जेलों का खस्ताहाल, क्षमता से तीन गुना अधिक है कैदी कारागारों में कैद

जेलों का खस्ताहाल, क्षमता से तीन गुना अधिक है  कैदी कारागारों में कैद

- कैदियों पर नकेल कसने के लिए पांच आईपीएस अधिकारियों को अतिरिक्त जिम्मेदारी 

बलिया केशव टाइम्स संवाददाता

पूर्वांचल की जेलों में क्षमता से दोगुना और तीन गुना से अधिक बंदी निरुद्ध हैं। बंदियों की तुलना में निगरानी करने वाले कारागार कर्मियों की संख्या काफी कम है। आज हम आपको इस खबर में उन तमाम जेलों की जमीनी हकीकत से रू-बरू कराऐंगे। प्रदेश की जेलों में बंद कुख्यात अपराधियों और उनके नेटवर्क पर नकेल कसने के लिए बीते अप्रैल महीने में पांच आईपीएस अफसरों को निरीक्षण का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया था। बावजूद जेलों की मूलभूत समस्याएं जस की तस हैं। वाराणसी की जिला जेल की क्षमता 747 बंदियों की है। लेकिन जिला जेल में निरुद्ध बंदियों की संख्या 2285 थी। इन बंदियों की निगरानी के लिए 83 बंदीरक्षक तैनात हैं। बलिया की जिला जेल की क्षमता 339 बंदियों की है, लेकिन यहां 700 बंदी हैं। यहां बीते महीने दो मोबाइल बरामद हुए।

बलिया की जेल में जलभराव की समस्या होने से बंदियों को बरसात के दिनों में दूसरी जेलों में स्थानांतरित करना पड़ता है। मिर्जापुर की क्षमता 332 बंदियों की है, मौजूदा समय में यहां 700 बंदी हैं। आजमगढ़ जिला जिला जेल की क्षमता 1200 बंदियों की है, मौजूदा समय में यहां 1781 बंदी हैं। गाजीपुर जिला जेल की क्षमता 635 बंदियों की है, मौजूदा समय में यहां 1100 बंदी हैं। सोनभद्र जिला जेल की क्षमता 550 बंदियों की है, मौजूदा समय में यहां 1062 बंदी हैं। मऊ जिला जेल की क्षमता 540 बंदियों की है, मौजूदा समय में यहां 782 बंदी हैं।

जेलों में बंद हैं कुख्यात अपराधी

 जौनपुर और भदोही की जेल में तीन गुना से ज्यादा बंदी हैं। जौनपुर की जिला जेल की क्षमता 320 बंदियों की है, लेकिन यहां 1017 बंदी निरुद्ध हैं। श्रमजीवी विस्फोट कांड के आरोपियों से लेकर नक्सली जोनल कमांडर और मुख्तार अंसारी गिरोह का बदमाश भी जौनपुर की जिला जेल में बंद है। इसी तरह से भदोही की जिला जेल की क्षमता 114 बंदियों की है, लेकिन यहां 410 बंदी निरुद्ध हैं।

क्या बोले जिम्मेदार अधिकारी

वाराणसी की जिला जेल के जेलर वीरेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि जेलों से बंदियों की भीड़ को कम करने के लिए कुछ विशेष उपाय सरकार और गैर सरकारी संगठनों के स्तर पर किए जा रहे हैं। इनमें से सबसे अहम यह है कि छोटे-मोटे अपराधों में जेल में दाखिल बंदियों के मुकदमों का जल्द निस्तारण कराना है। सजा पूरी करने के बाद जुर्माना न भर पाने के कारण जेलों में निरुद्ध बंदियों की रिहाई भी उसी कवायद का अहम हिस्सा है। इसके अलावा आबादी के बीच बनी पुरानी जेलों को नए स्थान पर शिफ्ट करने की भी शासन स्तर पर कवायद चल रही है।