संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए माताओं ने किया जिउतिया व्रत
हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत एक महत्वपूर्ण त्योहार है। माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए यह व्रत बुधवार को निर्जला रहकर किया गया।
केटी न्यूज/डुमरांव
हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत एक महत्वपूर्ण त्योहार है। माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए यह व्रत बुधवार को निर्जला रहकर किया गया। यह व्रत मां के असीम प्रेम का प्रतीक है। भगवान जीमूतवाहन की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना कर अपने संतान की दीर्घायु, उन्नति और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की गयी। पूरे दिन माताएं इस व्रत को लेकर निर्जला उपवास रहकर अपनी परंपरा को निभाया। शाम होते ही बांके बिहारी मंदिर, राम जानकी मंदिर, शहीद पार्क शिव मंदिर, छठिया पोखरा शिव मंदिर, जंगलीनाथ महादेव मंदिर, रेलवे स्टेशन दुर्गा मंदिर आदि मंदिरों के परिसर में माताएं पहुंची और कथा का श्रवण कर फल, फूल, मिष्ठान के साथ सोने और रेशम के धागे से बने जिउतिया को भगवान के चरणों मे समर्पित कर उसे धारण किया। इस दौरान माताएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सिंदूरदान की रस्म पूरी की और जिउतिया माता से अपने संतानों के सुरक्षा करने की कामना की। मंदिरों में पंडितों ने धार्मिक कथाओं के अनुसार व्रत की कथा पढ़ते हुए बताया कि एक वन में चील और सियारिन सहेली के रूप में रहती थी। दोनों ने जिउतिया व्रत करने का संकल्प के साथ भगवान जीमूतवाहन का पूजन करने का प्रण लिया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार व्रतियों ने इनकी कथा सुन विधिवत पूजा-अर्चना की। इस दौरान मंदिरों में देवी-देवताओं के दर्शन के लिए माताओं की भीड़ लगी रही। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से संतान को जीवन मे सुख-समृद्धि के साथ रोग-दोष से मुक्ति मिलती हैं। व्रत के दौरान जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। व्रत का पारण गुरुवार की सुबह सूर्याेदय के बाद बताया जाता हैं। जिउतिया के दिन भगवान विष्णु, शिव और भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। इस व्रत में महिलाएं जीमूतवाहन भगवान की पूजा करती हैं। जीमूतवाहन की मूर्ति स्थापित कर पूजन सामग्री के साथ पूजा किया जाता है। घर की महिलाएं मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाती हैं। उसके बाद इन मूर्तियों के माथे पर सिंदूर का टीका लगाकर जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती हैं।