अपने ही आदेश पर कायम नहीं रह पाए सदर एसडीओ
दस्तावेजों की परत-दर-परत पलटने पर सदर अनुमंडल पदाधिकारी धीरेंद्र मिश्रा ने नए-नए तथ्य खुलकर सामने आ रहे है। प्राप्त दस्तावेज में एसडीओ अपने की आदेश पर कायम नहीं रह पाए है। विदित हो कि केटी न्यूज ने इस बात का खुलासा किया था कि डीएम व एडीएम के आदेश को एसडीओ ने पलट दिया है।
केटी न्यूज/बक्सर
दस्तावेजों की परत-दर-परत पलटने पर सदर अनुमंडल पदाधिकारी धीरेंद्र मिश्रा ने नए-नए तथ्य खुलकर सामने आ रहे है। प्राप्त दस्तावेज में एसडीओ अपने की आदेश पर कायम नहीं रह पाए है। विदित हो कि केटी न्यूज ने इस बात का खुलासा किया था कि डीएम व एडीएम के आदेश को एसडीओ ने पलट दिया है। जिसमें यह बात सामने आयी कि राजपुर प्रखंड के सैंथू गांव निवासी गणेश चौबे के 14 एकड़ की भूमि को तत्कालीन अंचलाधिकारी की मिली भगत से दूसरे के नाम पर जमाबंदी कर दिया गया था।
तत्कालीन डीएम अमन समीर ने मामले की जांच करायी थी। जिसमें सीओ की गड़बड़ी सामने आयी थी। वहीं पीड़ित गणेश चौबे ने अपर समार्हता के कोर्ट के परिवाद दायर किया था। सभी पक्ष व दस्तावेज की जांच के बाद गणेश चौबे के नाम पर जमाबंदी करने का आदेश पारित किया था। गणेश चौबे के नाम पर जमाबंदी होने के एक माह बाद सदर एसडीओ ने जनता दरबार में सभी के आदेश को पलट दिया।
अपने आदेश पर नहीं रह पाए कायम
सदर एसडीओ धीरेंद्र मिश्रा ने इस वाद (मु0न0-292, दिनांक-08 जून 2023 ) पर अपना आदेश पारित किया था। जिसमें लिखा है कि वर्तमान समय में सब जज प्रथम के न्यायालय में विचारणीय लंबित है। इस प्रकार प्रश्नगत भू-खंड के स्वत्व एवं दखल कब्जा के बिन्दु पर जहां दो-दो सवत्व वाद लंबित है। वैसी स्थिति में इस वाद के अंतर्गत किसी प्रकार का प्रभावी आदेश पारित करना न्यायोचित प्रतीत नहीं होता है। इसी आदेश के साथ ही इस वाद की कार्रवाई समाप्त की जाती है। वहीं 31 दिसंबर को भूमि के संबंध में एसडीओ ने दूसरा आदेश पारित कर दिया है।
नहीं है रिव्यू करने का अधिकार
इस पूरे मामले पर जानकार अधिवक्ताओं से राय ली गई। उनलोगों ने बताया कि जमाबंदी के आदेश जब एडीएम कोर्ट से हो गया। अनुमंडल पदाधिकारी को इस मामले में दखल देने का क्षेत्राधिकारी नहीं है। एसडीओ ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर इस तरह का कृत्य किया है। एसडीओ का मुख्य कार्य शांति व्यवस्था बनाए रखा है। भारतीय न्याय संहिता बीएनएस की धारा-126 के तहत शांति व्यवस्था की देखभाल करने का अधिकार है।