स्वाधीनता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शिवविलास को भूल रही युवा पीढ़ी
गोरों ( अंग्रेजों ) की पिटाई से जख्मी हुए आजादी के दीवाने शिवविलास मिश्र की इच्छा यही थी कि उनकी मौत आजाद भारत में हो। ईश्वर ने उनकी यह मुराद तब पूरी कि जब पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था। ठीक उसी वक्त उनकी तबीयत बिगड़ी और जय हिन्द कहते हुए विदा हो गये।
- सरकारी संपत्ति जलाने के आरोप में अंग्रेजी हुकूमत ने दिया था गोली मारने का आदेश
- 11 अगस्त 1921 की डुमरांव की सभा में गांधी जी से मिले थे शिव विलास मिश्र
- आजादी के दीवाने शिवविलास मिश्र की इच्छा थी कि उनकी मौत आजाद भारत में हो
पीके बादल/केसठ
गोरों ( अंग्रेजों ) की पिटाई से जख्मी हुए आजादी के दीवाने शिवविलास मिश्र की इच्छा यही थी कि उनकी मौत आजाद भारत में हो। ईश्वर ने उनकी यह मुराद तब पूरी कि जब पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था। ठीक उसी वक्त उनकी तबीयत बिगड़ी और जय हिन्द कहते हुए विदा हो गये।
आजादी के आंदोलन के दौरान अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानी पंडित शिवविलास मिश्र की यादें अब धुंधली पड़ने लगी है। जन्मस्थली में अभी तक ऐसी कोई स्मृति नहीं जिसे देखकर आने वाली पीढ़ी गौरव महसूस कर सकें। परिवार को इसका मलाल है कि किसी ने भी इस सेनानी के बलिदान को जीवंत करने की दिशा में कोई पहल नहीं की।
केसठ प्रखंड के केसठ गांव में 1891 में शिव विलास मिश्र का जन्म हुआ था। होश संभालते ही सामाजिक कार्यों में लगे रहते थे, उन दिनों अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देशभर में आंदोलन चल रहा था। महात्मा गांधी 11 अगस्त 1921 को डुमरांव की सभा में भाग लेने आए थे। शिवविलास अपने गांव केसठ से चलकर डुमरांव पहुंचे और महात्मा गांधी से मिलकर खुद को आजादी की लड़ाई में झोंक दिए।
इस दौरान सिकरौल डाक बंगला नावानगर और डुमरांव थाना जलाने के आरोप में अंग्रेजों ने तीन दिनों के भीतर गोली मारने का आदेश जारी किया था। चौथे दिन शिवविलास अंग्रेजों के गिरफ्त में आ गए। अंग्रेजों ने इतनी पिटाई की उनका मुंह का जबड़ा टूट गया और वह कैंसर के चपेट में आ गये। गिरफ्तारी के बाद भागलपुर जेल में 6 वर्ष फुलवारी जेल में एक वर्ष और सेंट्रल जेल बक्सर में 6 माह की सजा काटी थी।
जब देश आजाद हुआ उस वक्त कैंसर से पीड़ित हो गए थे। जब पटना के गांधी मैदान में आजादी का जश्न मन रहा था तब खराब तबीयत के बावजूद शिव विलास खुद को रोक नहीं सकें तथा चुपके से निकल पड़े। तबीयत काफी बिगड़ गई और उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके पौत्र विनीत कुमार मिश्र बताते हैं
कि उनकी स्मृति को संजोने की दिशा में अभी तक कोई पहल नहीं हुई। ऐसे में आने वाली पीढ़ी भी आजादी के दीवाने के योगदान को याद नहीं कर पाएगी। जरूरत है शिव विलास जैसे आजादी के दीवानों की स्मृतियों को संजोने की ताकी भावी पीढ़ी उनके त्याग व बलिदान से सीख ले सकें।