डरावनी जगहों पर जाने के हैं शौकीन तो दिल्ली के खूनी दरवाज़े के बारे में जाने

आप दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं, तो आप जानते होंगे कि यहां कश्मीरी गेट और अजमेरी गेट जैसे कई गेट और पुराने दरवाजे हैं। इन्हीं में से एक है दिल्ली का'लाल दरवाजा'।

डरावनी जगहों पर जाने के हैं शौकीन तो दिल्ली के खूनी दरवाज़े के बारे में जाने
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केटी न्यूज़/नई दिल्ली

आप दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं, तो आप जानते होंगे कि यहां कश्मीरी गेट और अजमेरी गेट जैसे कई गेट और पुराने दरवाजे हैं। इन्हीं में से एक है दिल्ली का'लाल दरवाजा'। इसे लोग 'खूनी दरवाजा' के नाम से भी जानते हैं।शाम होने के बाद यहां लोगों को डर लगने लगता है। इस दरवाजे से जुड़े इतिहास में कई डरावने किस्से दर्ज हैं। 

इस गेट से जुड़ा सबसे पहला खूनी इतिहास सबसे क्रूर मुगल शासक औरंगजेब से जुड़ा है। ये बात है 10 सितंबर 1659 की, जब औरंगजेब ने दिल्ली की कुर्सी हासिल करने के लिए अपने परिवार को धोखा दिया। उसने अपने बड़े भाई दारा शिकोह का सिर कटवाकर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद उसने इसी दरवाजे पर दारा शिकोह के सिर को लटका दिया। भाई की हत्या करने के बाद वो मुगल साम्राज्य का शासक बन गया।

यह असल में दरवाजा न होकर तोरण है। इसका यह नाम तब पड़ा जब यहां मुगल सल्तनत के तीन शहजादों - बहादुरशाह जफर के बेटों मिर्जा मुगल और किज्र सुल्तान और पोते अबू बकर - को ब्रिटिश जनरल विलियम हॉडसन ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी थी। बहादुरशाह जफर के आत्मसमर्पण के अगले ही दिन विलियम हॉडसन ने तीनों शहजादों को भी समर्पण करने पर मजबूर कर दिया। 22 सितम्बर को जब वह इन तीनों को हुमायूं के मकबरे से लाल किले ले जा रहा था, तो उसने इन्हें इस जगह रोका, नग्न किया और गोलियां दाग कर मार डाला। इसके बाद शवों को इसी हालत में ले जाकर कोतवाली के सामने रखवाया।

इसे लाल दरवाजा भी कहा जाता है। ये इमारत भारत की आजादी के लिए संघर्ष की गवाह रही है।इसके अलावा 1947 में विभाजन के दौरान ही सैकड़ों शरणार्थियों की इसी दरवाजे पर हत्या कर दी गई। दरवाजे के आसपास के इलाके में रहने वाले लोग बताते हैं कि आज भी यहां रात में चीखने-पुकारने की आवाजें आती हैं। लोगों का कहना है कि जिन लोगों को यहां मारा गया उनकी आत्माएं आज भी यहीं भटकती हैं। कुछ लोग यहां तक कहते हैं कि मॉनसून के मौसम में दरवाजे की छत से खून की बूंदें टपकती हैं।