फर्स्ट आईडिया हाउस किपिंग एजेंसी के भुगतान पर अधिकारियों की नजर
बक्सर जिले के शिक्षा विभाग में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप दिनोंदिन गहराते जा रहे हैं। हालांकि, केशव टाइम्स की पड़ताल में विभागीय लेन-देन, ठेके और भुगतान के मामले में नेताओं, अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत की परतें एक-एक कर खुल रही हैं। ताजा मामला फर्स्ट आईडिया हाउसकीपिंग एजेंसी से जुड़ा है, जिसे हाल ही में जिला कोषागार से करीब 40 लाख रुपये का भुगतान किया गया है।

-- बोले डीईओ जांच में दोषी पाए जाने पर होगी सख्त कार्रवाई
केटी न्यूज/बक्सर
बक्सर जिले के शिक्षा विभाग में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप दिनोंदिन गहराते जा रहे हैं। हालांकि, केशव टाइम्स की पड़ताल में विभागीय लेन-देन, ठेके और भुगतान के मामले में नेताओं, अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत की परतें एक-एक कर खुल रही हैं। ताजा मामला फर्स्ट आईडिया हाउसकीपिंग एजेंसी से जुड़ा है, जिसे हाल ही में जिला कोषागार से करीब 40 लाख रुपये का भुगतान किया गया है।
जबकि इस एजेंसी के खिलाफ लगातार शिकायतें दर्ज हो रही हैं और जांच भी चल रही है। सूत्रों के मुताबिक, इस पूरे मामले में सांसद सुधाकर सिंह के करीबी सहयोगी अरविंद सिंह का नाम सबसे ज्यादा उछल रहा है। आरोप है कि अरविंद सिंह न केवल शिक्षा विभाग के ठेकों में सक्रिय हस्तक्षेप करते रहे हैं बल्कि फर्स्ट आईडिया एजेंसी को संरक्षण भी देते रहे हैं। पूर्व जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) अमरेंद्र पांडेय ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भेजे संदेश में स्पष्ट लिखा था कि अरविंद सिंह और उनके सहयोगी अजय सिंह खुद को फर्स्ट आईडिया हाउसकीपिंग का पार्टनर बताते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि सांसद सहयोगी के प्रभाव के चलते एजेंसी को ठेका दिलाने और भुगतान कराने में कितनी सहजता मिली।
-- साई इंटरप्राइजेज से फर्स्ट आईडिया तक
शिक्षा विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि पहले साई इंटरप्राइजेज नामक फर्म ने बेंच-डेस्क सप्लाई, बोरिंग और मध्यान्ह भोजन जैसी योजनाओं में दबदबा बना रखा था। अब यही नेटवर्क पर्दे के पीछे से ष्फर्स्ट आईडियाष् को आगे बढ़ा रहा है। स्थानीय स्तर पर चर्चा है कि सांसद सहयोगी और उनके करीबी लोग इस नए ठेकेदार को संरक्षण देकर करोड़ों के ठेकों पर कब्जा जमाए बैठे हैं।
-- मजदूरों का बकाया और अधूरी सेवाएं, बावजूद हो रहा भुगतान
नावानगर और इटाढ़ी प्रखंड में फर्स्ट आईडिया द्वारा स्कूलों में सफाई और हाउसकीपिंग का कार्य कराया जा रहा है। लेकिन यहां काम करने वाले मजदूरों को कई महीनों से भुगतान नहीं मिला है। लगातार मजदूर यह शिकायत कर रहे हैं कि एजेंसी न तो समय पर वेतन देती है और न ही कामकाज की पारदर्शी व्यवस्था रखती है। इसके बावजूद जिला प्रशासन ने जुलाई महीने में इस एजेंसी को एकमुश्त 40 लाख रुपये का भुगतान कर दिया। सवाल यह है कि जांच अधूरी होने के बावजूद भुगतान क्यों किया गया।
-- बोले डीईओ, जांच में दोषी पाए जाने पर होगी कार्रवाई
जिला शिक्षा पदाधिकारी का कहना है कि फर्स्ट आईडिया से जुड़े सभी पहलुओं की जांच की जा रही है। यदि एजेंसी दोषी पाई जाती है तो उस पर कड़ी कार्रवाई होगी। लेकिन प्रशासनिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि सांसद और उनके सहयोगियों के दबाव में अधिकारी खुलकर रिपोर्ट देने से कतरा रहे हैं। जब किसी ठेकेदार के पीछे राजनीतिक संरक्षण हो, तो जांच कितनी निष्पक्ष हो सकती है, यह बड़ा सवाल है।
बता दें कि यह पूरा विवाद केवल ठेकेदार और अधिकारियों की मिलीभगत तक सीमित नहीं है। असली नुकसान सरकारी स्कूलों के बच्चों और कर्मचारियों को हो रहा है। हाउसकीपिंग सेवाओं में गड़बड़ी के कारण स्कूल परिसर गंदगी का अड्डा बन रहे हैं। मजदूरों को समय पर मजदूरी न मिलने से असंतोष और कामकाज पर असर पड़ रहा है। शिक्षा विभाग के बजट का बड़ा हिस्सा ठेकेदारी के जाल में फंसकर पारदर्शिता से दूर जा रहा है।
-- विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा
यह मामला अब धीरे-धीरे राजनीतिक रंग भी ले रहा है। एनडीए नेताओं का आरोप है कि सांसद सहयोगी शिक्षा विभाग को कमाई का अड्डा बना चुके हैं। ठेकों की अदला-बदली और भुगतान की जल्दबाजी इसका सबसे बड़ा सबूत है। विपक्ष का कहना है कि जब तक उच्चस्तरीय जांच नहीं होगी, तब तक ऐसे मामलों पर पर्दा पड़ा रहेगा।
-- सवालों के घेरे में सिस्टम
फर्स्ट आईडिया हाउसकीपिंग एजेंसी का मामला एक बार फिर इस ओर इशारा करता है कि शिक्षा विभाग जैसे संवेदनशील क्षेत्र में पारदर्शिता किस हद तक खतरे में है। क्या मजदूरों और बच्चों के हितों को ताक पर रखकर केवल दलालों और ठेकेदारों की तिजोरी भरने का खेल जारी रहेगा, क्या प्रशासन राजनीतिक दबाव से ऊपर उठकर निष्पक्ष जांच कर पाएगा।
फिलहाल, विभागीय जांच की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन जिले के लोग यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि यह केवल रिपोर्ट फाइल करने तक सीमित न रहे, बल्कि सच सामने आए और दोषियों पर कार्रवाई हो। क्योंकि अगर शिक्षा के नाम पर भ्रष्टाचार का यह खेल नहीं रुका, तो आने वाली पीढ़ियों की नींव कमजोर हो जाएगी।