पुराना भोजपुर को-ऑपरेटीव बैंक में लाखों का घोटाला

को-ऑपरेटीव बैंकों में हजारों उपभोक्ताओं का लाखों रूपये का चंपत लग चुका है। नयाभोजपुर का मामला अभी चल ही रहा था कि पुरानाभोजपुर को-ऑपरेटीव बैंक का मामला सामने आने लगा।

पुराना भोजपुर को-ऑपरेटीव बैंक में लाखों का घोटाला

- वर्षों बाद भी नहीं मिले उपभोक्ताओं के पैसे, मायूश है उपभोक्ता

केटी न्यूज/डुमरांव  

को-ऑपरेटीव बैंकों में हजारों उपभोक्ताओं का लाखों रूपये का चंपत लग चुका है। नयाभोजपुर का मामला अभी चल ही रहा था कि पुरानाभोजपुर को-ऑपरेटीव बैंक का मामला सामने आने लगा। इस बैंक से भी लाखों रूपये घोटाला का मामला सामने आने लगा है। मिली जानकारी के अनुसार पुरानाभोजपुर के मुख्य आरा-बक्सर रोड के किनारे मध्य विद्याल के पास अवस्थित को-ऑपरेटीव बैंक में सैकड़ा उपभोक्ताओं के पैसे का भुगतान नहीं हुआ है। हर दिन उपभोक्ता अपने पैसे को लेकर बैंक का चक्कर काट रहे हैं। इधर बैंक में लगा ताला खुल नहीं रहा है। उपभोक्ताओं का कहना है की 2013 से ही बैंक से पैसे की निकासी बंद है। बैंक बंद रहने से उपभोक्ताओं अपन पैसा डूबता नजर आ रहा है। इस पैसे को लेकर उपभोक्ताओं ने अधिकारियों से गुहार तक लगाया, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। 

पुरानाभोजपुर को-ऑपरेटीव बैंक के उपभोक्ता अधिकतर फुटपाथी दुकानदार और किसान हैं। इनके द्वारा डेली खाता के अलावे महीना और फिक्सड डिपोजीट में पैसा जमा किया गया है। जब भुगतान का समय आया तो बैंक द्वारा उन्हें टकरकाना शुरू कर दिया गया। टरकाते-टरकाते एक दशक गुजर गए लेकिन उनका जमा पैसा नहीं मिला। इस संबंध में कुछ डीपोजीटरों से बात की गई तो पुरानाभोजपुर के संजय कुमार गुप्ता ने बताया कि मेरा ढाई लाख रूपया जमा है। पैसे के लिए दस सालों से दौड़ लगा रहे हैं, लेकिन एक फुटीकौड़ी भी नहीं मिला। बैंक में जाने के बाद बराबर उसमें ताला लटका ही मिला। फिर इसके लिए अधिकारियों से मिल बात की गई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उसी तरह से स्व. धर्मेन्द्र गुप्ता द्वारा पच्चीस हजार रूपया जमा किया गया था। उनकी पत्नी रेखा देवी जब पैसा के लिए संबंधित लोगों से मिली तो उसे भी टरका दिया गया। फिर उसने अधिकारियों से मिल अपनी दुखड़ा रोई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसी तरह से ज्योति कुमारी के पिता ने उसकी शादी के लिये उसके नाम पर खाता खुलवाया था। बेचारा क्या जानता था कि बैंक पैसे का घोटाला कर देखा, लेकिन ऐसा ही हुआ। बेचारा कर्ज लेकर अपनी बेटी का शादी किसी तरह से किया। वही जीतेन्द्र गुप्ता ने बैंक में एक लाख रूपया रखा था कि जमा पैसे से दुकान खोल जीवन-यापन चलाएगा, लेकिन उसका पैसा भी नहीं मिल पाया। इसी तरह दर्जनों उपभोक्ता ऐसे हैं, जिनका पैसा डूबा हुआ है। बैंक से पैसा दिलवाने के लिए सरकारी तौर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इधर उपभोक्ताओं का कहना है कि चेयरमैन और मैनेजर एक दूसरे पर दोषारोपण लगाते हुए केश भी किया है।