गुमनाम हो गए है डुमरांव के 21 अमर शहीद, समिति ने धरना दे प्रशासन को दिलाई याद

देश को अंग्रेजो के बेड़ियों से आजाद कराने में अपने प्राणों की आहूति देने वाले डुमरांव के 21 अमर शहीदों को केन्द्र व राज्य सरकार के अलावे स्थानीय प्रशासन ने भूला दिया है। जिस कारण देश के प्रति उनके योगदानों तथा वीरता भरी शहादत से डुमरांव की भावी पीढ़ी अंजान है।

गुमनाम हो गए है डुमरांव के 21 अमर शहीद, समिति ने धरना दे प्रशासन को दिलाई याद

- अगस्त क्रांति दिवस पर शहीद स्मारक समिति ने किया प्रदर्शन, प्रशासन की उदासनीता पर जताया आक्रोश

- डुमरांव के 21 अमर शहीदों की पहचान सुरक्षित रखने के लिए नहीं बनाया गया है स्मृति द्वार तक, पांच सूत्री मांगों को समिति ने दुहराया

केटी न्यूज/डुमरांव

देश को अंग्रेजो के बेड़ियों से आजाद कराने में अपने प्राणों की आहूति देने वाले डुमरांव के 21 अमर शहीदों को केन्द्र व राज्य सरकार के अलावे स्थानीय प्रशासन ने भूला दिया है। जिस कारण देश के प्रति उनके योगदानों तथा वीरता भरी शहादत से डुमरांव की भावी पीढ़ी अंजान है। शुक्रवार को शहीद स्मारक समिति कपिलमुनी द्वार ने सन 1942 के अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान डुमरांव थाना पर भारत का झंडा फहराने के दौरान शहीद हुए डुमरांव तथा आस पास के गांवों के 21 अमर सेनानियों को उचित सम्मान दिलाने के लिए एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया।

शहीद पार्क में आयोजित इस धरना की अध्यक्षता संजय चंद्रवंशी ने जबकि संचालन महेन्द्र राम ने किया। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि 1942 ई. में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर देशभर में भारत छोड़ो आंदोलन जोर पकड़ रहा था। उस दौरान डुमरांव के अमर सेनानियों ने अपना बलिदान दे अंग्रेजी थाना पर झंडा फहराया था। इस प्रयास में अंग्रेजी हुकूमत ने गोली भी चलवाई थी। अलग अलग समय में डुमरांव के कुल 21 क्रांतिकारी शहीद हुए थे। लेकिन, आजादी के बाद सिर्फ चार लोगों का नाम ही अमर सेनानियों में शामिल है।

अन्य शहीदों की पहचान के लिए न तो कई स्मृति द्वारा या तोरण द्वार बनाया गया है और न ही उनके यादों व बलिदान को संजोने के लिए उनकी प्रतिमा ही स्थापित की गई है। शिलापट्ट पर नाम तक नहीं लिखा जा रहा है। जो अमर शहीदों के प्रति सरकार तथा प्रशासन की उदासीनता को बयां कर रही है। वक्ताओं ने कहा कि आजादी के 77 वर्षों बाद भी देश को आजाद कराने के प्रयास में शहीद होने वालों के परिजन आज बदहाली के दौर से गुजर रहे है।

सरकार ने कभी उनकी सुध तक नहीं ली। इस दौरान स्थानीय जनप्रतिनिधि भी उन्हें सम्मान दिलाने के प्रति उदासीन बने रहें। धरना के माध्यम से वक्ताओं ने जिला प्रशासन व अनुमंडल प्रशासन के कार्यालय के सामने शहीदों की मूर्ति लगाने तथा तोरण द्वार बनवाने, उनकी वीरता भरी शहादत की गाथा को पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने, शहीदों के परिजनों को छह डिसमील जमीन देकर उस पर पीएम आवास योजना से मकान बनाने तथा परिजनों को

पेंशन देने, शहीद मेमोरियल हाल का निर्माण कराने 21 अमर शहीदों के गांव में उनकी मूर्ति लगाने आदि की मांग जिला प्रशासन व अनुमंडल प्रशासन से किया गया। मौके पर नंदजी गांधी, गोपाल प्रसाद गुप्ता, मनोज चंद्रवंशी, अंर्जुन सिंह, बिजली राम, बड़क गोंड, जगबहादूर सिंह, प्रभु सिंह, ललन कुशवाहा समेत कई अन्य शामिल थे।