जिंदगी की जंग हार गए चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री को पटखनी देने वाले रामाश्रय सिंह

जिंदगी की जंग हार गए चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री को पटखनी देने वाले रामाश्रय सिंह
पूर्व विधायक की फाईल फोटो

- केसठ प्रखंड के कुलमनपुर गांव के रहने वाले थे पूर्व विधायक रामाश्रयय सिंह, 76 वर्ष की अवस्था में दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ली अंतिम सांस

केटी न्यूज/केसठ

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सरदार हरिहर सिंह को चुनावी मैदान में पटखनी देने वाले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व विधायक रामाश्रय सिंह जिंदगी की जंग हा गए है। 76 साल की उम्र में उन्होंने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर मिलते ही राजनीतिक गलियारे में शोक की लहर दौड़ गई है। मिली जानकारी के अनुसार वे तीन दिन पहले अपने पुत्री से मिलने के लिए दिल्ली गए हुए थे। शुक्रवार की रात खाना खा कर छत पर टहलने के लिए गए हुए थे।

इसी दौरान वे छत से नीचे गिर गए। घरवालों की जब उनपर नजर पड़ी तो तत्काल उन्हें इलाज के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। जब इसकी सूचना मिली तब पूरा विधानसभा क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ पड़ी। लोग मातमपुर्सी के लिए कुलमनपुर स्थित उनके घर पहुंचने लगे। वे अपने पीछे दो पुत्र और तीन पुत्रियों सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके बड़े पुत्र चितरंजन कुमार सिंह ने बताया कि अंतिम संस्कार बक्सर में ही होगा तथा पैतृक गांव से शवयात्रा निकाली जाएगी।

वही उनकी पत्नी राजस्वारी देवी का रो रो का बुरा हाल हो गया था उनके निधन की जानकारी मिलते ही राजद के वरिष्ठ नेता सुनिल कुमार यादव उर्फ पप्पू यादव, पूर्व जिप अध्यक्ष अरविंद कुमार यादव उर्फ गामा पहलवान, पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष डॉ विद्या भारती, अजय कुमार विक्रांत, सतेंद्र कुमार, संजय उपाध्याय, कुंवर भीम सिंह, रामजी कुमार, धर्मेंद्र सिंह, नागेंद्र ओझा सहित सैकड़ों दिग्गज नेताओं और समाजसेवियों ने उनके निधन पर शोक जताया है।

मुखिया से बने थे विधायक

रामाश्रय सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बतौर मुखिया किए थे। वे 1967-68 में अपने पंचायत के मुखिया चुने गए थे। वे रामपुर पंचायत के मुखिया पद पर रहते हुए वर्ष 1977 में डुमरांव विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े तथा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व चौगाईं स्टेट के नाम से विख्यात सरदार हरिहर सिंह को पराजित कर विधायक बने। उन्होंने बिहार विधानसभा में डुमरांव विधानसभा क्षेत्र का ढाई वर्ष के लिए प्रतिनिधित्व किया था।

अपनी सादगी और स्पष्टवादिता के लिए रामाश्रय  सिंह बिहार समेत देश की राजनीति में जाने जाते थे। वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव में जब वे बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार हरिहर प्रसाद सिंह को पराजित किए थे तो पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया था। सबसे कम उम्र में बने विधायक ने बिहार के राजनीति में भूचाल ला दिया था। वे 1977 से लेकर 1980 तक विधायक पद पर रहे।

खपड़े के घर में पलता है परिवार

आधुनिक युग में विधायक बनने के बाद लोग रॉयल लाइफ और गाड़ी बंगला आदि सुविधायुक्त जीवन निर्वहन करने लगते है। लेकिन रामाश्रय सिंह विधायक बनने के बाद भी अपना पूरा सादगी से बिताए तथा आज भी उनका परिवार कुलमनुपर में खपरैल मकान में रहता है। उन्होेंने अपना जीवन साइकिल से यात्रा कर गुजार दिए। कभी अपने नाम पर बाइक या मोटरकार नहीं खरीदी। उनके दोनों पुत्र चितरंजन सिंह और जितेंद्र सिंह गांव में ही खेती कर अपना जीवन यापन करते है। विधायक बनने के बाद भी वे अपने निजी कामों के लिए सरकार के द्वारा दी गई सुख सुविधा और राशि का दुरपयोग नहीं किए। वे और उनका परिवार साधारण रूप में जीवन यापन करते है।

मलई बराज आंदोलन के थे जनक

जिले के हजारों किसानों को खेत तक पानी पहुंचाने के लिए उन्होंने मलई बराज निर्माण के लिए एक बड़ा किसान आंदोलन भी छेड़ा था। वे इस आंदोलन के जनक भी थे। उस समय कई किसान नेताओं ने उन्हें अपना समर्थन दिया था। भले ही लालफिताशाही तथा सरकार की उदासीता के कारण मलई बराज का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका, लेकिन वे इस आंदोलन में यह बता दिए कि किसानों के हित के लिए वे कभी चुप नहीं बैठने वाले थे। इस आंदोलन ने उन्हें जन नेता बना दिया था। वे अपने साथियों के साथ पैदल चल कर आंदोलन किए थे।

सामाजिक कार्यों में रखते थे रुचि

छोटे से गांव के गलियों से निकलकर राजनीत में क्रांति लाने वाले रामश्रय सिंह शुरू से ही सामाजिक कार्यों में रुचि रखते थे। वे कही भी किसी भी सामाजिक कार्यों में आगे रहते थे। अपनी वाणी के जरिए क्रांति ला देते थे। लोगों ने कहा कि उनके निधन हो जाने से राजनीति के एक युग का अंत हो गया।