खाटू श्याम क्यों बने "हारे का सहारा"
खाटूश्यामजी मंदिर राजस्थान सीकर में स्थित है। खाटू श्याम बाबा को "हारे हुए का सहारा" भी कहा जाता है
केटी न्यूज़/दिल्ली
अपने देश मे कई सिद्ध-प्रसिद्ध मंदिर है उन्हीं में से एक है खाटूश्यामजी।यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु लोग आते हैं। आइए जानते हैं मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में।
खाटूश्यामजी मंदिर राजस्थान सीकर में स्थित है।खाटू श्याम बाबा को "हारे हुए का सहारा" भी कहा जाता है,मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति खाटू श्याम बाबा जी की शरण में आता है, तो बाबा उसकी सभी समस्याएं खत्म कर देते हैं।इस मंदिर की खासियत की बात करें तो यहां एक विशाल कुंड भी है, जहां लोग स्नान कर सकते हैं।इसके अलावा मंदिर के बाहर एक कक्ष है, जिसे प्रार्थना कक्ष के नाम से जाना जाता है। वहीं मंदिर में मन्नत का पेड़ भी है, जिसमें लोग मन्नत की चुन्नी और धागे बांधते हैं। कहा जाता है कि जो भी लोग इस पेड़ पर सच्चे मन से मन्नत की चुन्नी बांधता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन माह की ग्यारस यानी एकादशी के दिन श्याम बाबा का जन्मदिन मनाया जाता है।इसी उपलक्ष्य में मंदिर के निकट लक्खी मेला भी लगाया जाता है, जो 10 दिनों तक चलता है।खाटू श्याम घटोत्कच के पुत्र थे,उनका असली नाम बर्बरीक था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बर्बरीक महाभारत का युद्ध देखना चाहते थे।यह जिज्ञासा उन्होंने अपनी माता को बताई, तो उन्होंने बर्बरीक से कहा, पुत्र तुम्हारे पास असीम शक्तियां हैं, लेकिन तुम अपनी उन शक्तियों का प्रयोग किसी भी निर्बल पर मत करना। तुम "हारे का सहारा बनना" जो हार रहा हो, तुम उस का ही साथ देना। यह बात सुन अपनी मां का आशीर्वाद लेकर बर्बरीक युद्ध देखने चले गए।
भगवान श्रीकृष्ण को पता था युद्ध कौरव हारने वाले हैं। इसके अलावा उन्हें ये भी पता था कि अपनी मां के आदेश अनुसार बर्बरीक कौरवों का ही साथ देंगे। ऐसे में श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक से उनके "शीश" का दान मांगा। बर्बरीक ने बिना वक्त गवाए अपना सिर श्रीकृष्ण को दान दे दिया। इसके बाद श्रीकृष्ण खुश होकर अपने असली रूप में आए और उन्होंने बर्बरीक को वरदान दिया कि आज से आपको "हारे का सहारा" कहा जाएगा।तब से बर्बरीक को खाटू श्याम और हारे का सहारा कहा जाने लगा।आज भी हार कर लोग उनके दरबार मे अपनी परेशानियां लेकर आते हैं।