'मौत के बाद भी..' ये शहीद आज भी करते है ड्यूटी, मिलती है सैलरी
मौत के 50 साल बाद भी 'सिपाही हरभजन सिंह' सिक्किम सीमा पर हमारे देश की सुरक्षा कर रहे हैं।
केटी न्यूज़/दिल्ली
क्या मौत के बाद भी कोई सीमा की निगहबानी कर सकता है.? क्या मौत के बाद भी कोई आपकी सुरक्षा के लिए खड़ा रह सकता है.? लेकिन ऐसे हुआ है। मौत के 50 साल बाद भी 'सिपाही हरभजन सिंह' सिक्किम सीमा पर हमारे देश की सुरक्षा कर रहे हैं।यही कारण है कि आज भी भारतीय सेना उनके मंदिर का रखरखाव करती है और उनके मंदिर में पूजा-पाठ की जिम्मेदारी भी सेना के जिम्मे है। कई लोगों का कहना है कि पंजाब रेजिमेंट के जवान हरभजन सिंह की आत्मा पिछले 50 सालों से लगातार देश के सीमा की रक्षा कर रही है।
इस मामले में सेना के जवानों ने बताया कि एक दिन जब वो खच्चर पर बैठ कर नदी पार कर रहे थे, तभी खच्चर सहित हरभजन नदी में बह गए।नदी में बह कर उनका शव काफी आगे निकल गया।ऐसा कहा जाता है कि दो दिन की गहन तलाशी के बावजूद भी जब उनका शव नहीं मिला। तब उन्होंने खुद ही अपने एक साथी सैनिक के सपने में आकर अपनी शव वाली जगह बताई।सुबह उस सैनिक ने अपने साथियों को हरभजन वाले सपने के बारे में बताया और जब सैनिक सपने में बताए जगह पर पहुंचे तो वहां हरभजन का शव पड़ा हुआ था। बाद में पूरे राजकीय सम्मान के साथ हरभजन का अंतिम संस्कार किया गया।हरभजन सिंह के इस चमत्कार के बाद साथी सैनिकों ने उनके बंकर को एक मंदिर का रूप दे दिया, जो की ‘बाबा हरभजन सिंह मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।
बाबा हरभजन के बारे में वहां तैनात सैनिकों का कहना है कि वो अपनी मृत्यु के बाद भी लगातार अपनी ड्यूटी दे रहे हैं।इनके लिए उन्हें बाकायदा तनख्वाह भी दी जाती है और सेना में उनकी एक रैंक भी है। यही नहीं कुछ साल पहले तक उन्हें दो महीने की छुट्टी पर पंजाब में उनके गांव भी भेजा जाता था।इसके लिए ट्रेन में उनकी सीट रिज़र्व की जाती थी और तीन सैनिकों के साथ उनका सारा सामान गांव भेजा जाता था और फिर दो महीने पूरे होने के बाद वापस सिक्किम लाया जाता था।मंदिर में बाबा का एक कमरा भी है, जिसमें रोज सफाई करके बिस्तर लगाए जाते हैं।कमरे में बाबा की सेना की वर्दी और जूते रखे जाते हैं।लोगों का कहना है कि रोज़ सफाई करने के बावजूद उनके जूतों में कीचड़ और चद्दर पर सलवटें पाई जाती हैं।
हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को गुजरावाला में हुआ था, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में है।हरभजन सिंह साल 1966 में 24वीं पंजाब रेजिमेंट में बतौर जवान भर्ती हुए थे।हरभजन सिंह सेना को अपनी सेवाएं केवल 2 साल ही दे पाए और साल 1968 में सिक्किम में तैनाती के दौरान एक हादसे में मारे गए।आप चाहे इस पर भरोसा करें या नहीं, चीनी सैनिकों को भी बाबा हरभजन सिंह पर पूरा यकीन है। इसलिए भारत और चीन के बीच होने वाली हर फ्लैग मीटिंग में बाबा हरभजन सिंह के नाम की खाली कुर्सी लगाई जाती है, ताकि वो मीटिंग अटेंड कर सकें।