कालानमक धान का बढ़ा क्रेज,पिछले साल की तुलना में बीज की बिक्री करीब 20 फीसदी बढ़ी

दो साल पहले मुख्यमंत्री ने सिद्धार्थनगर में कालानमक के लिए कॉमन फैसिलिटी सेंटर का लोकार्पण किया था।

कालानमक धान का बढ़ा क्रेज,पिछले साल की तुलना में बीज की बिक्री करीब 20 फीसदी बढ़ी
Yogi adityanath

केटी न्यूज़/लखनऊ

दो साल पहले मुख्यमंत्री ने सिद्धार्थनगर में कालानमक के लिए कॉमन फैसिलिटी सेंटर का लोकार्पण किया था।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर जबसे कालानमक धान को सिद्धार्थनगर का ओडीओपी घोषित किया गया है तब से इसका क्रेज बढ़ता जा रहा है।दो साल पहले प्रधानमंत्री ननरेंद्र मोदी ने कालानमक को लोकप्रिय बनाने के लिए वहां के तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक मीणा को सम्मानित भी किया था।

कालानमक धान की इस लोकप्रियता के पीछे योगी सरकार की बड़ी भूमिका है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर शासन के उच्चाधिकारियों ने किसानों के साथ सिद्धार्थनगर जाकर बैठकों के साथ फील्ड विजिट किया। किसानों से उनकी समस्याएं जानीं। सरकार की ओर से कपिलवस्तु में कालानमक महोत्सव का शुभारंभ खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। कुशीनगर में आयोजित अंतराष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव में आये बौद्ध देश के अतिथियों को गिफ्ट हैंपर के रूप में कालानमक चावल दिया गया।  योगी सरकार के इन सारे प्रयासों का नतीजा सबके सामने है। 

पिछले साल की तुलना में बीज की बिक्री में करीब 20 फीसदी की वृद्धि इसका सबूत है। यही नहीं स्वाद, सुगंध और पौष्टिकता में बेमिसाल होने के नाते अन्य राज्यों में भी इसका विस्तार हो रहा है। इस साल छत्तीसगढ़, बिहार, एमपी, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और हरियाणा से भी बीज की ठीक ठाक मांग आई है।

कालानमक धान पर दो दशक से काम कर रहे पद्मश्री से सम्मानित कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरसी चौधरी के अनुसार उनके पास जितने बीज की मांग जीआई वाले पूर्वांचल के 11 जिलों से आई है लगभग उतनी ही मांग छत्तीसगढ़ से भी निकलने का अनुमान है।उत्तर प्रदेश की बात करें तो जीआई वाले जिलों के अलावा बलिया, आजमगढ़, जौनपुर, सुल्तानपुर, प्रयागराज, उन्नाव, प्रतापगढ़  आदि वे जिले हैं जहां से कालानमक धान के बीज की अच्छी मांग निकली है।थोड़ी-बहुत डिमांड तो कई प्रदेशों एवं जिलों से है। 

किसानों में इसका क्रेज देखते हुए कालानमक धान के अनुसंधान पर भी जोर है। वाराणसी स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट इस पर शोध कर रहा। वह कई प्रजातियों पर ट्रायल कर रहा है। ट्रायल में जो प्रजाति बेहतर निकलेगी उसे किसानों में लोकप्रिय किया जाएगा। उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों के बीच काम करने वाली संस्था सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलेपमेंट को इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने पिछले साल कालानमक की 15 प्रजातियों को एक जगह छोटे-छोटे रकबे में डिमांस्ट्रेशन के लिए उपलब्ध कराया है। कटाई पर इसमें से जो भी सर्वश्रेष्ठ होगा उसे किसानों में लोकप्रिय बनाया जाएगा। एनबीआरआई भी कालानमक पर एक शोध प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है।

कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरसी चौधरी के मुताबिक पिछले साल कालानमक धान का रकबा सिर्फ जीआई वाले जिलों में करीब 80 हजार हेक्टेयर था। 2024 में बीज बिक्री के अबतक के आंकड़ों के अनुसार यह एक लाख हेक्टेयर तक पहुंच जाएगा। अन्य जिलों और प्रदेशों को शामिल कर लें तो यह रकबा अपेक्षा से बहुत  अधिक होगा। मात्र सात साल में इसके रकबे में करीब चार गुना वृद्धि हुई। 2016 में इसका रकबा सिर्फ 2200 हेक्टेयर था, जो 2022 में बढ़कर 70 हजार हेक्टेयर से अधिक हो गया। 2024 में इसके एक लाख हेक्टेयर से अधिक होने की उम्मीद है।