शिक्षा माफिया अजय सिंह के डर से विभाग के 'थरथर' कांप रहे विभाग के अधिकारी पत्नी के निलंबन में क्यों दी विशेष छूट
बक्सर शिक्षा विभाग के तथाकथित दलाल और खुद को पारदर्शिता का पैरोकार बताने वाले अजय सिंह की पत्नी शोभा सिंह के निलंबन मामले में विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। विभागीय दस्तावेजों और सूत्रों से जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वे चौंकाने वाले हैं। इसके अलावे तकनीकी प्रमाण भी इस ओर इशारा कर रहे है कि निलंबन अवधि में उक्त शिक्षिका एक भी दिन बीआरसी नहीं पहुंची थी। उसका मोबाईल लोेकेशन इस बात के प्रत्यक्ष गवाही दे रहे है। दरअसल, शोभा सिंह को करीब डेढ़ साल पहले निलंबित कर दिया गया था।

-- मोबाईल लोकेशन के आधार पर निलंबन अवधि में शोभा एक भी दिन नहीं पहुंची थी बीआरसी
-- बीईओ और विभागीय अधिकारियों की भूमिका पर सवाल
केटी न्यूज/बक्सर
बक्सर शिक्षा विभाग के तथाकथित दलाल और खुद को पारदर्शिता का पैरोकार बताने वाले अजय सिंह की पत्नी शोभा सिंह के निलंबन मामले में विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। विभागीय दस्तावेजों और सूत्रों से जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वे चौंकाने वाले हैं। इसके अलावे तकनीकी प्रमाण भी इस ओर इशारा कर रहे है कि निलंबन अवधि में उक्त शिक्षिका एक भी दिन बीआरसी नहीं पहुंची थी। उसका मोबाईल लोेकेशन इस बात के प्रत्यक्ष गवाही दे रहे है। दरअसल, शोभा सिंह को करीब डेढ़ साल पहले निलंबित कर दिया गया था। निलंबन अवधि में विभागीय नियमों के अनुसार उन्हें सिमरी बीआरसी मुख्यालय में उपस्थिति दर्ज करानी थी। लेकिन मोबाइल लोकेशन और विभागीय रिकार्ड बताते हैं कि उन्होंने एक भी दिन बीआरसी जाकर हाजिरी नहीं बनाई। इसके बावजूद उन्हें न केवल निलंबन अवधि में आधा वेतन मिलता रहा, बल्कि निलंबन समाप्त होते ही बकाया वेतन का भुगतान भी कर दिया गया।
बीईओ की संदिग्ध भूमिका
पूरे मामले में सिमरी बीईओ त्रिलोकी नाथ पांडेय की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। नियमों के अनुसार यदि कोई निलंबित शिक्षक या शिक्षिका मुख्यालय में उपस्थित नहीं होती, तो बीईओ को तत्काल उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट भेजनी होती है। लेकिन शोभा सिंह के मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ।सूत्रों का कहना है कि या तो बीईओ उन पर मेहरबान थे या फिर अजय सिंह के दबाव में। अन्य शिक्षकों के मामले में विभाग जहां कठोर रुख अपनाता है, वहीं शोभा सिंह के मामले में नियमों को ताक पर रख दिया गया।
-- विवादों से घिरी रही नियुक्ति
शोभा सिंह की नियुक्ति कठार मध्य विद्यालय में हुई थी। लेकिन वहां भी विवाद खड़ा हो गया। सहकर्मी शिक्षिका संगीता देवी के साथ उनका मनमुटाव इतना बढ़ा कि मामला मारपीट तक पहुंच गया। संगीता देवी ने वर्ष 2007 में अजय सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इस मामले में उन्हें निचली अदालत से सजा भी हुई, जो वर्तमान में जिला जज की अदालत में अपील के स्तर पर लंबित है।
-- प्रतिनियुक्ति का खेल
विवाद के बाद अजय सिंह ने पत्नी को कठार विद्यालय से हटवाकर नवसृजित प्राथमिक विद्यालय दिया परमेश्वर मठिया में प्रतिनियुक्त करवा दिया। शिक्षा विभाग में आए कई आदेशों में स्पष्ट कहा गया कि प्रतिनियुक्ति की व्यवस्था समाप्त की जाए, लेकिन शोभा सिंह पर यह आदेश लागू नहीं हुआ। यानी विभागीय नियम सबके लिए एक जैसे नहीं रहे।
-- अधिकारियों की चुप्पी भी सवालों में
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) विष्णुकांत राय, जिन्हें नियमों के पालन के लिए जाना जाता है, वे भी इस मामले में चुप्पी साधे रहे। बकाया वेतन भुगतान के पहले उन्होंने न तो जरूरी जांच की और न ही रिपोर्ट पर गौर किया। विभागीय हलकों का कहना है कि इसका कारण अजय सिंह और उनके राजनीतिक रिश्ते हैं। बताया जाता है कि सांसद सहयोगी अरविंद सिंह के साथ अजय सिंह की पकड़ ने ही अधिकारियों को खामोश कर दिया।
-- दोहरा मापदंड क्यों अपना रहा विभाग
शिक्षिका शोभा सिंह के निलंबन तोड़ने तथा लगे हाथ समस्त बकाए के भुगतान से बक्सर शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े करता है। सवाल उठता है कि आखिर क्यों निलंबित रहने के बावजूद शोभा सिंह को बीआरसी मुख्यालय में हाजिरी से छूट दी गई। बीईओ ने नियमों के तहत रिपोर्ट क्यों नहीं भेजी।प्रतिनियुक्ति रद्द करने का आदेश सभी पर लागू हुआ, लेकिन शोभा सिंह पर नहीं, क्यों। जबकि नियम कहता है कि प्रमुख व उप प्रमुख की कुर्सी खाली रहने पर नियोजन इकाई के सचिव सह बीडीओ को विभाग से मार्गदर्शन मांगना चाहिए। सवाल ये भी है कि अधिकारियों ने जांच-पड़ताल के बिना बकाया वेतन का भुगतान क्यों किया तथा क्या इस मामले में दोषी विभागीय अधिकारियों व सिमरी प्रशासन पर जिला प्रशासन के द्वारा कोई कार्रवाई की जाएगी कि नहीं।