श्रीराम बारात को देखने उमड़ा बक्सर, शहरवासियों ने की पुष्पवर्षा
पूज्य संत श्री खाकी बाबा सरकार की पुण्य स्मृति में आयोजित होने वाले 55 वें श्री सीताराम विवाह महोत्सव के आठवे दिन राम विवाह की झांकी निकाली गई।
केटी न्यूूज/बक्सर
पूज्य संत श्री खाकी बाबा सरकार की पुण्य स्मृति में आयोजित होने वाले 55 वें श्री सीताराम विवाह महोत्सव के आठवे दिन राम विवाह की झांकी निकाली गई। बारात आश्रम परिसर से निकलकर पूज्य संत खाकी बाबा के समाधि स्थल महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय पहुंची जहां बारात का भव्य स्वागत किया गया, इसके बाद झांकी का नगर का भ्रमण कराते हुए बारात पांडेयपट्टी स्थित ठाकुरबाड़ी पर पहुंची। इस दौरान राम बरात की झांकी देखने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ा था। रथ पर दूल्हे के रूप सज्जा में तैयार बैठे चारों भाईयों को देख लोग पुष्प वर्षा कर रहे थे तथा जयकारे लगा रहे थे। इस झांकी की एक झलक पाने के लिए लोगों में होड़ मची रही।
इसके पूर्व नया बाजार स्थित आश्रम में आज पूरे विधि-विधान के साथ प्रभु श्रीराम सहित चारों दुल्हा सरकार का हल्दी और मटकोर विधि किया गया। शाम में आश्रम परिसर से गाजे बाजे के साथ भगवान श्रीराम का बारात निकाला गया। बारात में विभिन्न प्रकार की झांकियां थी, जिसमें अलग-अलग स्वरूप में देवता शामिल हुए। राम बराम की यह झांकी शहर में पूरे दिन आकर्षण का केन्द्र बनी रही।
प्रभु श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण ने वन को किया प्रस्थान
वही श्री सीताराम विवाह महोत्सव के अंतर्गत चल रहे श्रीमद् वाल्मीकि रामायण कथा में कथा व्यास अयोध्या के पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य श्री विद्या भास्कर जी महाराज ने आज की कथा में भगवान राम के वन गमन की कथा का भावपूर्ण वर्णन किया। महाराज ने कहा कि महाराज दशरथ से वन गमन का आदेश प्राप्त करने के बाद प्रभु श्रीराम माता कौशल्या से आज्ञा लेने के लिए प्रस्थान करते हैं। माता कौशल्या वन गमन का आदेश सुनकर अचरज में पड़ जाती हैं और कहती हैं कि मैं तुम्हें आदेश देता हूं, लेकिन प्रभु उन्हें बीच में ही रोक कर कहते हैं कि हे माता, आप कुछ मत कहिए, क्योंकि आप यदि मुझे अयोध्या में रहने का आदेश दंेगी तो मैं धर्म संकट में फंस जाऊंगा। क्योंकि पिता की यही आज्ञा है कि मैं वन में जाऊं और भरत युवराज के पद पर विराजमान हो। इसलिए मुझे पिता की आज्ञा पालन करने के लिए आप आशीर्वाद दीजिए। तब माता कौशल्या ने मंगलाचरण करते हुए प्रभु श्री राम के वनवास के सफल होने की कामना की।
विद्याभास्कर जी के श्रीमुख से भगवान राम के वन गमन की कथा सुन उपस्थित भक्त भाव विह्वल हो गए। महाराज ने कहा कि श्री रामचरितमानस वाल्मीकि रामायण की कुंजी है। यदि वाल्मीकि रामायण में शंका हो तो उसका समाधान श्री रामचरितमानस में और यदि श्री रामचरितमानस में शंका हो तो उसका समाधान वाल्मीकि रामायण में मिलता है। क्योंकि दोनों रचना एक ही व्यक्ति की है। श्रीमद् वाल्मीकि रामायण महर्षि वाल्मीकि जी की रचना है जबकि उन्हीं के अपरावतार गोस्वामी तुलसीदास जी की रचना श्री रामचरितमानस है।