डुमरांव नप का 156 साल पुराना इतिहास महिलाओं का कायम रहता है दबबा

डुमरांव नप का 156 साल पुराना इतिहास महिलाओं का कायम रहता है दबबा
डुमरांव नप का 156 साल पुराना इतिहास महिलाओं का कायम रहता है दबबा

- 26 पार्षद को है सदन 2017 नप चुनाव में 15 महिलाएं हुई थी विजयी

- 12 गांव के वोटर हुए 2023 चुनाव में शहरी पहली बार करेगें नप चुनाव के लिए मतदान

- डुमरांव नगरपालिका की स्थापना वर्ष 1868 में ब्रिटिश हुकूमत ने कराई थी  इंग्लैंड के संविधान के तहत चेयरमैन की होती थी नियुक्ती

-   वर्ष 1950 में नप अधिनियम के तहत 12 वर्ष के युवा व युवतियों को मतदान करने का मिला था अधिकार 

केटी न्यूज/ डुमरांव  रजनीकांत दुबे

नगर परिषद डुमरांव में शुरू से ही महिलाओं को सम्मान मिलता आया है। विकास की कुंजी अधिकांशतः महिलाओं के हाथों में होती थी। पहली बार डुमरांव के सर्वाधिक चर्चित कांग्रेसी नेता स्व. द्वारिका प्रसाद केशरी की पत्नी मीरा देवी चेयरमैन चुनी गई। अभी भी फिलहाल नप मुख्य पार्षद पद पर भागमनी देवी का कुर्सी पर महिलाओं का कब्जा था। ज्ञात हो वर्ष 2017 में हुए थे जिसमें 26 वार्डाे में 15 पर महिला पार्षद ही चुनाव में परचम लहराया था।

वर्ष 07 में बना नगर परिषद

उच्च न्यायालय के आदेश पर नगर पंचायत को डुमरांव नगर परिषद का दर्जा मिला। पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद महिलाओं के अलावा अति पिछड़ा वर्ग के लिए सरकार ने सीट आरक्षण की व्यवस्था लागू कर दी। वर्ष 2005 में डुमरांव नगर पंचायत से नगर परिषद् में तब्दील हुआ और वार्डाे के पुर्नगठन के बाद 26 वार्डाे में बंट उनके आधार पर नगर परिषद का चुनाव हुआ। परन्तु इस बार कुल 35 वार्ड होगें। 2023 के चुनाव में आठ वार्ड बढ़े है। 70 हजार 769 मतदाता शामिल है, जो पहली बार चेयरमैन और उप चेयरमैन का चुनाव करेंगे। चुनाव को संपन्न कराने के लिए 85 मतदान केंद्र बनाये जायेंगे। वहीं सरकार के द्वारा इसबार नप का विस्तार किया गया है। जिसमें नगर पर्षद में पुराना भोजपुर, नया भोजपुर, हथेलीपुर मठिया, बनकट, महरौरा सहित 12 गांवों को शामिल किया गया है। नगर पर्षद का दायरा बढ़ने के बाद पहली बार 12 गांवों के वोटर शहर की सरकार को चुनने में अपनी हिस्सेदारी निभायेंगे। 

156 साल पुराना रहा है इतिहास

नगरपालिकाओं में डुमरांव नगरपालिका का अति प्राचीन इतिहास है। नगरपालिका की स्थापना वर्ष 1868 में ब्रिटिश हुकूमत में हुई थी। इंग्लैंड के संविधान के तहत स्थापित नगरपालिका में चेयरमैन की नियुक्ति बिहार, बंगाल, ओडिसा का प्रधान कार्यालय कलकत्ता प्रेसीडेंसी करता था। ब्रिटिश हुकूमत नगरपालिका के संचालन की जिम्मेवारी सिपहसलारों को सौंपा करता था। डुमरांव निकायों के मद्देनजर विकास की शुरुआत वर्ष 1950 में बिहार ओडिसा नगरपालिका अधिनियम बनाये जाने के बाद हुई। पहली बार इस अधिनियम के तहत 12 वर्ष के युवा व युवतियों को मतदान करने का अधिकार मिला।

नगरपालिका का वार्ड का गठन

1868 में स्थापित डुमरांव नगरपालिका को पहली बार वार्ड का गठन 1952 में किया गया। जिसे दो वार्डाे में बांटा गया एक वार्ड चार सदस्यीय होता था। दस सदस्यीय बोर्ड के गठन में आठ निर्वाचित सदस्य और दो सरकार द्वारा मनोनीत सदस्य होते थे। उस जमाने में स्थानीय स्वतंत्र सेनानियों में कुमारी बाबा, रामनरेश सिंह यादव तथा जवाहरलाल श्रीवास्तव निर्वाचित सदस्य चुने गए थे। नगरपालिका बोर्ड गठन में महज एक चेयरमैन एवं एक वाईस चेयरमैन हुआ करता था। ब्रिटिश शासन ने स्वशासन का अधिकार तो दिया था लेकिन मतदान का अधिकार नहीं दिया था। वस्तुतरू चेयरमैन से जुड़े लोग बनते थे। यह सिलसिला वर्ष 1947 तक चलता रहा।

पहली बार 1955 में हुआ नप का चुनाव

जानकारो की मानें तो अंग्रेजों द्वारा गठित बोर्ड के सदस्यों का चुनाव दस वर्षाे का होता था। लेकिन देश की आजादी के आठ वर्ष के बाद डुमरांव नगरपालिका का चु नाव वर्ष 1955 में कुल आठ वार्डाे के आधार पर हुआ। वर्ष 1963 में वार्डाे की संख्या बढ़कर 11 हो गई। लगातार 1980 तक प्रत्येक पांच साल पर चुनाव होता रहा। बीच में वर्ष 1988 से 2002 तक सरकार के द्वारा कारण वश डुमरांव नगरपालिका सहित प्रांत के निकायों का चुनाव नहीं हो सका। वर्ष 2002 में वार्डाे की संख्या 18 हो गई। 18 वार्डाे के आधार पर चुनाव हुआ।