खुलासा: जिले में चकबंदी को लेकर चल रहा है बड़ा रैकेट, आमजन इससे हैं अनजान
जिले में चकबंदी से अधिकत्तर रैयत त्रस्त होते जा रहे है। इसका सहारा लेकर जमीन के दलाल रैयतों को किसी ने किसी परेशानी में फंसा दें रहे है। मजबूरीवश रैयत आनन-फानन में कौड़ियों के भाव से अपनी जमीन बेच दे रहे हैं या जमीन के तथाकथित दलाल उसे हड़प ले रहे है। यदि आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सीओ, डीसीएलआर, एडीएम से लेकर सिविल कोर्ट तक हर प्रखंड से करीब सौ से अधिक मामले चकबंदी से संबंधित वाद चल रहे थे।
चकबंदी की रिपोर्ट को सदर एसडीएम ने किया था दरकिनार, दिया अपना फैसला
केटी न्यूज/बक्सर
जिले में चकबंदी से अधिकत्तर रैयत त्रस्त होते जा रहे है। इसका सहारा लेकर जमीन के दलाल रैयतों को किसी ने किसी परेशानी में फंसा दें रहे है। मजबूरीवश रैयत आनन-फानन में कौड़ियों के भाव से अपनी जमीन बेच दे रहे हैं या जमीन के तथाकथित दलाल उसे हड़प ले रहे है। यदि आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सीओ, डीसीएलआर, एडीएम से लेकर सिविल कोर्ट तक हर प्रखंड से करीब सौ से अधिक मामले चकबंदी से संबंधित वाद चल रहे थे। इसके पीछे मुख्य वजह है कि चकबंदी से संबंधित फर्जी दस्तावेज तैयार कर दिया जा रहा है। जिसमें अधिकारियों को समक्ष दिखाया जाता है कि चकबंदी से संबंधित वाद चकबंदी कार्यालय में चल रहा था। जिसका फैसला वर्षों पहले आया था। उस आधार पर जमीन पर दावा कर जमाबंदी अपने नाम पर करा ली जाती है।
हालांकि इसमें कहीं न कहीं अधिकारी या कर्मियों की मिली भगत से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। जब तक इस बात की जानकारी मूल रैयतों को हो रही है और मूल रैयत कार्यालयों का चक्कर लगाते रह जा रहे है। तथाकथित दलालों की इतनी पकड़ होती है कि रैयत को एक-एक कागजात नहीं मिलने देते है। इसी का फायदा उठाकर जमाबंदी अपने पर दिखाकर तथाकथित दलाल धड़ल्ले से जमीन बेचने में लग जाते है। रैयतों के आंखों के सामने उनकी पुस्तैनी जमीन बिक जा रही है और वह कुछ नहीं कर पा रहे है। ताजा मामला सामने आया है जब एक रैयत गणेश चौबे के चकबंदी कार्यालय से प्राप्त रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया था और वाद से संबंधित आदेश के आधार पर अपना फैसला सुना दिया था।
क्या है चकबंदी का मतलब :
चकबंदी के जरिए अलग-अलग जगहों पर बिखरे हुए खेतों को एक ही जगह पर इकट्ठा करना है। किसानों को उनकी कुल जमीन के बराबर एक ही जगह पर खेत दिए जाते हैं। चकबंदी से खेती करने में आसानी होती है और उत्पादन बढ़ता है। बिहार में 70 के दशक में पहली चकबंदी शुरू हुई थी, लेकिन 1992 में इसे बंद कर दिया गया था।
चकबंदी का खेल :
पूर्व में चकबंदी पदाधिकारी को अंचलाधिकारी के बराबर शक्तियां मिली थी। 1970 से लेकर 1992 के बीच चकबंदी से लेकर कार्य चल रहा था उस समय रैयत अपना चक सही करने के लिए चकबंदी कार्यालय में परिवाददायर किए थे। उस वक्त जो आर्थिक रूप से संपन्न थे या इन बातों को समझ सकते थे उन्होंने ही परिवाददायर किया था। तत्कालीन समय में अधिकत्तर लोग इससे अनभिज्ञ थे आर्थिक रूप से मजबूत भी नहीं थे कि वह प्रखंड और चकबंदी कार्यालय का चक् कर लगाकर परिवाददायर कर सके। परंतु वर्तमान समय में अधिकत्तर लोग नौकरी चाकरी वाले है। दूसरे शहरों में रहते है। जब उनके अभिभावक की मौत होती है वह अपनी जमीन के बारे में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते है या किसी के जिम्मे छोड़कर जा रहे है। उसी वक्त का फायदा उठाकर जमीन के दलाल चकबंदी से फर्जी दस्तावेज बना ले रहे है।
किराया के कारण कार्यालय का भवन कई बार बदला गया :
फर्जी दस्तावेज बनाने में जमीन के दलालों को इसलिए आसानी हो रही है कि चकबंदी कार्यालय जर्जर हो चुके है। कुछ निजी भवन में चल रहे है। किराया के कारण कार्यालय का भवन कई बार बदला गया है। दस्तावेज फट गए है या चुहा या दीमक चट कर चुके है। उसी समय का चकबंदी से संबंधित फर्जी दस्तावेज खड़ा कर दिया जा रहा है। जिसमें दिखाया जा रहा है कि वर्षों पहले उनके पक्ष में फैसला आ चुका है। उसी आधार पर अंचल कार्यालय में मिली भगत से जमाबंदी मूल रैयत से दूसरे के नाम पर हो जा रही है। उसी जमाबंदी के आधार पर जमीन की बिक्री धड़ल्ले से शुरू हो जा रही है। जब तक मूल रैयत को इसकी जानकारी मिलती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। पीड़ित एसडीओ, डीसीएलआर व एडीएम की कोर्ट में चक्कर लगाते रह जा रहे है। सबसे आश्चर्य की बात है कि जब अधिकारियों के समक्ष दिखाया जाता है कि वर्षों पहले जब चकबंदी के केस का आर्डर है। तब अधिकारी यह नहीं पूछ रहे है कि इतने दिनों तक आप कहा था। अभी यह आदेश कहा से लेकर आए है। यदि मूल रैयत चकबंदी कार्यालय से आरटीआई के माध्यम से उस आदेश के बारे में जानकारी प्राप्त करते है तब यहीं सूचना मिलती है कि इस केस से संबंधित कोई दस्तावेज कार्यालय में उपलब्ध नहीं है। अधिकारी सूचना के अधिकार से मिले रिपोर्ट को भी दरकिनार कर देते हैं।
ऐसे हुआ खुलासा
विदित हो कि राजपुर थाना क्षेत्र के सैंथू गांव निवासी गणेश चौबे की जमाबंदी को इसी तरह के चकबंदी आदेश के तहत सीओ ने रद्द कर दिया था। पीड़ित ने डीएम से लेकर एडीएम कोर्ट तक का चक्कर लगाया था। अंत में उन्हें एडीएम कोर्ट से राहत मिली थी। उनके नाम पर जमाबंदी पुनरू बहाल हुआ था। इसी बीच विरोधी ने कुछ जमीन भी बेच दिया था। इसी बीच सदर एसडीओ धीरेन्द्र मिश्रा ने चकबंदी कार्यालय से प्राप्त रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया था। वाद के फैसला के आधार पर अपना निर्णय दे दिया था।