केटी न्यूज़, ऑनलाइन डेस्क: सारण ज़िले का दिघवारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनगिनत नायकों की धरती, मलखाचक गांव, आज भी अपने गौरवशाली अतीत की गवाही देता है। यहां की गांधी कुटीर, जो कभी सोनपुर के प्रथम विधायक और स्वतंत्रता सेनानी स्व. रामबिनोद सिंह की कोठी थी, अब भी क्रांतिकारियों के संघर्ष की कहानियों को संजोए हुए है। इस गांव की चर्चा आज भी लोगों की जुबान पर है, लेकिन विकास की रोशनी से यह गांव अब तक अछूता है।
गांव में प्रवेश करते ही एक विशाल अमराई और पेड़-पौधों का घना जंगल नजर आता है, जिसके बीच में स्थित है गांधी कुटीर। यह कुटीर न केवल इतिहास की गवाह है, बल्कि आजादी के दीवानों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल भी रहा है। इस गांव की ऐतिहासिक महत्ता को समझते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी पिछले वर्ष यहां आए थे और उन्होंने इस पवित्र भूमि को नमन किया था।
फिर भी, इस गांव की बेटियों के लिए उच्च शिक्षा की कोई सुविधा नहीं है। वे दो किलोमीटर की दूरी तय कर दिघवारा पढ़ने जाती हैं। स्वास्थ्य सेवाओं का भी यहां अभाव है। उप स्वास्थ्य केंद्र होते हुए भी चिकित्सकों का अभाव और एएनएम की अनियमित उपस्थिति ग्रामीणों के लिए चिंता का विषय है। शाम ढलते ही गांव के रास्ते अंधेरे में डूब जाते हैं, सोलर लाइट की कमी और सड़कों की खस्ता हालत यहां की विकास की धीमी गति को दर्शाती है।
गांव के निवासी और पूर्व मुखिया स्व. शिवाजीत सिंह के पुत्र सतीश सिंह का कहना है कि मलखाचक गांव ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपने बेटे रामदेनी सिंह को फांसी पर चढ़ाया और श्रीनारायण सिंह को अंग्रेजों की गोली का शिकार होना पड़ा। इसके बावजूद, यह गांव आज भी विकास के मामले में पिछड़ा हुआ है।
यह गांव, जिसने देश की आजादी के लिए अपने बेटे-बेटियों की कुर्बानियां दीं, आज भी विकास की राह देख रहा है। ग्रामीण अपने पूर्वजों की विरासत को संजोए हुए हैं, लेकिन उन्हें अब भी उस विकास की प्रतीक्षा है जिसके वे हकदार हैं। यह गांव न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि एक जीवंत उदाहरण भी है कि कैसे इतिहास के पन्नों पर चमकने वाले नायकों की भूमि आज भी विकास की बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रही है।
इस गांव की कहानी एक ऐसे भारत की कहानी है जो अपने अतीत की महानता को समेटे हुए है, लेकिन वर्तमान में विकास की राह देख रहा है। मलखाचक गांव की यह यात्रा उन सभी के लिए एक सबक है जो इतिहास को सिर्फ पुस्तकों में सीमित रखते हैं, जबकि इसकी गूंज आज भी इस गांव की गलियों में सुनाई देती है।