आंखों में दर्द को सजा लीजिए, ग़र आंसू बहे तो मजा लीजिए...
आंखों में दर्द को सजा लीजिए, गर आंसू बहे तो मजा लीजिए..., जैसे गजलों से रविवार को डुमरांव में हिन्दी साहित्य से जुड़े लोग सराबोर होते रहे।
- डुमरांव में हिन्दी पखवाड़ा के तहत आयोजित हुआ गजल व काव्य पाठ, साहित्यकारों की प्रस्तुति पर जमकर बजी तालियां
केटी न्यूज/डुमरांव
आंखों में दर्द को सजा लीजिए, गर आंसू बहे तो मजा लीजिए..., जैसे गजलों से रविवार को डुमरांव में हिन्दी साहित्य से जुड़े लोग सराबोर होते रहे। अवसर था प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा आयोजित हिन्दी पखवाड़ा पर आयोजित काव्य गोष्ठी का। यह आयोजन शहर के हरिजी के हाता स्थित बिस्मिल्लाह खां संगीत एकेडमी के सभागार में हुई, जिसकी अध्यक्षता शिक्षिका सह कवयित्री मीरा सिंह मीरा ने की तथा संचालन प्रगतिशील लेखक संघ बक्सर के जिलाध्यक्ष बीएल प्रवीण ने किया।
गोष्ठी में सर्वप्रथम जिले के प्रतिष्ठित कवि सह जलेस बक्सर के अध्यक्ष महेन्द्र पाण्डेय के निधन पर दो मिनट का मौन रखा गया। बीएल प्रवीण ने बताया कि उनकी दो काव्य पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। वे प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे। गोष्ठी में कुछ वक्ताओं ने हिन्दी दिवस के अवसर पर अपने मंतव्य भी रखे। डी के कालेज के प्राध्यापक डॉ. कुर्बान खान ने संवाद भेज कर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की कवायद पर जोर दिया। बक्सर से आए ग़ज़लगो फारुख शैफी ने अपनी ग़ज़ल सुर में पेश कर समां बांध दिया। उनके गजल ’चमन में खुशबू लुटा के गुलाब बन जाओ, पढ़ेंगे लोग तुम्हें वो किताब बन जाओ...
इस पर काफी तालियां बजीं। बक्सर से ही आए प्रलेस के जिला सचिव नर्वदेश्वर उपाध्याय ने श्रोताओं की फरमाइश पर लगभग चार रचनाओं का पाठ किया। गोष्ठी में स्थानीय उषा रानी बालिका उच्च विद्यालय की छात्राओं ने भी भाग लिया। महिमा कुमारी ने जन जन की आस्था है, हिन्दी वहीं दसवी की छात्रा रोशनी कुमारी ने हिन्दी हमारी शान है, शीर्षक कविता सुनाई।
अध्यक्षता कर रही कवयित्री मीरा सिंह मीरा ने साहित्य में लोगों की घट रही दिलचस्पी पर चिंता जताई। बताया कि जब नैतिक मूल्य और संस्कार ही नहीं बचेंगे तो पशुवत जीने का क्या फायदा। साहित्य की महत्ता को लोग भूल चुके हैं। उन्होंने अपनी कुछ कविताएं भी सुनाईं जिस पर जम कर तालियां बजीं। अंत में बी एल प्रवीण ने अपनी तीन ताजा ग़ज़लें सुनाईं जिन्हें लोगों ने खूब पसंद किया। उनके गजलों में ’आंखों में दर्द को सजा लीजिए, ग़र आंसू बहे तो मजा लीजिए... को श्रोताओं ने खूब पसंद किया। गोष्ठी का समापन सेवा निवृत्त प्रधानाध्यापक भृगुनाथ यादव ने किया।