आस्था व प्राकृतिक रम्यता का संगम हैं डुमरांव का मां काली मंदिर

आस्था व प्राकृतिक रम्यता का संगम हैं डुमरांव का मां काली मंदिर

आस्था व प्राकृतिक रम्यता का संगम हैं डुमरांव का मां काली मंदिर

- निशा पूजन में पूरे रात होता है अनुष्ठान, श्रृंगार पूजन में उमड़ती है भीड़

केटी न्यूज/डुमरांव 

नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित काली आश्रम स्थित मां नवदुर्गा मंदिर प्रकृतिक के गोद में बसा है। मंदिर के आस पास के प्रकृति के रमणिक दृश्य को देखते ही श्रद्धालुओं का मन आनंदित हो उठता है। शारदीय नवरात्र के दौरान मां के दरबार में भक्तों की अपार भीड़ होती है। हर दिन हजारों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन पूजन करने आते है। देर रात तक यहां श्रद्धालुओं के आने जाने का सिलसिला लगा रहता है। नवरात्र के सप्तमी तिथि को कालरात्रि की पूजन वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ की जाती है।

इस दौरान हजारों भक्त मां के चौखट पर माथा टेक अपने मंगल भविष्य की कामना करते है। काली आश्रम में मां नवदुर्गा के मंदिर के अलावे मां काली, शिव-पार्वती, हनुमत लला आदि की सुशोभित प्रतिमाएं स्थापित की गयी है। मां के दरबार में सुबह-शाम महाआरती का आयोजन होता है, जिसमें भक्त शामिल होते है। मंदिर की महिमा को लेकर बुजुर्ग बताते है कि करीब दो सौ वर्ष पहले बहेलिया समाज ने मंदिर की स्थापना की थी। उस समय दुर्गम रास्तों से गुजरकर मां के दरबार मे पहुंचना पड़ता था।

जैसे-जैसे भक्तों की तादाद बढ़ी वैसे-वैसे मां के रास्ते सुगम होते गये। काली आश्रम पंचित समिति द्वारा लाखों की लागत से भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। बताया जाता है कि मां के दरबार में शुद्ध मन से मांगी गयी मुरादें पूरी होती है। शहरवासी हर शुभ कार्यों से पहले मां के दरबार में मत्था टेक शुरुआत करते है। काली आश्रम समिति के अध्यक्ष भगवानजी वर्मा और पुजारी ललन मिश्र ने बताया कि निशा पूजन के बाद मां दुर्गे के नौ स्वरूपों की एक विशेष पूजा आयोजित की जाती है, जिसमें सूखे मेवे का भोग लगाया जाता है और अहले सुबह हवन कर महाआरती की जाती है। पूजन के बाद कुंवारी कन्याओं का विधि-विधान के साथ पूजन कर महाप्रसाद का भोग अर्पण किया जाता है।