टीबी के साथ एचआईवी की जांच जरूरी, मरीज नियमित रूप से करें दवाओं का सेवन
सरकार व स्वास्थ्य विभाग अपने स्तर से निरंतर टीबी मरीजों के लिए समर्पित है। अब जरूरत है, टीबी के मरीजों के जागरूक और सजग बनने की। ज्यादातर मरीज जानकारी के अभाव में इलाज में कोताही बरतते हैं, या फिर कुछ मरीज अज्ञानतावश रिपोर्ट लेने के बाद जनरल फिजिशियन से अपना इलाज कराने लगते हैं।
- रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद जिला टीबी सेंटर में नियिमत कराते रहें जांच
- निजी संस्थान से इलाज कराने वाले मरीज भी टीबी सेंटर में दें दवाओं की जानकारी
बक्सर | वर्ष 2025 तक टीबी से जिले को पूरी तरह से मुक्त करना है। इसमें सरकार व स्वास्थ्य विभाग अपने स्तर से निरंतर टीबी मरीजों के लिए समर्पित है। अब जरूरत है, टीबी के मरीजों के जागरूक और सजग बनने की। ज्यादातर मरीज जानकारी के अभाव में इलाज में कोताही बरतते हैं, या फिर कुछ मरीज अज्ञानतावश रिपोर्ट लेने के बाद जनरल फिजिशियन से अपना इलाज कराने लगते हैं। दोनों ही परिस्थिति में मरीज को भयावह परिणाम झेलना पड़ सकता है। जो आगे जाकर एमडीआर (मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट) का रूप ले सकता है। इसलिए जिला टीबी सेंटर लोगों को जागरूक करने में लगा हुआ। ताकि, टीबी की जांच कराने के लिए आने वाले मरीज उनके माध्यम से इलाज कराएं या न कराएं, लेकिन वो टीबी के इलाज में किन दवाओं का सेवन कर रहे हैं उसकी जानकारी टीबी सेंटर के कर्मचारियों को हो सके। ताकि, भविष्य में जब भी उन्हें टीबी के कारण कोई समस्या हो, तो उनका फॉलोअप आसानी से किया जा सके।
टीबी का एक संक्रमित 10 स्वस्थ्य व्यक्ति को कर सकता है संक्रमित :
जिला टीबी सेंटर के एसटीएलएस कुमार गौरव ने बताया, गत दिनों कई ऐसे मरीज आए जिन्होंने टीबी की जांच कराई। जांच में रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद वो कहां इलाज करा रहे हैं, कौन-कौन सी दवाएं खा रहे हैं इसकी जानकारी नहीं हो पा रही है। जो सरकार के टीबी उन्मूलन के लक्ष्य में बहुत बड़ी बाधा बन सकते हैं। कई मरीज तो ऐसे भी हैं, जिन्होंने अब तक अपना इलाज नहीं शुरू कराया है। ऐसे मरीजों को चिह्नित करते हुए उनका इलाज शुरू कराया जाएगा। क्योंकि टीबी का एक संक्रमित लगभग 10 स्वस्थ्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। इसलिए टीबी के प्रत्येक मरीज की निगरानी और नियमित फॉलोअप जरूरी है। उन्होंने टीबी के लक्षणों वाले मरीजों और टीबी के इलाजरत मरीजों से सहयोग करने की अपील की। सीने में दर्द होना, चक्कर आना, दो सप्ताह से ज्यादा खांसी या बुखार आना, खांसी के साथ मुंह से खून आना, भूख में कमीं और वजन कम होना आदि लक्षण अगर किसी में है तो टीबी की जांच करा सकते हैं । इससे हमें अपने लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि कैंप में जन सामान्य को माइकिंग, पंपलेट के माध्यम से भी टीबी से बचाव के लिए जागरूक भी किया जा रहा है।
टीबी की जांच के साथ मरीजों में एचआईवी की भी जांच की जाती है :
सिविल सर्जन सह प्रभारी जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. जितेंद्र नाथ ने बताया कि टीबी की जांच के साथ मरीजों में एचआईवी की भी जांच की जाती है। क्योंकि, एचआईवी मरीजों में टीबी की संभावना सबसे अधिक होती है। जिला मुख्यालय से प्रखंड स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों पर टीबी के मरीजों की जांच और इलाज की नि:शुल्क सुविधा उपलब्ध है। दवा भी मुफ्त दी जाती है। स्वास्थ्य केंद्रों पर बलगम की जांच माइक्रोस्कोप एवं ट्रूनेट व सीबीनेट मशीन द्वारा निःशुल्क की जाती है। मरीजों की जांच के उपरांत टीबी की पुष्टि होने पर पूरा इलाज उनके घर पर ही डॉट प्रोवाइडर के माध्यम से निःशुल्क किया जाता है। नए रोगी चिह्नित होने पर उनके पारिवारिक सदस्यों को भी टीबी प्रीवेंटिव ट्रीटमेंट दिया जाता है। ताकि परिवार के अन्य सदस्यों में यह बीमारी नहीं फैले। उन्होंने कहा कि टीबी एक संक्रामक बीमारी है। इसे जड़ से मिटाने के लिए हम सभी को इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने की जरूरत है।