पंचकोशी यात्रा शुरू : पहले दिन अहिरौली में पड़ा पड़ाव, परंपरागत तरीके से श्रद्धालुओं ने खाया पकवान

पंचकोशी यात्रा शुरू : पहले दिन अहिरौली में पड़ा पड़ाव, परंपरागत तरीके से श्रद्धालुओं ने खाया पकवान
पंचकोशी परिक्रमा की शुरुआत करते साधु-संत

- गंगा पुत्र महाराज ने बताया महत्व, कहा-त्रेता युग से चली आ रही है परंपरा

- सोमवार को सदर प्रखंड के नदांव स्थित नारद सरोवर पर यात्रा का होगा ठहराव

केटी न्यूज/बक्सर

बक्सर में त्रेता युग से चली आ रही पंचकोशी परिक्रमा की शुरुआत हो चुकी है। पहले दिन पंचकोशी यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं का जत्था रामरेखा घाट पहुंच मां विधि विधान से मां गंगा की पूजा अर्चना कर वहा से पवित्र गंगाजल पंचकोशी परिक्रमा पर आगे बढ़ा। पहले दिन का पड़ाव अहिरौली रहा। जहां माता अहिल्या को नमन कर परंपरागत तरीके से पुआ तथा अन्य पकवान बना प्रसाद ग्रहण किया गया। हालांकि इस दौरान श्रद्धालुओं को कुव्यवस्थाओं का भी सामना करना पड़ा। अहिल्या धाम ट्रस्ट के उपाध्यक्ष मधुसूदन चौबे ने बताया कि नाली टूटने से मंदिर के मार्ग में कीचड़ हो गया है। वहीं, पंचकोशी परिक्रमा शुरू होने से पहले प्रशासन द्वारा इसकी तैयारियों की पोल भी पहले ही दिन खुल गई है। पांच दिनों में पांच गांवों तक पड़ने वाले पड़ाव में अलग अलग व्यंजनों का प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा है। गंगा पूजन कर इस यात्रा की शुरूआत करने वालों में समिति अध्यक्ष अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज के साथ ही भोला बाबा, कुलशेखर जी महाराज, अनुराग दास जी महाराज, सुबेदार पांडेय, विश्व हिन्दू परिषद के संत प्रमुख कन्हैया पाठक, चंद्रभूषण उपाध्याय समेत कई अन्य संत महात्मा व श्रद्धालु शामिल थे।  

पांचों दिन अलग अगल गांवों में पड़ता है पड़ाव

पंचकोशी यात्रा कुल पांच दिनों का होता है तथा पांचों दिन अलग अलग गांवों में इसका पड़ाव पड़ता है तथा अलग-अलग प्रसाद भी ग्रहण किया जाता है। पंचकोशी परिक्रमा समिति के संयुक्त सचिव सूबेदार पांडेय ने बताया कि सोमवार को यह यात्रा श्रीनारद जी की तपोस्थली नदांव पहुंचेगी। जहां सत्तू और मूली खाने की परंपरा है। जबकि अगले दिन भार्गव आश्रम भभुअर में दही चूड़ा, बुधवार को छोटका नुआंव स्थित महर्षि उद्यालक आश्रम में खिचड़ी-चोखा तथा पांचवें और अंतिम दिन गुरुवार को चरित्रवन पहुंच यह यात्रा संपन्न होगी। इस दिन लिट्टी चोखा खाने का विधान है। 

ताड़का वध के बाद भगवान श्रीराम ने किया था पंचकोशी परिक्रमा

मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम व लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा करने आए थे तब ताड़का के वध के बाद महर्षि विश्वामित्र के आश्रम से पांच कोश में फैले अलग-अलग ऋषि महर्षियों के आश्रम में पहुंच उनके दर्शन किए थे। इस दौरान उन्हें अलग-अलग ऋषियों के आश्रम में जो चीजें खिलाई थी वही चीजें आज भी प्रसाद स्वरूप खाया जाता है। 

श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बना पंचकोशी परिक्रमा यात्रा

पंचकोशी परिक्रमा यात्रा श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बन गया है। पहले दिन से ही हजारों श्रद्धालु इस परिक्रमा से जुड़ गए है। इस बार बक्सर में चल रहे सनातन संस्कृति समागम के कारण भी इस यात्रा का महत्व बढ़ गया है। सनातन संस्कृति में भगवान राम की कर्मभूमि व शिक्षा स्थली का दर्शन करने आए देश के कोने कोने से साधु संतो को इस बात पर आश्चर्य दिखा की त्रेता में प्रभु श्रीराम द्वारा शुरू की गई पंचकोशी की परंपरा आज दो युगों के बाद भी जीवंत बनी हुई है। परिक्रमा शुरू होने के बाद साधु संत भी इस संबंध में जानकारी ले रहे थे। कई तो इस यात्रा में कुछ देर के लिए शामिल भी हुए। वहीं, जिले के कोने कोने के साथ ही पड़ोसी जिलों तथा यूपी के बलिया व गाजीपुर जैसे जिलों से भी श्रद्धालु इस परिक्रमा में शामिल हो रहे है। पंचकोशी यात्रा को ले श्रद्धालुओं में जबर्दस्त उत्साह है। खासकर भगवान श्रीराम के कर्मभूमि व जन्मभूमि पर आयोजित सनातन संस्कृति समागम के चलते भी इस बार पंचकोशी यात्रा का महत्व बढ़ गया है। जिस कारण परिक्रमा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ गई है। 

पांचवें दिन पूरे जिले में बनता है एक ही भोजन 

इस यात्रा के साथ यह भी दिलचश्प है कि पांचवें व अंतिम दिन न सिर्फ पंकोशी यात्रा में शामिल श्रद्धालु बल्कि पूरे बक्सर जिलावासी एक ही भोजन करते है। इस दिन सभी घरों में लिट्टी चोखा बनाया जाता है। जो इस पंचकोशी यात्रा के प्रति आकर्षण व श्रद्धा का द्योतक भी है। वैसे तो गुरूवार को सत्तू नहीं खाया जाता है। लेकिन पंचकोशी का अंतिम पड़ा व लिट्टी चोखा वाला प्रसाद इस बार गुरूवार को ही मनाया जाएगा। जिस कारण सभी घरों में गुरूवार के बावजूद लिट्टी चोखा बनेगा। 

कई साधु संत भी अपने शिष्यों के साथ हुए शामिल

जिले के कई साधु संत भी इस बार पंचकोशी यात्रा में अपने शिष्यों के साथ शामिल हुए है। पूज्य श्री गंगा पुत्र त्रिदंडी स्वामी जी महारजा भी इस यात्रा में अपने दर्जनों शिष्यों व श्रद्धालुओं के साथ शामिल हुए है। उन्होंने कहा कि इस पंचकोशी यात्रा का पौराणिक महत्व है तथा इस यात्रा में शामिल होना और इसका प्रसाद ग्रहण करना सौभाग्य की बात होती है। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम की कृपा से ही इसमें कोई शामिल होता है।