संस्कृति को सहेजने और नई पीढ़ी को परंपराओं से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास है तुलसी पूजन : निदेशक
भारतीय संस्कृति व अपनी परंपराओं को संरक्षित करने के उद्देश्य से जिला मुख्यालय में स्थित रेडियंट पब्लिक स्कूल में बुधवार को तुलसी पूजन दिवस का आयोजन किया। इस अवसर पर विद्यालय की बक्सर, दानी कुटिया व कृतपुरा स्थित शाखा में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए। कार्यक्रम की शुरुआत विधिवत तुलसी पूजन से हुई। जहां छात्रों और शिक्षकों ने मिलकर तुलसी के पौधे का पूजन किया और इसके महत्व पर चर्चा की।
- तुलसी पूजन दिवस का आयोजन कर रेडियंट पब्लिक स्कूल ने किया भारतीय संस्कृति को संजोने का प्रयास
केटी न्यूज/बक्सर
भारतीय संस्कृति व अपनी परंपराओं को संरक्षित करने के उद्देश्य से जिला मुख्यालय में स्थित रेडियंट पब्लिक स्कूल में बुधवार को तुलसी पूजन दिवस का आयोजन किया। इस अवसर पर विद्यालय की बक्सर, दानी कुटिया व कृतपुरा स्थित शाखा में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए। कार्यक्रम की शुरुआत विधिवत तुलसी पूजन से हुई। जहां छात्रों और शिक्षकों ने मिलकर तुलसी के पौधे का पूजन किया और इसके महत्व पर चर्चा की। साथ ही, छात्र छात्राओं को तुलसी के धार्मिक, औषधीय और पर्यावरणीय महत्व के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई। विद्यालय प्रबंधन ने यह सुनिश्चित किया कि छात्र-छात्राएं भारतीय संस्कृति के मूल्यों से जुड़ सकें और पर्यावरण संरक्षण का संदेश ग्रहण करें।
कार्यक्रम के आयोजन में शिक्षकों ने सक्रिय भूमिका निभाई। आर्या कुमारी, अंकिता कुमारी, रीता कुमारी, विभा सिंह, रेखा तिवारी, पुष्पा शर्मा, संतोष तिवारी, संतोष शुक्ला और चन्दन सिंह आदि शिक्षकों ने छात्रों को तुलसी पूजन के महत्व को समझाने और कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम योगदान दिया।
वहीं, विद्यालय के निदेशक सह प्राचार्य जय प्रकाश सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि तुलसी पूजन दिवस भारतीय संस्कृति को सहेजने और नई पीढ़ी को परंपराओं से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास है। हमारा उद्देश्य छात्रों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने के साथ उनकी जड़ों से जोड़ना है। इस अवसर पर विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया। जिसमें छात्रों ने तुलसी पर आधारित निबंध लेखन, चित्रकला और कविता पाठ में उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया।
तत्पश्चात प्रतियोगिताओं के विजयी छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत भी किया गया। कार्यक्रम में छात्रों और शिक्षकों का उत्साह देखते ही बना। उक्त आयोजन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि एक संदेश था कि हमारी परंपराएं और प्रकृति दोनों ही हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।