श्रीहरि का स्मरण मात्र से ही विनष्ट हो जाती हैं विपत्तियां : इंद्रेश जी उपाध्याय

श्रीहरि का स्मरण मात्र से ही विनष्ट हो जाती हैं विपत्तियां : इंद्रेश जी उपाध्याय
कथा वाचन करते इंद्रेश जी उपाध्याय

- फुलवारी कार्यक्रम में शामिल होंगे आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत

केटी न्यूज/बक्सर

53वें श्री सीताराम विवाह महोत्सव में 26 नवंबर को फुलवारी प्रसंग का मंचन होगा। जिसमें मलुकपीठाधिश्वर राजेन्द्र दास जी महाराज, लक्ष्मण किलाधिश मैथिली रमण शरण जी महाराज, अयोध्या के राजकुमार दास जी महाराज, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल जी शामिल होंगे।  महोत्सव के चौथे दिन गुरुवार को महोत्सव के दौरान चल रहे नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिवस पर कथा व्यास श्री इंद्रेश जी महाराज ने आज नवधा भक्ति के अंतर्गत भक्ति के तृतीय स्वरूप स्मरण भक्ति की भावपूर्ण व्याख्या कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इससे पूर्व श्री महाराज जी ने भक्ति के दो स्वरूपों श्रवण भक्ति एवं कीर्तन भक्ति की मधुर व्याख्या की थी।श्री महाराज जी ने स्मरण भक्ति के महत्व की व्याख्या करते हुए कहां की श्रीहरि का स्मरण करने मात्र से ही सारी विपत्तियां नष्ट हो जाती है और जीव का कल्याण हो जाता है। महाराज जी ने कहा कि शास्त्र आज्ञा करते हैं किसी भी विषय को पहले सुनो उसके बाद उसको पढ़ो और फिर विचार करो तभी विषय  हृद्यांगित होता है ठीक वैसे ही ठाकुर जी की कथा पहले श्रवण करें तत्पश्चात उसका गायन और फिर भक्ति के तीसरे स्वरूप के भाव से सुनी गई भक्ति कथा का स्मरण करें। 

नरसी भगत की लीला के मंचन में दिखी श्री कृष्ण की महिमा

वृंदावन के श्रीराम शर्मा एवं कुंजबिहारी शर्मा के निर्देशन में रासलीला का आयोजन किया गया। जिसमें नरसी भगत की लीला का मंचन किया गया। नरसी भगत की लीला का जीवंत मंचन में दिखाया गया कि किस तरह से भगवान अपने भक्त की लाज बचाते हैं। नरसी जी हर समय भगवान का भजन करते रहते हैं। उनकी बेटी की ससुराल से भारी भरकम दहेज मंगवाने की बात उनके पास भेजी जाती है। नरसी जी गरीबी से परेशान हैं। उन्हें पता चलता है कि नगर में एक सेठ आया है और वह उन्हें कर्जा दे सकता है। वे कर्जा मांगने सेठ के पास जाते हैं। वहां भगवान श्री कृष्ण सावरिया सेठ के नाम से उन्हें बैठे मिलते हैं। सेठ रूपी श्री कृष्ण जी उन्हें हुंडी (रुपयों की पर्ची) लिखकर देते हैं ओर उनसे कहते हैं कि वे अपनी पुत्री की ससुराल में जाकर वहां के मुनीम से जो भी सामान चाहे वे ले लें। नरसी भगत अपने साथ संतों को लेकर अपनी पुत्री की ससुराल पहुंच जाते हैं। उनके आने की सूचना पाकर पुत्री दौड़ती हुई जाती है ओर अपने पिता को वापस जाने के लिए कहती है क्योंकि उसे पता है कि उसके पिता के पास देने को एक रुपया तक नहीं है। जब भात दिया जाता है तो जो वस्तु ससुराल वालों ने मंगवाई थी प्रत्येक वस्तु भगवान श्री कृष्ण दोगुनी कर देते जाते हैं। नरसी भगवान कृष्ण को पहचान कर उनके चरण पकड़ लेते है।