अक्षय तृतिया आज बेहद खास बन रहे है संयोग, देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की होती है पूजा: पं. द्विवेदी
अक्षय'का शाब्दिक अर्थ हैं--जिसका कभी नाश न हो अथवा स्थायी रहे। यह अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर तिथि हैं।
- अक्षय तृतिया के दिन दान-पुण्य व अच्छे कर्मों को करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है : पं. नरोत्तम
- अक्षय तृतीया का पर्व वसन्त और ग्रीष्म के सन्निपात का है महोत्सव
- सोना खरीदना इस दिन सबसे ज्यादा होता है शुभ
- अक्षय तृतीया तिथि प्रात:काल 05:31 से शुरु होकर 04:37अगले प्रात:काल तक रहेगा
केटी न्यूज/बक्सर
'अक्षय'का शाब्दिक अर्थ हैं--जिसका कभी नाश न हो अथवा स्थायी रहे। यह अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर तिथि हैं। यह अक्षय तृतीया तिथि परशुराम जी का जन्मदिन होने के कारण परशुराम तिथि भी कही जाती हैं। परशुराम जी चिरंजीवी थे। अत:यह तिथि चिरंजीवी तिथि भी कही जाती हैं। चारो युगों सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर ,और कलियुग में से त्रेतायुग का आरम्भ इसी आशातीत को हुआ है। जिसके चलते इसे युगांतर तिथि भी कहते है। विष्णुप्रिया, मत्स्यपुराण, नारद पुराण, तथा भविष्यपुराण में इसका विस्तृत उल्लेख है। अक्षय तृतीया का पर्व वसन्त और ग्रीष्म के सन्निपात का महोत्सव है।अक्षय तृतीया को दिये गये दान और किये गये स्नान, जप,तप,हवन आदि कर्मो का शुभ और अनन्त फल मिलता है। यह बातें आचार्य त्रय पं. नरोत्तम द्विवेदी ने कही। उन्होंने कहा कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों ही अपनी उच्च राशि में स्थित होते हैं और शुभ परिणाम देते हैं। इन दोनों की सम्मिलित कृपा का फल अक्षय होता है। अक्षय तृतीया पर मूल्यवान वस्तुओं की खरीदारी और दान-पुण्य के कार्य भी शुभ माने गए हैं। विशेषकर सोना खरीदना इस दिन सबसे ज्यादा शुभ होता है। इस साल अक्षय तृतीया का त्योहार शुक्रवार, 10 मई को मनाया जाएगा। अक्षय तृतीया तिथि प्रात:काल 05:31 से शुरु होकर 04:37अगले प्रात:काल तक रहेगा। पूरा तिथि ही स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता हैं। ऐसी मान्यता है कि जो साधक इस दिन श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं। उन्हें भौतिक सुखों का वरदान मिलता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह दिन भगवान कृष्ण की पूजा के लिए भी बहुत खास है।
100 साल बाद अति शुभ योग
ज्योतिषाचार्य पं. नरोत्तम द्विवेदी ने कहा इस वर्ष दस मई को अक्षय तृतीया करीब सौ साल बाद अक्षय तृतीया के दिन वृषभ राशि में चंद्रमा और गुरु की युति होने जा रही है। इसलिए गज केसरी राजयोग का निर्माण होने जा रहा है, जो अति शुभ माना जाता है। इसके साथ ही रवि योग, मालवय योग, उत्तम योग का भी निर्माण होने से इसका तीन राशि के ऊपर बेहद सकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है।
अक्षय तृतीया का अध्यात्म दर्शन और शास्त्रीय महत्व
ज्योतिषाचार्य पं. नरोत्तम द्विवेदी ने कहा कि भारतीय कालगणना के अनुसार छ: स्वयं सिद्ध अभिजित मुहूर्त हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,रामनवमी,अक्षय तृतीया, विजया दशमी,दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि,और अक्षय नवमी।वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया या आशातीत भी कहते हैं।'स्नात्वा हुत्वा च दत्त्वा च जप्त्वानन्तफलं लभेत्।'
पं. नरोत्तम द्विवेदी ने कहा कि भविष्य पुराण के अनुसार सत्ययुग की शुरुआत तिथि,कल्पेश से त्रेतायुग की प्रारम्भ तिथि इसी तिथि से हुआ है। वैशाख मास स्नान व्रत करने वाले लोगों के साथ-साथ अन्य लोग भी आज की तिथि महत्ता को देखते हुए जल से भरे कलश, पंखे, चरणपादुका, छाता, गौ, भूमि, स्वर्ण आदि का दान करते है। आज के दिन गंङ्गा स्नान, मृत पितरों का तिल से तर्पण, जल से तर्पण और पिण्डदान काफी विशेष महत्व शास्त्रों मे वालिया गया है। ऐसा विश्वास किया जाता हैं कि इसका फल अक्षय होगा।
किसानों के लिए अच्छी होगी इस वर्ष फसल सुखद संयोग
अक्षय तृतीया में तृतीया तिथि सोमवार और रोहिणी नक्षत्र तीनों का सुयोग बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। इस बार रोहिणी और तृतीया का संयोग हैं। किसानों में यह लोक विश्वास है कि यदि इस तिथि को चन्द्रमा के अस्त होते समय रोहिणी आगे होगी तो फसल के लिए अच्छा होगा और यदि पीछे होगी तो उपज अच्छी नही होगी।
इस सम्बन्ध में भंडारी की कहावतें भी लोक में प्रचलित हैं
'अखै तीज रोहिणी न होई। पौष अमावस मूल न जोई।।
राखी श्रवण हीन विचारो। कार्तिक पूनम कृतिका टारो।।
महि माहों खल बलहिंप्रकासै। कहत भंड्डरी सालि बिनासै।।'
अर्थात वैशाख मास की अक्षय तृतीया को यदि रोहिणी न हो, पौष की अमावस्या को मूल न हो, रक्षाबंधन के दिन श्रवण और कार्तिक पूर्णिमा को कृत्तिका न हो ,तो पृथ्वी पर दुष्ट का बल बढ़ेगा और उपज कम होगी। स्कन्दपुराण और भविष्यपुराण में उल्लेख हैं कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रुप में जन्म लिया। इस तिथि पर ईख के रस से बने पदार्थ, दही, चावल दूध से बने व्यंजन, खल, तरबूज और लड्डू का भोग लगाकर दान करने का विधान शास्त्रों में बतलाया गया हैं।