..और जब फूट-फूट कर रोने लगे थे पूर्व पीएम चंद्रशेखर

हम बात कर रहे हैं उस शख्सियत की, जिसका नाम लेकर 'बलिया' आज भी खुद को गौरवान्वित महसूस करता है। जनपदवासियों का प्यार व दुलार, मिट्टी से लगाव, लोगों से अपनापन ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को रोने पर मजबूर कर दिया। बात 10 अक्टूबर 2006 की है जब आखिरी बार चंद्रशेखर बलिया आए थे। यह जनपद के लिए उनकी आखिरी यात्रा भी थी। तब बलिया पहुंचते ही वह काफी भावुक हो गए

..और जब फूट-फूट कर रोने लगे थे पूर्व पीएम चंद्रशेखर

 

- सियासत के युवा तुर्क ने सांसद से सीधे प्रधानमंत्री की शपथ ली थी

- बलिया लोकसभा सीट से सबसे बड़ी जीत युवा तुर्क "चंद्रशेखर" के नाम

केटी न्यूज/बलिया। 

हम बात कर रहे हैं उस शख्सियत की, जिसका नाम लेकर 'बलिया' आज भी खुद को गौरवान्वित महसूस करता है। जनपदवासियों का प्यार व दुलार, मिट्टी से लगाव, लोगों से अपनापन ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को रोने पर मजबूर कर दिया। बात 10 अक्टूबर 2006 की है जब आखिरी बार चंद्रशेखर बलिया आए थे। यह जनपद के लिए उनकी आखिरी यात्रा भी थी। तब बलिया पहुंचते ही वह काफी भावुक हो गए।

अपनों को देखा तो उनके आंखों से आंसू छलक पड़े। उनके रोते ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया था। तब लोग असमंजस में पड़ गए थे कि आखिर युवा तुर्क चंद्रशेखर को क्या हो गया ? लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई कुछ पूछ सके। बाद में खुद ही उन्होंने इस मिट्टी और यहां के लोगों से अटूट लगाव को व्यक्त किया था। उत्तर प्रदेश के बलिया अंतर्गत इब्राहिमपट्टी गांव में जन्में देश के 9वें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को लोग आज भी बड़े शिद्दत के साथ याद करते हैं।

देश में युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर उर्फ "दाढ़ी" सबके दिलों में अपनी अलग जगह बना चुके थे। वह आजाद हिंदुस्तान के पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने सांसद से सीधे प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। तब चंद्रशेखर कांग्रेस पार्टी के समर्थन से प्रधानमंत्री चुने गए थे। खास बात यह थी कि चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री रहने के बाद भी उनका बलिया से खास लगाव था। उनके कई किस्से याद कर आज भी लोग "दाढ़ी" को याद करते नहीं थकते। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जन्म बलिया जनपद के इब्राहिमपट्टी में 17 अप्रैल 1927 को हुआ था। वर्ष 2007 में इसी दिन उन्होंने अंतिम सांसें भी ली थी।

 

अंतिम बार 2006 में बलिया आए थे युवा तुर्क "चंद्रशेखर"

बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री  चंद्रशेखर अंतिम बार 2006 में बलिया आए थे। बलिया के लोग आज भी उनके उस मानवीय पक्ष को याद कर भावुक हो जाते हैं। बलिया पहुंचते ही चंद्रशेखर की आंखों से एकाएक आंसू छलक पड़े थे और युवा तुर्क के रोते ही आस-पास सन्नाटा छा गया था। आज भी उनकी जयंती व पुण्यतिथि पर चंद्रशेखर के किरदार को सभी याद करते हैं।

चंद्रशेखर की अनगिनत बलिया की यात्राओं में से सबसे यादगार 10 अक्टूबर 2006 की यात्रा मानी जाती है। क्योंकि यह यात्रा अंतिम यात्रा में बदल गई और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर आखिरी बार बलिया आए थे। उन्हें बलिया की मिट्टी से कितना लगाव था इसका उदाहरण भी उनकी अंतिम यात्रा के बीच देखने को मिला था। इस यात्रा के दौरान वह कई बार अलग-अलग जगहों पर भावुक हो गए थे। तब अस्वस्थ रहते हुए भी उन्होंने दिल्ली से बलिया आने का न केवल मन बनया, वह अपनों के बीच आए और सबसे मुलाकात की। अपने मित्र, शुभेच्छुओं और करीबियों का हाल -चाल जाना, फिर वापस दिल्ली चले गए थे।

 

चंद्रशेखर ने अपना पहला चुनाव 1977 में भारतीय लोकदल के बैनर तले लड़ा था

जेपी आंदोलन में कांग्रेस से रिश्ता खत्म करने के बाद युवा तुर्क चंद्रशेखर ने पहला चुनाव 1977 में भारतीय लोकदल के झंडे -डंडे को पकड़ पार्टी के सिबंल पर बलिया लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। उस समय उनके सामने कांग्रेस से चंद्रिका प्रसाद प्रतिद्वंद्वी के रूप में मैदान में थे। तब चंद्रशेखर ने अपने आत्मबल पर कुल पड़े वैध मतों का 71.0 प्रतिशत मत पाया था।

तब 2,62,641 मत पाकर चंद्रशेखर ने कांग्रेस के चंद्रिका प्रसाद (95,423) को 167,218 (45.2 प्रतिशत) मतों से हराया था। अपने बागी तेवर के लिए मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह के कारण पूर्वांचल ही नहीं देश में बलिया संसदीय सीट देश में हॉट सीट के रूप में जानी जाती है। चंद्रशेखर जब तक सियासत में सक्रिय रहे, हर चुनाव में पूरे देश की नजरें बलिया पर टिकीं रहती थीं। 

 

बलिया संसदीय क्षेत्र का आठ बार प्रतिनिधित्व करने वाले चंद्रशेखर के नाम ही यहां से सबसे बड़ी जीत दर्ज करने का भी रिकार्ड है। 1952 में हुए देश के पहले आम चुनाव में शिक्षाविद् मुरली मनोहर ने 6431 मतों से जीत दर्ज की थी। यह बलिया के चुनावी इतिहास में सबसे कम अंतर से जीत है। उन्होंने प्रख्यात शिक्षाविद पं मदन मोहन मालवीय के सबसे छोटे पुत्र एवं कांग्रेस के गोविंद मालवीय को 6431 मतों से हराया था। हालांकि उस समय कुल वोटरों की संख्या मात्र 3,68,287 थी। इसमें 1,26,480 (34.3 प्रतिशत) मत पोल हुए थे।