इस लोस चुनाव में आठवीं अनुसूची में भोजपुरी को शामिल करने का मुद्दा गायब

देश और विदेश में भी भोजपुरी भाषी लोग रहते हैं। आठवीं अनुसूची में भोजपुरी को शामिल करने के इस मुद्दे को राजनीतिक दलों ने दफन कर दिया है। भोजपुरी भाषी आबादी 30 करोड़ से भी अधिक है। यह भाषा अब 108 देशों में रहने वाले भोजपुरी भाषियों के बीच बोली जाती है।

इस लोस चुनाव में आठवीं अनुसूची में भोजपुरी को  शामिल करने का मुद्दा गायब
केटी न्यूज़, पटना: लोकसभा चुनाव के माहौल में
इस बार लोक भाषा भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की बात इस बार चर्चा से गायब है। यह हालत तब है, जब भोजपुरी देश के सबसे बड़े क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड के कई जिलों की बहुसंख्यक आबादी की मातृ भाषा भोजपुरी है। इसके अलावा दिल्ली से लेकर असम के तिनसुकिया और लुधियाना से लेकर बेंगलुरु तक भोजपुरी भाषियों की बड़ी आबादी रहती है। 
नेपाल और मारिशस तक भोजपुरी का जलवा
बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, असम और दिल्ली से भोजपुरी भाषी नेता सदन की शोभा भी बढ़ाते रहे हैं। भारत से दूर नेपाल और मारिशस तक भोजपुरी का जलवा है। यूं तो देश और विदेश का शायद ही कोई कोना है, जहां भोजपुरी भाषी लोग नहीं रहते हैं। जिले के वरिष्ठ लोगों का कहना है कि इस मुद्दे को राजनीतिक दलों ने दफन कर दिया है। उन्होंने बताया कि भोजपुरी भाषी आबादी 30 करोड़ से भी अधिक है। यह भाषा अब 108 देशों में रहने वाले भोजपुरी भाषियों के बीच बोली जाती है। इनमें अमेरिका, जापान, रूस, चीन से लेकर अरब के देश भी शामिल हैं।
मारीशस, ट्रीनिदाद और नेपाल में तो भोजपुरी को सम्मान के दृष्टिकोण से देखा जाता है। आठवीं अनुसूची में जगह पाने वाली भाषा बंगाली, सिंधी, मराठी, मणिपुरी, कन्नड़, कोंकणी, तेलगू, गुजराती, पंजाबी, संथाली, उड़िया, मैथिली की अपेक्षा भोजपुरी भाषी क्षेत्र का दायरा और बोलने वालों की तादाद अधिक है। 
देश के पहले राष्ट्रपति भी थे भोजपुरी भाषी
देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद भोजपुरी भाषी क्षेत्र से रहे। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. सच्चिदानंद सिन्हा भी भोजपुरी भाषी क्षेत्र से थे। भोजपुरी भाषी लालू प्रसाद यादव का देश की राजनीति में लंबे समय तक अहम रोल रहा। दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जैसे बड़े नेताओं को देकर भी भोजपुरी का कल्याण नहीं हो सका।