ठंड में मास्क का प्रयोग अनिवार्य रूप से करें टीबी के मरीज: सीएस

टीबी का एक मरीज सालभर में 10 से 15 लोगों को संक्रमित करता है। कहा जाए तो नए मरीज बनाता है। इस बार भी संक्रमण तेजी से फैला लेकिन मास्क ने उसे काफी हद तक फैलने से रोका। लोगों से अपील है कि आगे भी इसी तरह मास्क का उपयोग करते रहें। ताकि कोरोना के साथ अन्य कई तरह की बीमारियां उन्हें चपेट में नहीं लेंगी।

ठंड में मास्क का प्रयोग अनिवार्य रूप से करें टीबी के मरीज: सीएस

- सर्दियों में कोहरे के कारण बढ़ जाती है टीबी के संक्रमण प्रसार की संभावना
- टीबी का एक मरीज 10 से 15 लोगों को कर सकता है संक्रमित

बक्सर | सर्दी हो, कोरोना संक्रमण हो या फिर सांस से जुड़ी हुई कोई भी बीमारी, मास्क के प्रयोग से उसे बचाव मुमकिन है। इसलिए टीबी के मरीजों को मास्क का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। ताकि, मास्क के प्रयोग से टीबी के संक्रमण को रोका जा सके। सर्दियों में टीबी मरीजों की परेशानियां बढ़ जाती हैं , जिसके कारण उन्हें और भी सवधानी बरतने की जरूरत होती । टीबी की बीमारी छींकने, खांसने से फैलती है। बीते वर्षों में कोरोना से बचाव के लिए अधिकांश लोगों ने लगातार मास्क का उपयोग किया है। जिसके कारण टीबी का संक्रमण एक से दूसरे में कम फैला। उन्होंने बताया कि टीबी का एक मरीज सालभर में 10 से 15 लोगों को संक्रमित करता है। कहा जाए तो नए मरीज बनाता है। इस बार भी संक्रमण तेजी से फैला लेकिन मास्क ने उसे काफी हद तक फैलने से रोका। लोगों से अपील है कि आगे भी इसी तरह मास्क का उपयोग करते रहें। ताकि कोरोना के साथ अन्य कई तरह की बीमारियां उन्हें चपेट में नहीं लेंगी।

वायु द्वारा फैलते हैं टीबी के रोगाणु :
सिविल सर्जन सह प्रभारी जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. जितेंद्र नाथ ने बताया, टीबी के रोगाणु वायु द्वारा फैलते हैं। जब फेफड़े का यक्ष्मा रोगी खांसता या छींकता है तो लाखों-करोड़ों की संख्या में टीबी के रोगाणु थूक के छोटे कणों (ड्राप्लेट्स) के रूप में वातावरण में फेंकता है। यही हवा में तैरते हुए ड्रॉप्लेट्स या बलगम के छोटे-छोटे कण जब सांस के साथ स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते और वह व्यक्ति टीबी रोग से ग्रसित हो जाता है। जिसके बाद उनमें भी टीबी के रोगाणु बढ़ने लगते  और उसे टीबी का मरीज बना देते हैं। उन्होंने बताया, चिकित्सा कर्मी की देखरेख में रोगी को अल्पावधि वाली क्षय निरोधक औषधियों के सेवन कराने वाली विधि को डॉट्स (डायरेक्टली ऑब्जर्वड  ट्रीटमेंट शॉर्ट कोर्स) कहते हैं। इसके तहत किया गया इलाज काफी प्रभावी हो जाता है। पूरा कोर्स कर लेने पर यक्ष्मा बीमारी से मरीजों को मुक्ति भी मिल जाती है।

फेफड़ों में टीबी से ग्रसित मरीजों के लिए ठंड घातक: 
सिविल सर्जन डॉ. नाथ ने बताया, टीबी से ग्रसित मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर हो जाती है। ऐसे में ठंड व शीतलहर से बचाव के साथ साथ उचित आहार लेना भी जरूरी है। सर्दियों का  मौसम फेफड़े में टीबी के मरीज के लिए काफी घातक होता है। यदि ठंड  से बचने के लिए समुचित सावधानी नहीं बरती  गई तो सर्द हवा एवं वायु में मिश्रित प्रदूषण के कण फेफड़ों में पहुंचकर टीबी बीमारी को और जटिल बना सकता है। इसलिए उन्हें मास्क का नियमित रूप से प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस मौसम में अच्छी सेहत के लिए मौसमी फलों, हरी सब्जियों के साथ साथ भोजन में दालों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए। ताकि, रोग से उबरने में उन्हें सहायता मिल सके।