गया में क्यों है श्राद्धकर्म का इतना महत्व, जाने गया में पिंडदान की महत्वता

श्राद्ध और तर्पण पितरों की आत्मा को शांति देने और परिवार में सुख-समृद्धि लाने के महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य है।इस बार 17 सितंबर से श्राद्ध शुरू होने वाले हैं।

गया में क्यों है श्राद्धकर्म का इतना महत्व, जाने गया में पिंडदान की महत्वता
Spritual

केटी न्यूज़/गया

श्राद्ध और तर्पण पितरों की आत्मा को शांति देने और परिवार में सुख-समृद्धि लाने के महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य है।इस बार 17 सितंबर से श्राद्ध शुरू होने वाले हैं।श्राद्ध कर्म हिंदू धर्म के शास्त्रों में अत्यधिक मान्यता प्राप्त है, जिससे पितृ दोष से बचाव होता है।हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद मृतक के पुत्र या किसी परिवार के लोगों द्वारा पिंड़दान देने का नियम है।गया में पिंडदान करने का खास महत्व है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण और वैवर्त पुराण में बताया गया है कि गया जैसे तीर्थ पर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। फल्गु नदी के तट पर ही भगवान राम राजा दशरथ की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए गया में ही श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया था।इसलिए गया को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है। पितृपक्ष के दौरान हर साल गया में एक मेला लगता है, जिसे पितृपक्ष का मेला के नाम से जाना जाता है।चलिये इसके पीछे की कहानी जानते हैं।

पौराणिक काल में गयासुर नामक एक असुर हुआ करता था। उसने ब्रह्म देव की तपस्या कर वरदान मांगा कि उसका शरीर पवित्र हो जाए।लोग उसके दर्शन मात्र से ही पाप मुक्त हो जाएं। वरदान मिलने के बाद लोग पाप करने लगे। बड़े से बड़ा पाप करने के बाद लोग गयासुर के दर्शन करते और पाप मुक्त हो जाते जिसकी वजह से स्वर्ग और नरक का संतुलन बिगड़ने लगा।ये देख सभी देवतागण गयासुर के पास गया आए और यज्ञ के लिए पवित्र स्थान की मांग की। तब गयासुर ने यज्ञ के लिए अपना शरीर देते हुए देवताओं से कहा कि आप मेरे ऊपर ही यज्ञ करें। गयासुर के कहने पर देवताओं ने उसे लेटने को कहा।जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया और यज्ञ संपन्न होने के बाद ये पांच कोष का क्षेत्र गया बन गया।

गया में भगवान विष्णु गंगाधर के रूप में विराजमान हैं। गयासुर के विशुद्ध शरीर में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह निवास करते हैं। इसलिए पिंडदान व श्राद्ध कर्म के लिए इस स्थान को उत्तम माना गया है।मान्यता है कि पितृ पक्ष में गया जाकर पिंडदान करने से 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। साथ ही पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। ये स्थान मोक्ष स्थली भी कहलाता है। गया में पिंडदान करने के बाद व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है यानी कुछ भी शेष नहीं रह जाता है।