केटी न्यूज/ डेहरी आन-सोन।
सोन हमारे जीवन का प्रवाह है। पुराने शाहाबाद को धान का कटोरा बनाने में सोन नदी का महत्वपूर्ण योगदान है। सोन नदी में अंधाधुंध बालू के अवैध उत्खनन से उत्पन्न प्रदूषण ने जलीय जीव जंतुओं के साथ ही वनस्पतियों के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है। उनके लुप्त प्राय होने की स्थिति बन चुकी है। कई जलीय जीवों का अस्तित्व भी खत्म हो गया है।
ऊदबिलाव, मगरमच्छ, कछुआ, आदि जीव हुए लुप्त
नदी संस्कृति व पर्यावरण के जानकार डा. संजय पाठक बताते हैं कि आमतौर पर सोन किनारे दिखने वाले ऊदबिलाव, मगरमच्छ, कछुआ, केकड़ा समेत अन्य जलीय जीव सोन से लुप्त हो गए हैं। वर्षों से यह दिखाना बंद हो गए हैं। अब धीरे-धीरे रोहू मछली की भी संख्या कम हो गई। वे भी प्रदूषण की शिकार हो गई हैं। कभी सोन की रोहू मछली को लेकर बंगाली डेमचा बाबुओं का पसंदीदा शहर रहे डेहरी बाजार में भी अब सोन की रोहू मुश्किल से मिल पाती है।
खनन विभाग कर रहा पर्यावरण की अनदेखी
खनन विभाग द्वारा पट्टे की नीलामी में पर्यावरण की अनदेखी की जा रही है। नदी के बीच से बालू निकासी को ले नदी की धारा को प्रभावित कर अस्थाई रास्ता बनाया गया है। जिससे सोन रेत में तब्दील होती जा रही है। रोहतास जिले के नौहट्टा प्रखंड में सोन के प्रवेश करने से लेकर नासरीगंज तक के लगभग 130 किमी की यात्रा में अबतक हजारों एकड़ कृषि भूमि नदी में विलीन हो गई। नदी से हो रहे कटाव को रोकने के लिए अबतक सार्थक पहल नहीं की गई। कुछ स्थानों पर कटाव निरोधक कार्य हुए लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। स्थानीय निवासी लगातार कटाव रोकने की मांग करते रहे है।
बालू खनन से जलीय जीवों को खतरा:
जिले से लेकर राजधानी तक खनन की चर्चा हमेशा होती रहती है। सरकार द्वारा खनन को सही प्रकार से चलाने के लिए कई हथकंडे अपनाए गए, लेकिन खनन तस्करों द्वारा सरकार के सभी नियमों को ताक पर रख खनन किया जा रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के रोक के बाद भी जेसीबी व अन्य मशीनों से बालू का खनन कार्य किया जा रहा है।