सर्वे और ड्यू लिस्ट का काम पूर होते ही जिले में शुरू होगा खसरा और रुबेला का टीकाकरण
सर्वे के बाद जिले के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर शिविर आयोजित कर टीकाकृत किया जाएगा। लेकिन, उसके पूर्व टीका से वंचित पांच साल से कम बच्चों का सर्वे किया जा रहा है। 10 जनवरी तक सर्वे का कार्य पूरा कर लेना है। वहीं, 16 जनवरी को सर्वे की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजनी है। वहीं, सर्वे के बाद टीका से वंचित सभी बच्चों को 31 जनवरी तक टीकाकरण भी कर देना है।
- जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी ने सभी प्रखंडों से ड्यू लिस्ट किया तलब
- गंभीर बीमारी, तेज बुखार और गर्भावस्था में यह टीका नहीं लगाया जाता
बक्सर | जिले में खसरा और रुबेला के लिए जिले में सर्वे का काम लगभग पूरा हो चुका है। इसके लिए जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी ने जिले के सभी प्रखंडों से सर्वे की रिपोर्ट और ड्यू लिस्ट तलब की है। जिसके बाद प्रखंडों में सर्वे को पूरा करने के लिए जोरशोर से काम किया जा रहा है। ताकि, 15 जनवरी से पूर्व सर्वे लिस्ट मुख्यालय को भेजी जा सके। इस क्रम में जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राज किशोर सिंह ने बताया, सर्वे के बाद जिले के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर शिविर आयोजित कर टीकाकृत किया जाएगा। लेकिन, उसके पूर्व टीका से वंचित पांच साल से कम बच्चों का सर्वे किया जा रहा है। 10 जनवरी तक सर्वे का कार्य पूरा कर लेना है। वहीं, 16 जनवरी को सर्वे की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजनी है। वहीं, सर्वे के बाद टीका से वंचित सभी बच्चों को 31 जनवरी तक टीकाकरण भी कर देना है। जिन इलाकों में खसरा-रुबैला संक्रमित बच्चों में 9 माह से नीचे के बच्चों का 10 फीसदी अथवा उससे अधिक मामले पाए जाएंगे, उन क्षेत्रों में 6 माह से 9 माह तक के सभी बच्चों को खसरा-रुबैला का एक टीका आउटब्रेक रिस्पांस इम्यूनाइजेशन के अंतर्गत दिया जाएगा।
कुपोषित बच्चों को भी यह टीका लगाना है :
यूनिसेफ की एसएमसी शगुफ्ता जमील ने बताया, खसरा वायरस जनित जानलेवा रोग है। इसमें बुखार, खांसी, जुकाम, आंखें लाल होना आदि लक्षण दिखते हैं। खसरे के चकते बुखार आने के दो दिन बाद दिखते हैं। इसमें डायरिया, निमोनिया, मस्तिष्क की सूजन जैसी जटिलताएं भी हो सकती हैं। कुपोषित बच्चों को भी यह टीका लगाना है। इस प्रकार के बच्चों में संक्रमण की संभावना ज्यादा होती है। किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी, तेज बुखार और गर्भावस्था में यह टीका नहीं लगाया जाता है। उन्होंने बताया कि गर्भवती महिलाओं में रुबेला रोग होने से जन्मजात रुबेला सिन्ड्रोम हो सकता है। जो गर्भस्थ भ्रूण व नवजात शिशु के लिए बेहद गंभीर हो सकता है। रुबेला से गर्भवती माताओं के गर्भपात, नवजात की मौत, नवजात को जन्मजात बीमारी का खतरा रहता है, अगर जन्म ले भी लेता है तो उसका जीवन भी परेशानियों से भरा होता है। जिसमें आंख में ग्लूकोमा, मोतियाबिन्द, कान में बहरापन तथा मस्तिष्क प्रभावित हो सकते हैं ।
पहली खुराक की कवरेज में हुई बढ़होतरी:
अमेरिका संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2017-2021 के दौरान भारत में खसरा के मामलों में 62 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जबकि रूबेला के मामलों में भी 48 फीसद तक कमी देखने को मिली है। जिसे शून्य करने के लिए अभी भी काम किए जाने हैं। सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार खसरा और रुबेला युक्त टीके की पहली खुराक की कवरेज भी अच्छी खासी बढ़ी है, जो पहले के 68 फीसद की बजाय 2021 में 89 प्रतिशत पहुंच गई। यही नहीं लगातार टीकाकरण अभियान और लोगों में बढ़ती जागरूकता के चलते खसरे की खुराक कवरेज जहां पहले सिर्फ 27 प्रतिशत थी, वहीं अब यह 82 फीसद बच्चों को मिल रही है। एक समय था जब खसरा और रुबेला बच्चों की मौत का एक बड़ा कारण होता था। टीकाकरण अभियान से खसरा और रुबेला के मामलों को कंट्रोल करने में बड़ी सफलता मिली है। टीकाकरण बढ़ने से मामलों में बड़ी कमी जरूर आई है, लेकिन अब भी खसरा- रुबेला का उन्मूलन नहीं हो सका है और इस लक्ष्य को हासिल करना अब भी कठिन लगता है।