किसानों ने मनाया काला दिवस, बोले, “बक्सर थर्मल पावर परियोजना ने छीना हक़
बनारपुर के पूर्व टोला स्थित शिव मंदिर प्रांगण में खेतिहर मजदूर मोर्चा के बैनर तले आयोजित इस विरोध सभा की अध्यक्षता राजनारायण चौधरी और संचालन शिवजी तिवारी ने किया। सभा में शामिल किसान, बेरोजगार नौजवान, महिला मजदूर और ग्रामीणों ने काली पट्टी बांधकर नारे लगाए। उनका कहना था कि जिस दिन परियोजना का उद्घाटन हुआ, वह दिन उनके लिए दुख और शोषण की याद दिलाने वाला “काला दिवस” है।

-- उद्घाटन पर जहां सरकार ने दिखाई आत्मनिर्भर ऊर्जा की तस्वीर, वहीं प्रभावित परिवारों ने उठाई मुआवज़े और रोजगार की मांग
केटी न्यूज/चौसा
बक्सर जिले के चौसा स्थित बहुचर्चित बक्सर थर्मल पावर परियोजना की पहली इकाई का शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गया से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन किया। लगभग 14 हजार करोड़ की लागत से बनी इस परियोजना को बिहार की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में मील का पत्थर बताया जा रहा है। लेकिन उद्घाटन के समानांतर ही, परियोजना से प्रभावित किसान व स्थानीय ग्रामीणों ने इसे “काला दिवस” घोषित कर अपना विरोध दर्ज कराया।
बनारपुर के पूर्व टोला स्थित शिव मंदिर प्रांगण में खेतिहर मजदूर मोर्चा के बैनर तले आयोजित इस विरोध सभा की अध्यक्षता राजनारायण चौधरी और संचालन शिवजी तिवारी ने किया। सभा में शामिल किसान, बेरोजगार नौजवान, महिला मजदूर और ग्रामीणों ने काली पट्टी बांधकर नारे लगाए। उनका कहना था कि जिस दिन परियोजना का उद्घाटन हुआ, वह दिन उनके लिए दुख और शोषण की याद दिलाने वाला “काला दिवस” है।
-- बोले किसान 2013 का भूमि अधिग्रहण कानून लागू नहीं
वक्ताओं ने आरोप लगाया कि परियोजना कंपनी और जिला प्रशासन की मिलीभगत से अब तक किसानों को न तो समुचित मुआवज़ा मिला और न ही रोजगार की गारंटी। उन्होंने कहा कि 2013 में लागू भूमि अधिग्रहण संशोधित अधिनियम के तहत प्रभावित परिवारों को उचित मुआवज़ा और पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए थी, लेकिन आज तक इस पर अमल नहीं हुआ।
किसानों ने कहा कि जिन ज़मीनों पर कभी उनकी फसलें लहलहाती थीं, आज वहां उद्योग तो खड़ा हो गया लेकिन उनके परिवारों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ऊर्जा आत्मनिर्भरता की बात करती है, लेकिन हमारी आत्मनिर्भरता छीन ली गई। जिसका विरोध चौसा के किसान अंतिम दम तक करते रहेंगे।
-- फर्जी मुकदमों और भ्रष्टाचार का आरोप
विरोध सभा में शामिल वक्ताओं ने कंपनी पर कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि किसानों और युवाओं को आंदोलन से रोकने के लिए उन पर अनगिनत फर्जी मुकदमे लाद दिए गए। वहीं, परियोजना से जुड़े मुआवज़े और ठेकेदारी में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने का भी आरोप लगाया गया। सभा में वक्ताओं ने यह भी कहा कि कंपनी और प्रशासन ने स्थानीय लोगों की समस्याओं के समाधान की बजाय दमन का रास्ता अपनाया। इससे ग्रामीणों में गहरी नाराज़गी है।
-- ऐतिहासिक चौसा युद्ध से की तुलना
किसानों ने अपने विरोध को ऐतिहासिक चौसा युद्ध से भी जोड़ा। उन्होंने कहा कि जैसे शेरशाह सूरी ने 1539 में चौसा की धरती पर हुमायूं को हराकर खदेड़ दिया था, उसी प्रकार स्थानीय जनता भी संघर्ष के दम पर “एसटीपीएल कंपनी रूपी हुमायूं” को यहां से खदेड़ेगी। सभा के दौरान किसान नेताओं ने एक स्वर में कहा कि वे न्याय मिलने तक आंदोलन जारी रखेंगे। “चाहे जितना दमन हो, हम अपनी ज़मीन और अधिकार के लिए संघर्ष करते रहेंगे,” राजनरायन चौधरी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा।
-- उद्घाटन पर दिखा जश्न व विरोध
जहां एक ओर सरकार इस परियोजना को बिहार की बढ़ती बिजली ज़रूरतों को पूरा करने वाली बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश कर रही है, वहीं दूसरी ओर प्रभावित किसानों और ग्रामीणों की नाराज़गी इस परियोजना की दूसरी तस्वीर बयां करती है।बक्सर थर्मल पावर परियोजना से बिहार समेत पूर्वी भारत को बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित होगी। लेकिन स्थानीय किसानों का कहना है कि अगर विकास की कीमत उनकी ज़मीन, रोज़गार और भविष्य की सुरक्षा है, तो यह विकास अधूरा और अन्यायपूर्ण है।काला दिवस कार्यक्रम में बृजेश राय, गोविंद साह, नंदलाल सिंह, इस्राइल खां समेत बड़ी संख्या में किसान, बेरोजगार युवा, महिला मजदूर और स्थानीय ग्रामीण उपस्थित रहे। सभी ने यह ठाना कि जब तक न्याय नहीं मिलेगा, आंदोलन जारी रहेगा।
-- चौसा के किसानों के लिए नहीं साबित हुआ जश्न का दिन
बक्सर थर्मल पावर परियोजना का उद्घाटन बिहार की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिहाज़ से भले ही ऐतिहासिक कदम हो, लेकिन चौसा के किसानों और प्रभावित परिवारों के लिए यह दिन जश्न का नहीं, बल्कि संघर्ष और दर्द की याद दिलाने वाला साबित हुआ। यह विरोध साफ संकेत देता है कि विकास की राह तब तक सुगम नहीं हो सकती, जब तक उसमें स्थानीय जनता का विश्वास और उनका हक़ शामिल न हो।