ठंढ बुजुर्गों के लिये है जानलेवा, हार्टफेल होने का बना रहता है डर - डॉ. विकास
जिले में दो बुनियाद केन्द्र बुजुर्गों एवं विकालांगों को सेवा देने के लिये खोले गए हैं। शुरूआती दौर में लोगों को इसके संबंध में जानकारी नहीं थी। जैसे-जैसे समय गुजरता गया और लोगों को इसके बारे में जानकारी होती गई केन्द्र में इलाज और अभ्यास के लिये पहुंचने लगे हैं।
केटी न्यूज/डुमरांव
जिले में दो बुनियाद केन्द्र बुजुर्गों एवं विकालांगों को सेवा देने के लिये खोले गए हैं। शुरूआती दौर में लोगों को इसके संबंध में जानकारी नहीं थी। जैसे-जैसे समय गुजरता गया और लोगों को इसके बारे में जानकारी होती गई केन्द्र में इलाज और अभ्यास के लिये पहुंचने लगे हैं। ठंढ के मौसम लोगों को जोड़ों के दर्द और सांस लेने की समस्या बढ़ जाती है। लिहाजा इसमें परहेज करते हुए अपनी दिनचर्या को बदलना पड़ता है। इस संबंध में बुनियाद केन्द्र के डा. विकास कुमार बताते हैं कि बुजुर्गों को सर्दी मंए अक्सर सांस लेने की समस्या बढ़ जाती है। इसके अलावे स्ट्रोक व निमोनिया का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। अतरू ऐसे में ठंढ के मौसम में लापरवाही कभी नहीं करनी चाहिए।
इस समय बुनियाद केन्द्र में सबसे अधिक मरीज घुटने और जोड़ों के दर्द के आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण है ठंढ बढ़ने से मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द की शिकायत बढ़ जाती है। ठंढ में लोगों की शारिरीक एक्टिविटी कम हो जाती है, मशल्स कमजोर हो जाते हैं, इसलिए जोड़ो के दर्द की शिकायत बढ़ जाती है। इसके लिए बेहतर यही है कि प्रतिदिन धूप का सेवन किया जाए, जिससे विटामिन डी प्रचुर मात्रा में मिले। इसके साथ ही प्रतिदिन टहलना चाहिए ताकि शरीर में कैल्शियम की कमी नहीं हो। डा. विकास ने बताया की अत्यधिक ठंढ से ब्लड सर्कुलेशन धीमा हो जाता है, इसलिए प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए। इसके साथ ही हरी सब्जी, साग, उजले तिल सहित पौष्टिक अहार का सेवन करना चाहिए।
मालूम हो कि बुनियाद केन्द्र बुजुर्गों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इसमें निरूशुल्क चिकित्सीय सुविधा मिलती है, जिससे अमीर और गरीब दोनों को समान सेवा मिलती है। केन्द्र में इलेक्ट्रोथेरेपी, आईएफटी, एसडब्लुयूडी, डिजिटल आरआरआर, साइकलिंग जैसे उपकरण मौजूद हैं। डाक्टर का कहना है कि थेरेपी की सहायता से ब्लड सर्कुलेशन और मशल्स को आराम मिलता है। उन्होंने बताया की अत्याधुनिक मशीनों के प्रभाव से इंफेक्टेड पार्ट को पुनरू वस्तु स्थिति पर ले आता है, जिससे रक्त संचार पुनरू धाराप्रवाह होता है और व्यक्ति को आराम मिलता है। ठंढ में जितनी गर्मी की आवश्यकता पड़ती है वह बना नहीं पाता है, इससे उसकी परेशानी बढ़ जाती है।
इस दौरान अक्सर बुजुर्ग हाईपोधर्मिया के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ ही ठंढ बचाव की प्रणाली कमजोर पड़ जाती है। हाईपोथिमिया में धीमी रूकती आवाज, आलस्य, कदमों में लड़खड़ाहट, हृदय गति और सांस के साथ ब्लडप्रेशर बढ़ना इसके लक्षण होते हैं। ठंढ में खासकर मधुमेह या इससे जुड़ी बीमारियां हैं या जो मदिरापान और ड्रग का प्रयोग ज्यादा करते हैं, उन्हें इसका अधिक खतरा रहता है। लिहाजा ऐसे में मौसम में डाक्टर के परामर्श पर चलना चाहिए।