गुरुपूर्णिमा वाले दिन इन देवी के मंदिर और प्रांगण में तिल रखने के लिए नहीं बचती जगह

हमीरपुर शहर से दस किमी दूर कालपी मार्ग किनारे झलोखर गांव में एक प्राचीन देवी मां का मंदिर स्थित है।

गुरुपूर्णिमा वाले दिन इन देवी के मंदिर और प्रांगण में तिल रखने के लिए नहीं बचती जगह
Temple

केटी न्यूज़/हमीरपुर

हमीरपुर शहर से दस किमी दूर कालपी मार्ग किनारे झलोखर गांव में एक प्राचीन देवी मां का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में मां भुईया रानी की प्रतिमा विराजमान है। यहां आषाढ़ मास के प्रत्येकर रविवार को मेला लगता है। बुंदेलखंड और आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष यहां आकर मां के दरबार में हाजिरी लगाते है। आषाढ़ माह के आखिरी रविवार को गुरु पूर्णिमा पड़ने से आज इस स्थान में सुबह से ही लोगों के आने का तांता लग लग गया। देर शाम तक मंदिर के बाहर प्रांगण में विशेष पूजा और अनुष्ठान का दौर चलता रहा।

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के एक गांव में प्राचीन देवी मंदिर में आज गुरु पूर्णिमा की धूम दिन भर मची रही। चर्मरोग बीमारी से निजात पाने के लिए मंदिर के सरोवर में स्नान करने के लिए भी लोगों की भीड़ जुटी। इतना ही नहीं स्नान के बाद देवी मां के दरबार में श्रद्धालुओं ने माथा टेका। मंदिर के पीछे असाध्य रोग ठीक करने के लिए श्रद्धालुओं ने मिट्टी भी ली। आषाढ़ मास के आखिरी रविवार को गुरुपूर्णिमा होने की वजह से मंदिर और प्रांगण में तिल रखने के लिए जगह नहीं बची।

राजा हम्मीरदेव के शासनकाल में देवी मां का यह स्थान अस्तित्व में आया था। उस जमाने में हम्मीदेव भी परिवार के साथ माता रानी के दरबार में माथा टेकने आते थे। नीम के पेड़ से प्रकट हुई भुईया रानी का यह स्थान बहुत की खास है। मंदिर के बगल में ही एक बड़ा सरोवर है। देवी मां के दर्शन करने से पहले इस सरोवर में श्रद्धालुओं को स्नान कर पवित्र होना पड़ता है।

इस स्थान की बड़ी विशेषता है। मंदिर के बगल में सरोवर है, जिसका जल भी बीमारी से छुटकारा दिलाता है। बताया कि चर्मरोग से पीड़ित लोग रविवार को इस सरोवर में स्नान कर माता रानी के दराबर में माथा टेकते है, जिससे उनकी यह बीमारी ठीक हो जाती है। इस सरोवर का जल और मंदिर के पीछे पड़ी मिट्टी भी असाध्य बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।

पिछले कई दशकों से इस मंदिर की छत डालने की कोशिश की जा रही है, लेकिन छत नहीं पड़ पाई है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि माता रानी का यह मंदिर छत विहीन है। कई बार मंदिर की छत डाली गई, लेकिन छत पड़ते ही यह ढह जाती है। गांव और दूरदराज से तमाम कारीगरों को इस काम के लिए बुलवाया गया, लेकिन लेटर डालने आए कारीगर भी हैरान होकर लौट गए।