जिला शिक्षा कार्यालय में ठेकेदारी का खेल, साई इंटरप्राइजेज पर उठ रहे सवाल
बक्सर का जिला शिक्षा कार्यालय इन दिनों चर्चा के केंद्र में है। वजह है, साई इंटरप्राइजेज नामक एक निजी कंपनी, जिस पर सवालों की झड़ी लग गई है। आरोप लग रहा है कि यह कंपनी शिक्षा विभाग के कई महत्वपूर्ण कामों पर लगभग ‘एकछत्र राज’ कायम किए हुए है। बेंच-डेस्क की आपूर्ति से लेकर सरकारी स्कूल भवनों की मरम्मति, बोरिंग का कार्य और यहां तक कि मध्याह्न भोजन (एमडीएम) सामग्री की आपूर्ति तक, हर जगह साई इंटरप्राइजेज का दबदबा दिखाई देता है।

- सांसद सहयोगी व अजय के संरक्षण में कंपनी का वर्चस्व, बेंच-डेस्क से लेकर मध्यान्ह भोजन तक ठेकेदारी पर चर्चा
केटी न्यूज/बक्सर
बक्सर का जिला शिक्षा कार्यालय इन दिनों चर्चा के केंद्र में है। वजह है, साई इंटरप्राइजेज नामक एक निजी कंपनी, जिस पर सवालों की झड़ी लग गई है। आरोप लग रहा है कि यह कंपनी शिक्षा विभाग के कई महत्वपूर्ण कामों पर लगभग ‘एकछत्र राज’ कायम किए हुए है। बेंच-डेस्क की आपूर्ति से लेकर सरकारी स्कूल भवनों की मरम्मति, बोरिंग का कार्य और यहां तक कि मध्याह्न भोजन (एमडीएम) सामग्री की आपूर्ति तक, हर जगह साई इंटरप्राइजेज का दबदबा दिखाई देता है।
स्थानीय सूत्रों की मानें तो यह कंपनी सीधे तौर पर सांसद के सहयोगी अरविंद सिंह और अजय सिंह की देखरेख में काम कर रही है। यही वजह है कि इस कंपनी के ठेकों में कभी अड़चन नहीं आती और भुगतान की प्रक्रिया भी सामान्य से तेज़ रहती है।
साई इंटरप्राइजेज का नाम सबसे पहले सरकारी स्कूलों में बेंच-डेस्क की आपूर्ति के दौरान चर्चा में आया था। बाद में कंपनी ने स्कूल भवनों की मरम्मति और बोरिंग का कार्य भी अपने हाथों में लिया। इतना ही नहीं, अब कंपनी मध्यान्ह भोजन योजना के अंतर्गत दी जाने वाली सामग्री की सप्लाई भी कर रही है।
एमडीएम कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, सदर अनुमंडल के बक्सर, इटाढ़ी और चौसा प्रखंडों के कई स्कूलों में साई इंटरप्राइजेज द्वारा सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। चावल को छोड़कर अन्य सामग्री जैसे दाल, मसाले, तेल, नमक आदि कंपनी ही उपलब्ध कराती है।
-- कार्यालय तक जाने की नहीं पड़ती है जरूरत
शिक्षा विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि साई इंटरप्राइजेज को विशेष छूट प्राप्त है। सामान्य ठेकेदारों को भुगतान के लिए महीनों जिला शिक्षा कार्यालय का चक्कर काटना पड़ता है, लेकिन इस कंपनी का बिल सीधे पारित हो जाता है। आरोप है कि सांसद सहयोगी व अजय के प्रभाव के कारण यह संभव हो पाता है।
इस मामले में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सांसद सहयोगी व अजय सिंह की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि साई इंटरप्राइजेज के पीछे इन्हीं दोनों का संरक्षण है और इसी कारण यह कंपनी लगातार बड़े-बड़े ठेके हासिल करती जा रही है।
-- आधिकारिक पुष्टि का इंतजार
हालांकि अब तक इस मामले में शिक्षा विभाग या जिला प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। एमडीएम सामग्री आपूर्ति को लेकर भी विभागीय स्तर पर लिखित पुष्टि नहीं हो पाई है। फिर भी, ज़मीनी हकीकत और स्थानीय सूत्रों की मानें तो साई इंटरप्राइजेज का दबदबा शिक्षा विभाग के कई हिस्सों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
-- उठ रहे है कई सवाल
जिला शिक्षा विभाग में साई इंटरप्राइजेज के दबदबे से कई सवाल खड़े हो रहे है। सवाल उठ रहा है कि क्या जिला शिक्षा कार्यालय में ठेकेदारी के नाम पर मनमानी हो रही है। सवाल तो ये भी उठ रहा है कि क्या सांसद सहयोगियों के दबाव में विभाग काम कर रहा है, क्या सरकारी नियम-कायदों की अनदेखी कर एक ही कंपनी को लगातार ठेके दिए जा रहे हैं तथा क्या एमडीएम सामग्री आपूर्ति की प्रक्रिया पारदर्शी है।
इन सवालों का जवाब मिलना बाकी है। लेकिन इतना तय है कि शिक्षा विभाग से जुड़ी योजनाओं और खर्चों पर निगाह रखने वालों के बीच अब साई इंटरप्राइजेज का नाम तेजी से चर्चा का विषय बन चुका है।
-- डीईओ कार्यालय में हो रही है प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप की चर्चा
जिला शिक्षा कार्यालय पर हमेशा से अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन इस बार मामला गंभीर है क्योंकि इसमें सांसद सहयोगियों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप की चर्चा खुलेआम हो रही है। यदि आरोपों में सच्चाई है तो यह शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता और ईमानदारी पर गहरी चोट है।
अब देखना यह है कि जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग इस मामले में कब और किस स्तर पर कार्रवाई करते हैं। तब तक जिला शिक्षा कार्यालय और साई इंटरप्राइजेज को लेकर उठ रहे सवालों की गूंज थमने वाली नहीं दिखती।
वहीं, विभागीय सूत्रों का कहना है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी सबकुछ जानते हुए भी मौन साधे हुए है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर सबकुछ जानते हुए भी विभागीय अधिकारी आखिर किस दबाव में चुप बैठे है। जबकि साईं इंटर प्राइजेज द्वारा बेंच-डेस्क की आपूर्ति में विभागीय मानकों को तार-तार करने के साथ ही एमडीएम योजना में भी लूट मचाई जा रही है।