डुमरांव के गुड़ की मिठास से कायल है यूपी-झारखंड के छठ व्रती, डाला में सजेगा गुड़ही ठेकुआ
- मंडियों में बढ़ी गुड़ की मांग, खुशबू से महक रहा किसानों का आंगन
अमरनाथ केशरी/डुमरांव
लोक आस्था का महापर्व छठ में गुड़ की महत्ता बढ़ जाती है। इस बार डुमरांव के गुड़ की खुशबू से यूपी और झारखंड के मंडिया भी कायल है। यहां के बने गुड़ से कई राज्यों के छठ व्रती छठ मईया का प्रसाद बना कर सूर्य देवता को अर्घ्य देंगे। गुड़ के कारोबार से जुड़े स्थानीय ग्रामीण इलाकों के किसानों की आंगन में गुड़ के कराह चढ़ गये है। गुड़ की सोंधी खुशबू से इलाका महक रहा है। मंडियों में गुड़ की मांग बढ़ गयी है और व्यापारी गुड़ की खरीदारी कर अपने मंडियों में ले जाकर बिक्री कर रहे है। लोक परंपरा के अनुसार वहां के छठ व्रती छठ मईया के प्रसाद में गुड़ का ठेकुआ बनाकर इसका इस्तेमाल करेंगे। गन्ना किसान की माने तो डुमरांव के नंदन, चतुरशालगंज, आमसारी, लाखनडेरा, अरियांव आदि इलाके में बनने वाले गुड़ अन्य राज्यो में भी प्रसिद्धि दिलाई है। यहां की मिट्टी से उपजे गन्ने की पेराई कर बनाये गये गुड़ यूपी के बलिया, गोरखपुर, बनारस, गाजीपुर और झारखंड के कोडरमा, चौपारण, रांची, धनबाद और बोकारो के व्यापारी यहां से गुड़ की खरीदारी कर अपने मंडियों में बेच अच्छी कमाई करते है। छठ महापर्व को लेकर दिन-रात किसान कड़ी मेहनत कर गुड़ बनाने में जुटे है।
10 घंटे में तैयार होता है गुड़
किसान कहते है कि 20 किलोग्राम गुड़ बनाने में करीब 10 घंटे का समय लगता है। 80 लीटर ईख के रस को चार घंटे तक तेज़ आंच पर पकाया जाता है। जब वह मधु की तरह होता है तो उसे दो घंटे तक ठंडे जगह पर रखने के बाद घर का पूरा परिवार दानेदार रावा को छोटे-छोटे लड्डू के तरह तैयार किया जाता है। इस काम मे पूरा दिन निकल जाता है। व्यापारी इस गुड़ को 45 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीद करते है और अपने मंडियों में ले जाकर 55 से 60 रुपये प्रति किलो बिक्री करते है। इस आमदनी से पूरे परिवार का भरण-पोषण आसानी से हो जाता है।
बगैर सहायता किसान बेदम
अपनी मेहनत के बदौलत आर्थिक लाभ कमाने वाले किसानों का कहना है कि ईख की खेती के लिए सरकार की ओर से कोई बढ़ावा नही मिला है। सौ किलोमीटर के दायरे में एक भी चीनी मिल नही है, जिससे किसानों को मोटे लाभ से वंचित रहना पड़ता है। किसान कहते है कि अन्य फसलों की उपज बढ़ाने के लिए सरकार नये-नये कृषि यंत्रों को मुहैया करा रही है लेकिन ईख की खेती करने वाले किसानों को सरकारी सहायता के नाम पर कोई मदद नही मिल पायी है। ईख की पैदावार के लिए आसमानी पानी पर निर्भर रहना पड़ता है।