकों का लेखन भी कर चुके हैं।

इस पुस्तक के बारे में एमिटी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विवेकानंद पांडेय बताते हैं कि रामायण के सभी प्रमुख प्रसंगो को 3 घंटे की मंचीय रामलीला में समाहित करना आसान नहीं है। 'रामायण' इतना विशाल है कि इसके सभी प्रसंगों को 10 दिन की रामलीला में दिखा पाना भी संभव नहीं और इतना सूक्ष्म है कि केवल दो पंक्तियों में समाहित है। इसलिए इस 'संक्षिप्त रामलीला नाटक' की सराहना होनी चाहिए। वस्तुतः रामायण में वो जादू है कि पूरी कहानी मालूम होने के बावजूद लोग हर बार देखते हैं। भारत में टेलीविज़न घर-घर पहुँचाने में रामायण का सबसे बड़ा योगदान रहा। कोरोना काल में दूरदर्शन रामायण लेकर आया और टी.आर.पी. में विश्व के सभी रिकॉर्ड तोड़ डाले। 

वही संक्षिप्त रामलीला नाटक के लेखक सुभाष कृष्ण बताते हैं कि वर्ष 2013 में उन्होंने पटना में रामलीला करने का मन बनाया, तब यह तय नहीं कर पा रहे थे कि इसे 10 दिन करें या फिर एक-दो दिन। फिर कुछ वरिष्ठ रंगकर्मियों से बात की तब लगा कि अब समय के अनुसार रामलीला को 3 घंटे में मंचित करना चाहिए। फिर उन्होंने स्क्रिप्ट के लिए अपने रंगकर्मी मित्रों से देश भर में संपर्क किया, लेकिन ज्यादातर जगह 10 दिन की ही स्क्रिप्ट उपलब्ध थी। तब गुरु स्वर्गीय अजित गाँगुली और श्री अरुण कुमार सिन्हा जी तथा हनुमान जी एवं तुलसीदास जी के आशीर्वाद व रेडियो मिर्ची के तत्कालीन कार्यक्रम प्रमुख श्री उत्पल पाठक जी के उत्साहवर्धन पर उन्होंने खुद ही लिखने का मन बना लिया। 
उत्पल पाठक के बारे में हम बता दें कि वह मूल रूप से बनारस निवासी और लीला प्रेमी हैं, उन्होंने काफी जानकारी दी। फिर स्क्रिप्ट तैयार हुई और 2013 एवं 2014 में रेडियो मिर्ची के आयोजक बनने पर इसका शानदार मंचन भी हुआ, जिसमें 'बिहार आर्ट थिएटर' के 25-30 कलाकारों एवं रेडियो मिर्ची के रेडियो जॉकी शशि, उमंग एवं जिया ने हिस्सा लिया। निर्देशन उन्होंने ही किया और श्रीराम की भूमिका भी निभाई। 'निफ्ट पटना' के छात्रों ने 'वस्त्र-विन्यास' की जिम्मेदारी ली और यह सिलसिला चल पड़ा। जिसे देखने हज़ारों लोग आते रहे हैं। 
पाठकों, दर्शकों एवं रंगकर्मियों से लेखक अपील करते हुए कहते हैं कि मैंने जो संक्षिप्त 'रामलीला' लिखी है, इसे नाटक के तौर पर देखें और इसका आनंद उठायें। इसकी भाषा विशुद्ध भारतीय है और नाट्य शैली पौराणिक एवं पारसी मिश्रित। यही कारण है कि संवाद में हिंदी के साथ-साथ उर्दू के शब्द भी रखे हैं मैंने। कई सारे संवाद पारसी शैली में छंद रूप में मिलेंगे। संक्षिप्त रामलीला होने के कारण रामायण के सिर्फ मुख्य प्रसंगो को रख सका हूँ। विद्यालय, महाविद्यालय, गाँव-शहर, नाट्य दल, समितियों द्वारा इसका सरलता से मंचन हो सके, इसका पूरा ध्यान लिखते समय रखा हूँ। 
आगे डॉ कृष्ण बताते हैं कि यह पुस्तक किसी विशेष 'रामायण' पे आधारित न होकर केवल एक नाटक के रूप में, रामायण की प्रचलित कहानी पर आधारित है। रामायण हमें नैतिक शिक्षा प्रदान करती है, जिसकी आज समाज को आवश्यकता है। रामायण से हम सीखते हैं कि पुत्र कैसा हो? तो, यहां से जवाब मिलता है कि श्रवण कुमार और राम जैसा हो। भाई कैसा हो? तो, भरत और लक्ष्मण जैसा हो। पत्नी कैसी हो? सीता और उर्मिला जैसी हो। भक्त कैसा हो? हनुमान जैसा हो। शत्रु कैसा हो? तो, रावण जैसा हो। जहाँ गंगा पार करते समय, श्रीराम ने केवट को गले से लगाया, वहीं माता शबरी के जूठे बेर खाकर ऊंच-नीच का भेद मिटाने का सन्देश देता है रामायण। इसीलिए जहाँ कहीं भी रामलीला का मंचन हो, वहाँ अपने बच्चों को अवश्य ले जायें। यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। यही कारण है कि भारत के संविधान में रामायण का भी चित्र है।
उन्होंने इस प्रकाशन के लिए माता-पिता, गुरुजन, पत्नी श्वेता, संस्था बिहार आर्ट थिएटर, श्री उत्पल पाठक, आर.जे.शशि, आर.जे.उमंग, डॉ. निहोरा प्रसाद यादव, श्री कुमार अभिषेक रंजन, श्रीमती उज्ज्वला गांगुली, श्री दशहरा कमिटी ट्रस्ट पटना, प्रशांत पांडेय एवं एमिटी विश्वविद्यालय पटना के कुलपति डॉ. विवेकानंद पांडेय जी का विशेष आभार प्रकट किया है। उन्होंने अपना संपर्क नंबर- 9905351172 शेयर करते हुए कहा कि मंचन के लिए सर्वप्रथम लेखक से लिखित अनुमति लेना अनिवार्य है। अगर आप मंचन के लिए मुझसे संपर्क करेंगे, तो मैं अनुमति के साथ-साथ अपने अनुभव भी साझा करूँगा, जिससे आपका मंचन आसान हो जाए। इसमें कई सारे पात्र हैं। मुख्य पात्रों को छोड़कर, एक रंगकर्मी कई सारे पात्रों को निभा सकता है। मैंने 30-35 कलाकारों के साथ इसका मंचन किया है।
रामायण पुस्तक का लिंक…
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