उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की पुण्यतिथि पर डुमरांव में सजी संगीतमयी शाम
भारत रत्न शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की पुण्यतिथि बुधवार को डुमरांव में श्रद्धा और संगीतमय माहौल के साथ मनाई गई। अवसर था हरिजी के हाता स्थित बिस्मिल्लाह खां संगीत एकेडमी का, जहां एकेडमी के छात्र-छात्राओं ने अपनी कलात्मक प्रस्तुतियों से उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

-- बिस्मिल्लाह खां संगीत एकेडमी में छात्र-छात्राओं ने दी मनमोहक प्रस्तुतियां, संगीत महाविद्यालय खोलने की तैयारी जारी
केटी न्यूज/डुमरांव
भारत रत्न शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की पुण्यतिथि बुधवार को डुमरांव में श्रद्धा और संगीतमय माहौल के साथ मनाई गई। अवसर था हरिजी के हाता स्थित बिस्मिल्लाह खां संगीत एकेडमी का, जहां एकेडमी के छात्र-छात्राओं ने अपनी कलात्मक प्रस्तुतियों से उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत एकेडमी के नन्हें कलाकार कृष ने हार्माेनियम पर शानदार प्रस्तुति देकर की। उनकी मधुर धुनों ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इसके बाद खुशी, खुशबू, मुन्ना और आचार्य आशीष पांडेय ने क्रमशः शास्त्रीय और अर्धशास्त्रीय प्रस्तुतियों से समा बांधा। प्राचार्या कुमारी सुमन ने भी इस मौके पर एक भजन प्रस्तुत किया, जिसे दर्शकों ने सराहना के साथ सुना। उन्होंने कहा कि बिस्मिल्लाह खां संगीत एकेडमी न सिर्फ संगीत प्रेमियों को मंच प्रदान कर रही है, बल्कि यहां प्रभाकर स्तर का कोर्स भी कराया जाता है, जिसमें छात्रों को बेहतरीन प्रशिक्षण दिया जाता है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद डॉ. बी.एल. प्रवीण ने कहा कि डुमरांव की माटी से जुड़े उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का नाम पूरी दुनिया में गूंजता है। उन्होंने बताया कि बिहार सरकार की ओर से डुमरांव में बिस्मिल्लाह खां संगीत महाविद्यालय खोलने का प्रयास जारी है। यदि यह सपना साकार होता है तो न केवल संगीत प्रेमियों को उच्चस्तरीय मंच मिलेगा बल्कि स्थानीय प्रतिभाओं को भी राष्ट्रीय पहचान हासिल होगी।
श्रोताओं में हरेराम मिश्र, प्रभुनाथ यादव, मदन प्रसाद समेत कई लोग मौजूद रहे, जिन्होंने छात्र-छात्राओं के प्रदर्शन को खूब सराहा। मौके पर उपस्थित लोगों ने एक स्वर से कहा कि संगीत को बढ़ावा देने के लिए डुमरांव जैसे ऐतिहासिक नगर में बिस्मिल्लाह खां के नाम पर संस्थानों का विस्तार होना बेहद आवश्यक है।
कार्यक्रम का समापन उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हुआ। पूरा वातावरण संगीतमय हो उठा और एक बार फिर साबित हो गया कि उस्ताद की विरासत आज भी डुमरांव की गलियों में सांस ले रही है।