दवाओं का पूरा कोर्स ही कालाजार से दोबारा संक्रमित होने से करेगा बचाव

अब फ्रंट लाइन वर्कर्स, स्वास्थ्य कर्मचारियों और अधिकारियों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने की तैयारी की जा रही है। ताकि, जिले के सभी लोगों को कालाजार के संबंध में जानकारी हो सके।

दवाओं का पूरा कोर्स ही कालाजार से दोबारा संक्रमित होने से करेगा बचाव

- कालाजार से ठीक होने के बाद भी त्वचा प्रभावित होने की रहती है संभावना
- त्वचा के कालाजार से ठीक होने के बाद सरकार देती है 4000 रुपए का आर्थिक अनुदान

बक्सर | राज्य सरकार ने कालाजार उन्मूलन के लिए 2022 तक का लक्ष्य रखा था। यह तभी संभव होगा, जब सामुदायिक स्तर पर लोग जागरूक बनें। किसी भी बीमारी के संपूर्ण उन्मूलन के लिए जरूरी बात है यह कि लोगों को उसके लक्षणों की पहचान से लेकर इलाज की पूरी जानकारी हो। इसलिए अब फ्रंट लाइन वर्कर्स, स्वास्थ्य कर्मचारियों और अधिकारियों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने की तैयारी की जा रही है। ताकि, जिले के सभी लोगों को कालाजार के संबंध में जानकारी हो सके। कालाजार के संबंध में एक बात अजीब यह है कि इस बीमारी से पूरी तरह से ठीक हो चुके मरीज दोबारा से इसकी चपेट में आ सकते हैं। ऐसे में मरीज के शरीर पर त्वचा संबंधी लीश्मेनियेसिस रोग होने की संभावना रहती है। इसे त्वचा का कालाजार (पीकेडीएल) भी कहा जाता है। पीकेडीएल का इलाज पूर्ण रूप से किया जा सकता है। इसके लिए लगातार 12 सप्ताह तक दवा का सेवन करना पड़ता है। साथ ही, इलाज के बाद मरीज को 4000 रुपये का आर्थिक अनुदान भी सरकार द्वारा दिया जाता है।

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग में कालाजार भी एक प्रमुख रोग :
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आने के कारण भारत में कम से कम 20 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग मौजूद हैं। इन रोगों से रोगी में दुर्बलता तो आती ही है, कई स्थितियों में ये पीड़ित व्यक्ति की मौत का कारण भी बनती हैं। उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग में कालाजार भी एक प्रमुख रोग है। इसके कारण जिला समेत पूरे राज्य में हर साल मरीज पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि पीकेडीएल यानी त्वचा का कालाजार एक ऐसी स्थिति है, जब एलडी बॉडी नामक परजीवी त्वचा कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें संक्रमित कर देता और वहीं रहते हुए विकसित होकर त्वचा पर घाव के रूप में उभरने लगता है। उन्हें बार-बार बुखार आने लगता है। साथ ही, भूख में कमी, वजन का घटना, थकान महसूस होना, पेट का बढ़ जाना आदि इसके लक्षण के रूप में दिखाई देने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति को तुरंत नजदीक के अस्पताल में जाकर अपनी जांच करवानी चाहिए। ठीक होने के बाद भी कुछ व्यक्ति के शरीर पर चकता या दाग होने लगता है। ऐसे व्यक्तियों को भी अस्पताल जाकर अपनी जांच करानी चाहिए।

कालाजार के लक्षणों की पहचान होना जरूरी:
जिला वेक्टर जनित रोग सलाहकार राजीव कुमार ने बताया, कालाजार के लक्षणों की पहचान होना बहुत जरूरी है। कालाजार एक वेक्टर जनित रोग और संक्रमण वाली बीमारी है जो परजीवी लिस्मैनिया डोनोवानी के कारण होता है। जिसका असर शरीर पर धीरे-धीरे पड़ता है। यह परजीवी बालू मक्खी के जरिये फैलता है। इससे ग्रस्त मरीज खासकर गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है। रुक-रुक कर बुखार आना, भूख कम लगना, शरीर में पीलापन और वजन घटना, तिल्ली और लीवर का आकार बढ़ना, त्वचा-सूखी, पतली और होना और बाल झड़ना कालाजार के मुख्य लक्षण हैं। इससे पीड़ित होने पर शरीर में तेजी से खून की कमी होने लगती है।