न्यायालय के हुक्म से अतिक्रमणमुक्त हुआ सिकरौल का सार्वजनिक पोखरा, चला बुलडोजर

सार्वजनिक संपत्तियों पर अवैध कब्जे के खिलाफ प्रशासन ने अब निर्णायक रुख अख्तियार कर लिया है। माननीय उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देश के बाद चौसा प्रखंड अंतर्गत सिकरौल गांव स्थित ऐतिहासिक पोखरे को अतिक्रमण मुक्त कराते हुए प्रशासन ने यह संदेश दे दिया कि सरकारी जलस्रोतों से खिलवाड़ अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मंगलवार को चले विशेष अभियान में वर्षों से पोखरे की भूमि पर जमे अवैध निर्माणों को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया।

न्यायालय के हुक्म से अतिक्रमणमुक्त हुआ सिकरौल का सार्वजनिक पोखरा, चला बुलडोजर

-- सार्वजनिक जलस्रोत बचाने के लिए प्रशासन का बड़ा एक्शन, वर्षों पुराना अवैध कब्जा ध्वस्त

केटी न्यूज/चौसा

सार्वजनिक संपत्तियों पर अवैध कब्जे के खिलाफ प्रशासन ने अब निर्णायक रुख अख्तियार कर लिया है। माननीय उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देश के बाद चौसा प्रखंड अंतर्गत सिकरौल गांव स्थित ऐतिहासिक पोखरे को अतिक्रमण मुक्त कराते हुए प्रशासन ने यह संदेश दे दिया कि सरकारी जलस्रोतों से खिलवाड़ अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मंगलवार को चले विशेष अभियान में वर्षों से पोखरे की भूमि पर जमे अवैध निर्माणों को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया।यह कार्रवाई सिर्फ जमीन खाली कराने तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसके जरिए प्रशासन ने गांव के जीवनदायी जलस्रोत को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस पहल की।

स्थानीय लोगों के अनुसार सिकरौल पोखरा कभी गांव की प्रमुख जलापूर्ति और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था, लेकिन अतिक्रमण के कारण इसका अस्तित्व धीरे-धीरे सिमटता चला गया।अभियान का नेतृत्व अंचल पदाधिकारी नीलेश कुमार ने किया। उनके साथ राजस्व अधिकारी उद्धव मिश्रा और राजपुर थानाध्यक्ष श्रीनिवास कुमार भारी पुलिस बल के साथ मौके पर तैनात रहे। किसी भी तरह की अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन ने पहले से ही सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए थे। पूरे क्षेत्र को घेराबंदी में लेकर बुलडोजर चलाया गया और पोखरे की जमीन पर बनी झोपड़ियों एवं कच्चे मकानों को हटाया गया।

प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि सिकरौल पोखरा सरकारी रिकॉर्ड में सार्वजनिक जलस्रोत के रूप में दर्ज है। ऐसे में उस पर निजी कब्जा न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि पर्यावरण और ग्रामीण हितों के खिलाफ भी है। इस मामले में कुल 26 अतिक्रमणकारियों को पहले ही विधिवत नोटिस जारी कर स्वेच्छा से कब्जा हटाने का अवसर दिया गया था। तय समय सीमा समाप्त होने के बावजूद जब अतिक्रमण नहीं हटाया गया, तब न्यायालय के आदेश के आलोक में सख्त कदम उठाना पड़ा।अंचल पदाधिकारी नीलेश कुमार ने कहा कि यह कार्रवाई किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि कानून और सार्वजनिक हित में की गई है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि पोखरे जैसे जलस्रोत गांवों की अमूल्य धरोहर हैं और इनके संरक्षण के लिए प्रशासन पूरी तरह प्रतिबद्ध है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि कार्रवाई के दौरान मानवीय पक्ष को नजरअंदाज नहीं किया गया। जांच में 13 परिवार वास्तविक रूप से भूमिहीन पाए गए हैं, जिनके पुनर्वास के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।इस अभियान के बाद गांव में चर्चा का माहौल है।

कई ग्रामीणों ने प्रशासनिक कदम का समर्थन करते हुए कहा कि पोखरा मुक्त होने से जल संरक्षण, पशुपालन और पर्यावरण संतुलन को लाभ मिलेगा। वहीं प्रशासन ने चेतावनी दी है कि जिले के अन्य सार्वजनिक जलस्रोतों और सरकारी जमीनों पर भी अवैध कब्जे चिन्हित किए जा रहे हैं और आगे भी इसी तरह की कार्रवाई जारी रहेगी।सिकरौल पोखरे से हटाया गया अतिक्रमण अब प्रशासन की सख्ती और न्यायालय के आदेश की ताकत का प्रतीक बन गया है, जिसने साफ कर दिया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है।