विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम के खिलाफ भाकपा-माले ने निकाला विरोध मार्च

बिहार में मतदाता सूची के श्विशेष गहन पुनरीक्षणश् कार्यक्रम चलाया जा रहा है। भाकपा-माले ने इसे श्वोटबंदीश् का नाम देते हुए डुमरांव शहर में विरोध मार्च निकाला। विरोध मार्च माले कार्यालय से निकलकर एनएच-120, गोला रोड़, शहीद गेट, पुराना थाना रोड़ होते हुए नया थाना पहुँचा, जहाँ इसे सभा मे तब्दील हो गया।

विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम के खिलाफ भाकपा-माले ने निकाला विरोध मार्च

-- डुमरांव नया थाना के मुख्य गेट पर माले कार्यकर्ताओं ने जमकर किया विरोध प्रदर्शन

केटी न्यूज/डुमरांव  

बिहार में मतदाता सूची के श्विशेष गहन पुनरीक्षणश् कार्यक्रम चलाया जा रहा है। भाकपा-माले ने इसे श्वोटबंदीश् का नाम देते हुए डुमरांव शहर में विरोध मार्च निकाला। विरोध मार्च माले कार्यालय से निकलकर एनएच-120, गोला रोड़, शहीद गेट, पुराना थाना रोड़ होते हुए नया थाना पहुँचा, जहाँ इसे सभा मे तब्दील हो गया।

थाना गेट पर पहुंचते ही कार्यकर्ताओं ने जमकर सरकार विरोधी नारे लगाए। कार्यक्रम की अध्यक्षता ऐपवा की जिला सह सचिव पूजा यादव ने किया। सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि बिहार में चुनाव आयोग का एसआईआर यानि ष्स्पेशल इंटेंसिव रिवीजनष् आदेश लोकतंत्र नहीं, वोटरों को मिटाने की स्कीम है। गरीबों, दलितों, मुसलमानों और पिछड़ों को वोटर लिस्ट से हटाने की हर एक कोशिश के खिलाफ हमारी लड़ाई हर मोर्चे पर जारी रहेगी। ज़मीन पर संघर्ष और विरोध प्रदर्शन हमेशा होते रहेगा।

माले नेताओं का कहना था कि विशेष पुनरीक्षण पर जितनी सफाई चुनाव आयोग दे रहा है, मामला उतना ही ज़्यादा उलझाऊ और संदेहास्पद होता जा रहा है। श्विशेष गहन पुनरीक्षणश् यह कोई हर साल होने वाली सामान्य प्रक्रिया नहीं है। आज़ादी के बाद से आज तक कभी किसी मतदाता से उसकी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ नहीं मांगे गए। अब हर मतदाता पर शक करके ऐसे कागज़ मांगे जा रहे हैं, जो आज भी करोड़ों भारतीयों के पास नहीं हैं।

लोगों को दशकों पुराने रिकॉर्ड खोजने पर मजबूर करने के बजाय, राज्य को जन्म-मृत्यु का सार्वभौमिक पंजीकरण सुनिश्चित करना चाहिए ताकि रिकॉर्ड अपने आप अपडेट हो। चुनाव आयोग यह क्यों नहीं बताता कि श्विशेष गहन पुनरीक्षणश् जैसी बड़ी प्रक्रिया शुरू करने से पहले किसी राजनीतिक दल से कोई सलाह-मशविरा क्यों नहीं किया गया? इसे इतनी चुपके से और अचानक क्यों लागू किया गया? जब नोटबंदी अचानक लागू हुई थी तो सरकार ने कहा था कि काले धन वालों को चौंकाना है।

क्या चुनाव आयोग भी बिहार के मतदाताओं को इसी तरह फंसाना चाहती है? चुनाव आयोग 4.96 करोड़ मतदाताओं की बात करके झूठी तसल्ली दे रह है कि उन्हें दस्तावेज़ नहीं देने होंगे। लेकिन लगभग 3 करोड़ मतदाता, खासकर गरीब, दलित, पिछड़े और मज़दूर, जिनके पास दस्तावेज़ नहीं हैं, उनका क्या होगा? कितनों को इस बहाने मतदाता सूची से बाहर कर दिया जाएगा ? चुनाव आयोग को यह मनमाना, अवैज्ञानिक और अपारदर्शी आदेश तुरंत वापस लेना चाहिए।

चुनाव आयोग का काम मतदाताओं को सुविधा देना है, न कि नई-नई अड़चनें खड़ी करके करोड़ों लोगों को लोकतंत्र से बाहर करना। मार्च में डुमराँव प्रखण्ड सचिव कन्हैया पासवान, ऐपवा नेत्री पूजा यादव, ललन राम, जाबिर कुरैसीउषा देवी, बुधिया देवी, श्रीभगवान पासवान, काजल देवी, चांदनी देवी, शिला देवी, बिहारी महतो, श्यामनारायण राम, चुन्नू यादव सहित अन्य लोग शामिल रहें।