बलिया महोत्सव में कवि सम्मेलन में बही राष्ट्रवाद की बयार,देर रात तक कभी हुए लोटपोट तो कभी बहा भावना का सागर
सोमवार की रात बलिया महोत्सव के दूसरे दिन की रात आयोजित कवि सम्मेलन में राष्ट्रवाद की बयार जमकर बही। कवि सम्मेलन की विधिवत शुरुआत जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार, एसपी विक्रांत वीर, सीडीओ ओजस्वी राज और परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह के अनुज धर्मेंद्र सिंह ने दीप प्रज्वलित कर की।
केटी न्यूज़/बलिया
सोमवार की रात बलिया महोत्सव के दूसरे दिन की रात आयोजित कवि सम्मेलन में राष्ट्रवाद की बयार जमकर बही।कवि सम्मेलन की विधिवत शुरुआत जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार, एसपी विक्रांत वीर, सीडीओ ओजस्वी राज और परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह के अनुज धर्मेंद्र सिंह ने दीप प्रज्वलित कर की।अनामिका जैन अम्बर ने सरस्वती वंदना से कवि सम्मेलन को औपचारिक शुरुआत दी। उन्होंने मां शारदे के 108 नामों को कविता में पिरोकर प्रस्तुत किया तो सभी स्रोता भावभिभोर हो गए।
प्रख्यात कवियत्री अनामिका जैन अम्बर ने 'अमर है जो युगों से वो सनातन मिट नहीं सकता' और 'ये कश्मीर हमारा था अब वो कश्मीर हमारा है' से माहौल में देशभक्ति का जज्बा भरा।इसके बाद अनामिका अम्बर ने 'मांग रहे थे जो प्रमाण राम के होने का...' के जरिए सनातन पर प्रहार करने वालों को करार जवाब दिया। फिर बाद में उन्होंने युवाओं को 'मेरे अंदाज को अपना अलग अंदाज दे देना, चली आऊंगी मैं सब छोड़कर आवाज दे देना...' से दीवाना बना दिया।
सम्मेलन में युवा कवि सूरजमणि ने अपने गीतों और बातों से खूब गुदगुदाया। उन्होंने 'जिसकी खातिर दुनिया से हमने सारी दुनियादारी छोड़े... हम जीवन की रंगोली में रंग न उसका भर पाए...' के जरिए माहौल में श्रृंगार के भी रस घोले।
इसके बाद हास्य कवि शम्भू शिखर के माइक संभालते ही दर्शक ताली बजाने लगे। शंभू शिखर ने 'दुल्हन ने फेरे पंडित जी के साथ ले लिए...' सुनाकर ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया।
मशहूर शायर वसीम बरेलवी अपने पहले ही शेर 'जैसा दिखाई देने की करते हो कोशिशें वैसे नहीं हो तुम...' से स्रोताओं के दिल में जगह बना ली। फिर जब सुनाया कि 'तू ही चाहे तो मुझे रोक ले बेहतर वरना मेरे जाने से तेरे शहर का क्या जाता है...' तो देर तक तालियां बजती रहीं। 'मैंने खुद को बड़ी मुश्किल से बचाये रखा है वरना दुनिया तेरा हो जाने में क्या रखा है...' को भी खूब सराहा गया। बरेलवी ने ' मेरे गांव की मिट्टी तेरी महक बड़ी अलबेली...' सुनाई तो सब अपनी जड़ों से जुड़ते नजर आए।
मध्यप्रदेश से आईं कवियत्री मनिका दूबे ने श्रृंगार रस की कविताओं से युवाओं को खास रूप से प्रभावित किया। उन्होंने 'अमरता वीरता का देश भारत, सभी से भिन्न है परिवेश भारत... मरेंगे तो रहेगा शेष भारत...' के जरिए बागी धरती के बागपन को झकझोर दिया। फिर उन्होंने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना 'शहर के शोर में वीरानियां हैं, यहां तुम हो मगर तन्हाइयां हैं। वहीं पे बैठ के अरसा गुजारूं, जहां तेरी मेरी परछाइयां हैं। उसी से रूठ कर उसको मनाना दिलों की तो यही नादानियां हैं...' सुनाकर स्रोताओं में खासकर युवाओं के दिलों पर मजबूत दस्तक दी।
ओज के कवि गजेन्द्र सोलंकी ने 'कभी सागर की गहराई में जाने की तमन्ना है... सुना है चांद पर भी घर बनाने की तमन्ना है..' अगर नफरत भी हो दिल में जुबां से वार मत करना...' के जरिये माहौल में एक बार फिर श्रृंगार के रस घोले। कवि राजेश रेड्डी ने 'खिलौना कहां मिट्टी का फना होने से डरता है। यहां हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है...' सुनाकर खूब वाहवाही बटोरी। कवि सम्मेलन में वरिष्ठ कवि विष्णु सक्सेना, सुरेन्द्र शर्मा, अंजुम रहबर और कीर्ति काले की प्रस्तुतियों पर स्रोता रात भर शायरी, श्रृंगार, हास्य और वीर रस में गोते लगते रहे।