शिव जी क्यों लगते है अपने शरीर पर भस्म

भगवान शिव ऐसे भगवान हैं, जो प्रकृति के नियमों पर चलकर बेहद ही साधारण तरीके से रहते हैं।

केटी न्यूज़/दिल्ली

भगवान शिव ऐसे भगवान हैं, जो प्रकृति के नियमों पर चलकर बेहद ही साधारण तरीके से रहते हैं। शिव को निवास करने के लिए न ही महल की आवश्यकता और ना ही कोई विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है। सांसरिक छलावों से दूर भगवान शिव प्रकृति की गोद में यानी कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। आप महादेव को पूरे श्रद्धा भाव से धतूरा, बेलपत्र जैसी चीजों से प्रसन्न कर सकते हैं।भगवान शिव को मोक्ष का देवता कहा जाता है। मोक्ष यानी जीवन-मृत्यु के चक्र से स्वतंत्र होकर दुख और सुख से ऊपर उठना। भगवान शिव मृत्यु का भी उत्सव मनाते हैं, इसलिए तो भगवान शिव चिता की भस्म या राख को अपने शरीर पर लगाते हैं। आपके मन में भी कभी न कभी यह सवाल जरूर आया होगा कि आखिर भगवान शिव चिता की भस्म को अपने शरीर पर क्यों लगाते हैं? आइए, जानते हैं इसका रहस्य

भगवान शिव और सती की शिवपुराण में एक कहानी वर्णित है।जो आप मे से ज्यादातर लोगों को पता है कि माँ सती ने पिता के विरुद्ध जाकर शिवजी से विवाह किया था। शिव-सती के विवाह के बाद भी प्रजापति दक्ष शिव के प्रति अपनी नकारात्मक भावनाओं को बदल नहीं पाए। एक बार उन्होंने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया।अंहकारवश और शिव को नीचा दिखाने के लिए शिव- सती को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया।मां सती भी उस यज्ञ में पहुंची। वहां उन्होंने प्रजापति दक्ष से शिव को निमंत्रित न किए जाने का कारण पूछा। सती ने अपने पिता से पूछा कि आखिर उन्हें शिव से इतनी घृणा क्यों है? 

सती की बात सुनकर दक्ष शिव का उपहास करने लगे और उनके विरुद्ध कटु वचन कहने लगे। अपने पिता के मुंह से अपने पति के लिए ऐसे कटु वचन सुनकर सती बहुत ही क्रोधित और दुखी हुईं।तब यज्ञ कुंड की अग्नि में कूदकर सती ने अपनी जान दे दी।जब महादेव को यह बात पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुए और उनके क्रोध से वीरभद्र अवतार का जन्म हुआ। वीरभद्र ने दक्ष के यहां जाकर प्रजापति दक्ष का सिर काट दिया।

इसके बाद अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद भगवान शिव ने संसार के प्रति सारी जिम्मेदारियों को त्याग दिया। शिव देवी सती का अधजला शव लेकर पूरे संसार में भटकने लगे। शिव के ऐसे रूप को देखकर पूरी सृष्टि को भगवान शिव की चिंता होने लगी। महादेव को सती के शोक वियोग से निकालना आवश्यक हो गया था, इसलिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शव के कई टुकड़े कर दिए। देवी सती के टुकड़े पूरे संसार में अलग-अलग जगह जाकर गिरे। शव के टुकड़े गिरने के बाद भगवान शिव के हाथ में केवल राख रह गई। भगवान शिव ने इस राख को सती की स्मृति में पूरे शरीर पर मल लिया।

दूसरे मत में यह भी कहा जाता है कि शव को संसार त्याग देता है और अछूत मानता है।भोलेनाथ शव भस्म को अपने शरीर पर लगाकर मृत को भी स्वीकार करते हैं।जिस से मृतक को मोक्ष और संसार मे सम्मान मिलता है।

त्रिदेवों में से भगवान शिव पर सृष्टि के विनाश की जिम्मेदारी है। विनाश यानी अंत। शिव हमें बताते हैं कि संसार में जिस भी मनुष्य का जन्म हुआ है, उसका अंत होना निश्चित है। हमें अंत पर दुखी नहीं होना चाहिए क्योंकि हर अंत के बाद एक नए जीवन या नए अध्याय की शुरुआत जरूर होती है। मोक्ष के देवता शरीर पर भस्म लगाकर यह संदेश देते हैं कि इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। हर चीज का अंत है। अंत में हर चीज को भस्म में परिवर्तित होना ही है। जैसे, मानव शरीर का अंतिम सत्य यही है, इसलिए कभी भी अपने रूप, रंग या फिर किसी अन्य सांसरिक चीज पर अंहकार नहीं करना चाहिए।