वतन की खुशबू: 133 साल बाद अपनों की खोज में सात समंदर पार ( मॉरीशस ) से डुमरांव चले आए अनिल रामबरन

वतन की खुशबू: 133 साल बाद अपनों की खोज में सात समंदर पार ( मॉरीशस ) से डुमरांव चले आए अनिल रामबरन
डुमरांव के सतगलियां में अपने परिजनों को खोजते मॉरीशस के अनिल रामबरन

- 1890 में डुमरांव से गिरमीटिया मजदूर बन गए थे उनके परिजन

- दो दिनों तक डुमरांव की तंग गलियों में अपनों को खोजते रहे अनिल

- डुमरांव से गए पूर्वज के नाम को ही बना लिया टाईटल

केटी न्यूज/बक्सर - रजनी कांत दूबे/डुमरांव

मेरा नाम अनिल है, रामबरन मेरे पूर्वज का नाम था जो 1890 में डुमरांव से गिरमिटिया मजदूर बन अपनी पत्नी भगजोगनी के साथ मॉरीशस गए थे। मॉरीशस में हमारा पूरा परिवार उनके नाम को ही अपना टाईटल बनाता है ताकी हमे यह पता चल सके कि हम कौन है और कहां से आए है। मैं अपने वंशजों की तलाश में ही यहां आया हूं। यह कहना है सात समंदर पार मॉरीशस से अपने कुनबे की खोज में डुमरांव आए अनिल रामबरन का। करीब 55 वर्षीय अनिल रामबरन दो दिनों तक डुमरांव में रूके थे।

फाइल फोटो : डुमरांव से मॉरीशस गए रामबरन 

यहां के सतगलियां की तंग गलियों में अपने वंशजों की तलाश करते रहे। इस प्रयास में उन्हें आंशिक सफलता ही मिली है। लेकिन अभी वे पूरी तरह से अपने पूर्वजों को खोज नहीं पाए है। वे फिर मार्च में आने की बात कह वापस मॉरीशस लौट गए। इसके पहले डुमरांव के सतगलियां मोहल्ले में उन्होंने काफी पड़ताल की। लेकिन 1890 में गिरमिटिया मजदूर बन गए रामबरन व उनकी पत्नी भगजोगनी देवी के संबंध में स्थानीय निवासी कुछ बता नहीं पा रहे थे। लेकिन कुछ बुजुर्गों ने इतना जरूर बताया कि यहां से लोग मॉरीशस गए थे। लेकिन अब रामबरन के परिवार में कौन लोग है इसकी जानकारी अभी तक नहीं मिल सकी। लेकिन अनिल रामबरन निराश नहीं हुए, वतन की माटी की खुशबू ने उन्हें खूब आकर्षित किया है। 

मॉरीशस के महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट में मौजूद है दस्तावेज

अनिल रामबरन ने बताया कि वे रामबरन व भगजोगनी के चौथी पीढ़ी की संतान है। उन्होंने बताया कि मॉरीशस के महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट में यहां से मॉरीशस गए लोगों के रिकार्ड मौजूद है। उसी रिकार्ड से उन्हें इस बात की जानकारी मिली कि उनके पूर्वज रामबरन व जोन्हियां डुमरांव से गए थे। हालांकि तब बक्सर जिला नहीं बल्कि शाहाबाद जिला था। अनिल ने केशव टाइम्स को जो रिकार्ड दिखाए उसके मुताबिक दोनों यहां से 26 अपै्रल 1890 को मॉरीशस के लिए चले थे तथा कलकता ( कोलकाता ) के बंदरगाह से ब्रिटीश पीर सीप जिसका नंबर 1352 था से मॉरीशस के लिए रवाना हुए थे तथा 30 जून 1890 को मॉरीशस पहुंचे थे। दस्तावेज में रामबरन के पिता का नाम बखोरी तथा भाई का नाम शिवबरन दर्ज है। वही उनकी पत्नी भगजोगनी के पिता का नाम साजन दर्ज है। अनिल रामबरन शिवगोबिन व साजन के वंशजों की तलाश कर रहे है।

कई अन्य गांवों में भी पहुंचे अनिल

डुमरांव में दो दिनों के प्रवास के दौरान अनिल रामबरन डुमरांव के अलावे नंदन, चुआड़, अटांव, अरियांव, नेनुआ, सम्हार तथा डुमरांव के दक्षिण टोला मोहल्ले में भी गए थे। लेकिन कही से कुछ जानकारी हासिल नहीं हुई थी। वही डुमरांव के सतगलियां मोहल्ले में इनके बताए नाम से मिलते जुलता नाम वाले पूर्वजों के संबंध में जानकारी मिली तथा यह भी पता चला कि यहां से लोग मॉरीशस गए थे। अनिल ने इसे बड़ी कामयाबी बताया और कहा कि वे आगे भी प्रयास करेंगे। वे मार्च में दुबारा आने को कहे है। अब देखना है कि अनिल कितने दिनों में अपने परिजनों को खोज पाते है। हालांकि उनके वतन तथा अपने पूर्वजों के लगाव को देख लोग काफी खुश थे।

टंग्रेजी के साथ हिन्दी व भोजपुरी में बाते कर रहे थे अनिल

मॉरीशस में बसे भारतवंशी आज भी सदियों पुरानी अपनी मातृभूमि की परंपरा, संस्कृति तथा भाष को भूले नहीं है। अपने पूर्वजों की खोज के दौरान वे स्थानीय निवासियों से टूटी फूटी अंग्रेजी के अलावे हिन्दी व भोजपुरी में बात कर रहे थे। लोगों को हाथ जोड़ अभिवादन करना, व्हाट्सऐप के डीपी में राम दरबार का फोटो लगाना, इस बात की तस्दीक कर रही थी कि मॉरीशस में बसे भारतवंशी सदियों बाद भी अपनी मिट्टी की खुशबू की यादें संजो कर रखे है।